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मनोभ्रंश (डिमेंशिया) और अल्जाइमर रोग के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 21 सितंबर को ‘विश्व अल्जाइमर दिवस’ मनाया जाता है
मनोभ्रंश (डिमेंशिया) और अल्जाइमर रोग के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 21 सितंबर को 'विश्व अल्जाइमर दिवस' मनाया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अमेरिका में अल्जाइमर हर सातवीं मौत का प्रमुख कारण है, जहां 65 वर्ष से अधिक आयु के अधिकतर लोग अल्जाइमर से मर जाते हैं. उम्र बढ़ने के साथ कई प्रकार की बीमारियां शरीर को निशाना बनाना शुरू कर देती हैं.
इन्हीं में से एक भूलने की बीमारी 'अल्जाइमर-डिमेंशिया' है. चीन अल्जाइमर के रोगियों की संख्या के मामले में पहले स्थान पर है, लेकिन वहां इस रोग के उपचार की दर अपेक्षाकृत कम है. इसका मुख्य कारण वहां बुजुर्ग आबादी की लगातार बढ़ती संख्या के अलावा अधिकतर लोगों के मन में इस बीमारी के बारे में व्याप्त गलतफहमी भी है. इसे लोग कोई बीमारी नहीं, बल्कि बढ़ती उम्र की एक सामान्य प्रक्रिया मानते हैं. अभी चूंकि अल्जाइमर का कोई इलाज नहीं है, इसीलिए इसकी गंभीरता के कारण कुछ देशों में पूरे सितंबर महीने को ही 'विश्व अल्जाइमर माह' के रूप में मनाया जाता है. बैंगनी रंग का रिबन अल्जाइमर का प्रतिनिधित्व करता है.
अल्जाइमर का यह नाम 1906 में इस बीमारी का पता लगानेवाले जर्मनी के मनोचिकित्सक एलोइस अल्जाइमर के नाम पर रखा गया. उन्होंने एक असामान्य मानसिक बीमारी से मरनेवाली एक महिला के मस्तिष्क के ऊतकों में परिवर्तन देखने के बाद इस बीमारी का पता लगाया था. अल्जाइमर एक ऐसा न्यूरोलॉजिक डिसऑर्डर है, जिससे ब्रेन सिकुड़ना, ब्रेन सेल्स डाई आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं. अल्जाइमर दिवस की शुरुआत अल्जाइमर डिजीज इंटरनेशनल की 10वीं वर्षगांठ के अवसर पर 21 सितंबर, 1994 को एडिनबर्ग में हुई थी.
इस वर्ष के दिवस की थीम 'डिमेंशिया को जानें, अल्जाइमर को जानें' है. बढ़ती उम्र के साथ कुछ लोगों में भूलने की आदत विकसित होने लगती है. कुछ मामलों में तो यह भी देखा जाता है कि यदि कोई बुजुर्ग व्यक्ति बाहर टहलकर आता है, तो वापस लौटने पर उसे अपना ही घर पहचानने में परेशानी होती है. ऐसी स्थितियों को अक्सर समाज में यही सोचकर हल्के में लिया जाता है कि बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन वास्तव में यह अल्जाइमर नामक बीमारी है.
अगर कोई व्यक्ति सब कुछ भूल जाये, तो आसानी से समझा जा सकता है कि उसकी जिंदगी कितनी कठिनाईयों से भर जायेगी. यह बीमारी अमूमन बुजुर्गों को ही होती है, पर आज युवा भी इसकी चपेट में आने लगे हैं. भारत में इस समय करीब 53 लाख लोग किसी न किसी प्रकार के डिमेंशिया से पीड़ित हैं. अनुमान है कि 2025 तक केवल 60 वर्ष से अधिक आयु के ही करीब 64 लाख व्यक्ति डिमेंशिया से ग्रस्त होंगे.
दिमाग से जुड़ी भूलने की यह बीमारी मस्तिष्क की नसों को नुकसान पहुंचने के कारण होती है. मस्तिष्क में प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी होने के कारण इसका खतरा बढ़ जाता है. इस बीमारी को लेकर जागरूकता और उचित इलाज बेहद आवश्यक है. हालांकि इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है, पर कुछ दवाओं के जरिये अस्थायी रूप से लक्षणों को कम अवश्य किया जा सकता है. इसके लिए जरूरी सावधानियां और व्यायाम भी सहायक सिद्ध होते हैं. जीवनशैली में बदलाव करके कुछ हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है. ध्यान और योग से भी इस बीमारी से काफी हद तक राहत मिल सकती है.
इस बीमारी के सही कारण भी ज्ञात नहीं है. डिमेंशिया अल्जाइमर रोग का सबसे सामान्य रूप है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है. शुरुआती लक्षणों पर ध्यान नहीं देने से रोग बढ़ता जाता है. रोग का प्रभावी ढंग से उपचार करने के लिए इस बीमारी का शीघ्र पता लगने से ही लाभ होता है.
अल्जाइमर के प्रमुख लक्षणों में व्यक्ति के स्वभाव में बदलाव, रात में नींद कम आना, हालिया जानकारी भूलना, पढ़ने, दूरी का आकलन करने और रंगों को पहचानने में कठिनाई, तारीख और समय की जानकारी रखने में परेशानी, समय या स्थान में भटकाव, रखी हुई चीजों को बहुत जल्दी भूल जाना, आंखों की रोशनी में कमी, चिड़चिड़ापन और गुस्सा आना, छोटे-छोटे कार्यों में भी परेशानी होना, परिवार के सदस्यों को नहीं पहचान पाना आदि प्रमुख हैं.
अल्जाइमर के उपचार के तरीकों में औषधीय, मनोवैज्ञानिक और देखभाल संबंधी कई पहलू शामिल हैं. बढ़ती उम्र में मस्तिष्क की कोशिकाएं सिकुड़ने के कारण न्यूरॉन के अंदर कुछ रसायन कम होने लगते हैं. इनकी मात्रा को संतुलित करने के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है. ये दवाएं जितनी जल्दी शुरू की जायें, उतना ही फायदेमंद होता है. उपचार में पारिवारिक और सामाजिक सहयोग सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि किसी व्यक्ति में अल्जाइमर के लक्षण दिखायी दें, तो उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए.
रोग को बढ़ने से रोकने के लिए ऐसे व्यक्तियों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और मनोरंजनात्मक गतिविधियों में शामिल होना बेहद जरूरी है. इसके अलावा नियमित योग व ध्यान करना, पैदल चलना, कुछ पढ़ना-लिखना, सामूहिक खेलों में भागीदारी करना, स्वास्थ्य पर ध्यान देना, स्मृति बढ़ाने के लिए वर्ग पहेली, सूडोकू, शतरंज जैसे दिमागी खेल खेलना आदि गतिविधियां भी मददगार होती हैं. स्वस्थ जीवनशैली और नशे से दूरी बरतकर भी अल्जाइमर और डिमेंशिया से बचा जा सकता है. यह भी जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य बुजुर्गों के प्रति अपनापन रखें तथा उनका ख्याल रखें.
क्रेडिट बाय प्रभात खबर
Gulabi
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