सम्पादकीय

कैंसर का बढ़ता खतरा

Subhi
23 Jun 2022 4:47 AM GMT
कैंसर का बढ़ता खतरा
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भारत में बढ़ते कैंसर मरीजों और ज्यादा मौतों की वजह चिकित्सकों की भारी कमी भी है। भारत में दो हजार कैंसर मरीजों पर महज एक चिकित्सक है, जबकि अमेरिका में यह अनुपात सौ मरीजों पर एक चिकित्सक का है यानी भारत से बीस गुना ज्यादा।

अखिलेश आर्येंदु; भारत में बढ़ते कैंसर मरीजों और ज्यादा मौतों की वजह चिकित्सकों की भारी कमी भी है। भारत में दो हजार कैंसर मरीजों पर महज एक चिकित्सक है, जबकि अमेरिका में यह अनुपात सौ मरीजों पर एक चिकित्सक का है यानी भारत से बीस गुना ज्यादा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की कैंसर रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनिया में एक करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत कैंसर से होती है। न सिर्फ विकसित देशों में, बल्कि गरीब और विकासशील देशों में भी हर साल लाखों लोग इस लाइलाज बीमारी से मर जाते हैं। महाशक्ति बनने की राह पर आगे बढ़ने वाले भारत में कैंसर के अलावा एड्स, पक्षाघात, हृदयघात, मधुमेह जैसी तमाम बीमारियां भी हैं जो हर साल लाखों लोगों की जान ले रही हैं।

पिछले पंद्रह सालों में भारत में कैंसर ने तेजी से पैर पसारे हैं। इंटरनेशनल एजंसी फार रिसर्च आन कैंसर (आइएआरसी) का अनुमान है कि आने वाले वक्त में कैंसर के मरीजों की संख्या में और तेजी से बढ़ोत्तरी होगी। मोटा अनुमान है कि 2025 तक हर पांच में से एक पुरुष और छह महिलाओं में से एक महिला कैंसर से पीड़ित होगी और पीड़ित महिलाओं में से एक की मौत इस बीमारी से होगी। गौरतलब है कि भारत में हर दो मिनट में तीन लोगों की मौत कैंसर से होती है। कैंसर संस्थान के अनुमान के मुताबिक आने वाले वक्त में हर साल बीस लाख से ज्यादा लोगों की जान केवल इस बीमारी से जाएगी और सक्रिय मामलों की संख्या में भी खासा इजाफा देखने को मिलेगा।

कैंसर को लेकर आंकड़ों की जो तस्वीर देखने को मिल रही है, वह बेहद डरावनी है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में कैंसर के तेरह लाख नब्बे हजार मामले सामने आए थे। चिंता की बात यह है कि 2025 तक यह आंकड़ा पंद्रह लाख को पार कर सकता है। सर्वेक्षण के मुताबिक कुल कैंसर मरीजों में 13.5 फीसद मौतें स्तन कैंसर से, 10.3 फीसद मुंह के कैंसर से, 9.4 फीसद गर्भाशय के कैंसर से और साढ़े पांच फीसद फेफडेÞ के कैंसर से होती हैं। इसी तरह कैंसर पीड़ित महिलाओं में 26.3 फीसद स्तन कैंसर, 6.7 फीसद गर्भाशय कैंसर और 4.6 फीसद महिलाएं मुंह के कैंसर से मर जाती हैं।

भारत में कैंसर से पीड़ित पुरुषों में 16.3 फीसद मुंह, आठ फीसद फेफड़े और 6.8 फीसद पेट के कैंसर से मरते हैं। गौरतलब है पिछले कुछ सालों में पुरुषों में मुंह के कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। यह तंबाकू के सेवन की वजह से ज्यादा बढ़ रहे हैं। गौरतलब है पिछले दस सालों में कैंसर से होने वाली मौतों की दर दोगुनी हुई है। जाहिर है, इस बीमारी से निपटने के लिए सरकारी तंत्र के पास वैसा मजबूत तंत्र नहीं है जिसकी आज दरकार है। अमीर लोग तो विदेशों में या महंगे निजी अस्पतालों में इलाज करवा लेने में सक्षम होते हैं, लेकिन कैंसर का इलाज आम आदमी के बूते के बाहर ही है।

दूसरी तमाम बीमारियों की तरह कैंसर उन प्रदेशों में अधिक तेजी से बढ़ रहा है जो आर्थिक रूप से पिछड़े माने जाते हैं। यदि हम बिहार की बात करें, तो पता चलता है कि यह ऐसा राज्य है जहां कैंसर के मरीज पिछले कुछ सालों में काफी तेजी से बढेÞ हैं। कैंसर संस्थान के आंकड़े के मुताबिक बिहार में हर साल तकरीबन एक लाख मरीज मिल रहे हैं। यहां सबसे ज्यादा मरीज वे हैं जो तंबाकू का सेवन करते हैं और जो मुंह के कैंसर से पीड़ित हैं। महिलाओं में गर्भाशय और स्तन कैंसर और पुरुषों में लिवर व मुंह का कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। यहां उनहत्तर फीसद महिलाएं कैंसर से पीड़ित हैं, जबकि पुरुषों की संख्या महज उनतालीस फीसद है। इसी तरह उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु आदि राज्यों में भी कैंसर तेजी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

कैंसर का मुकाबला करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई स्तरों पर तैयारियां की हैं, लेकिन कोरोना के हमले ने इन पर ग्रहण दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में कैंसर कहीं ज्यादा रफ्तार से बढ़ रहा है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में 2018 में कैंसर के कुल एक करोड़ इक्यासी लाख मामले सामने आए थे, जिसमें से छयानवे लाख मौतें हुई थीं। इनमें भी सत्तर फीसद मौतें गरीब देशों या भारत जैसे मध्यम आय वाले देश में हुई। इस साल भारत में करीब आठ लाख मौतें कैंसर से हुई थीं। यानी दुनिया में कैंसर से हुई कुल मौतों में से आठ फीसद अकेले भारत में सामनेआर्इं, जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा तीन से चार फीसद का है।

भारत में बढ़ते कैंसर मरीजों और ज्यादा मौतों की वजह चिकित्सकों की भारी कमी भी है। भारत में दो हजार कैंसर मरीजों पर महज एक चिकित्सक है, जबकि अमेरिका में यह अनुपात सौ मरीजों पर एक चिकित्सक का है यानी भारत से बीस गुना ज्यादा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि कैंसर की रोकथाम के लिए यदि वक्त रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह एक महामारी का रूप धारण कर सकता है। संगठन ने कैंसर के प्रति विश्व स्तर पर और अधिक जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया है।

भारत की आधी आबादी जो मुख्यत: मजदूरी, नौकरी, खेती या घर पर रह कर काम करती है, उसमें कैंसर के मामले ज्यादा पाए जा रहे हैं। इस बीमारी से ग्रसित होने के तमाम कारण हैं। इसके प्रमुख कारणों में गुणसूत्रों की असमानता और आंतरिक बदलाव और जीन उत्परिवर्तन के अलावा हार्मोन में भी असमय बदलाव जैसे कारण हैं। महिलाओं में पैपीलोमा वायरस से ग्रीवा और गर्भाशय के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। एचआइवी के संक्रमण भी कई बार कैंसर का कारण बन जाता है। इसी तरह हेलियो बेक्टर जीवाणु के कारण आमाशय कैंसर और पेप्टिक अल्सर का होने का खतरा अधिक रहता है। आज तनाव, आधुनिक खानपान और आहार-विहार के कारण भी यह बीमारी खासकर शहरों में तेजी के साथ बढ़ रही है।

भारत में गरीब मजदूरों-किसानों में कैंसर के मामले ज्यादा मिलना चिंता पैदा करता है। बिहार, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड में लाखों मजदूर कोयला खदानों, सीमेंट कारखानों, पत्थर तोड़ने वाली मशीनों और चमड़े उद्योग में लगे हैं। इसी प्रकार सीमेंट उद्योग, बीड़ी पत्ते उद्योगों, धूल और धुंए वाले अन्य कारखानें में काम करने वाले मजदूर, चूड़ी उद्योग, ईंट भट्ठों, सड़कों, रासायनिक कारखानों आदि उद्योगों में लगे मजदूरों की स्थिति भी ऐसी है कि वे इस खतरनाक बीमारी के खतरे से बाहर नहीं हैं। दरअसल, कैंसर के कारणों पर सरकार का जागरूकता अभियान बहुत धीमा है। गांवों में तो न के बराबर है। महज आंकड़ों का हवाला देकर आम आदमी को कैंसर से बचाव के लिए जागरूक नहीं किया जा सकता है।

दूसरी बात, लोगों में इसके प्रति बैठे डर को खत्म करने के लिए भी काम करना होगा। सर्वे से पता चला है कि जैसे ही कैंसर होने की बात मरीज के सामने आती है, वह मौत को सामने खड़ा देखने लगता है। कैंसर का मतलब मौत मान लिया जाता है। जबकि ऐसा नहीं है। आज तमाम तरह के कैंसर का इलाज संभव है, बशर्ते समय से इस बीमारी का निदान हो जाए और इलाज उपलब्ध हो।


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