सम्पादकीय

बढ़ाए सामाजिक विकास पर खर्च

Gulabi
19 Jan 2021 12:05 PM GMT
बढ़ाए सामाजिक विकास पर खर्च
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केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने तीसरे बजट की तैयारी कर रही हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने तीसरे बजट की तैयारी कर रही हैं। इस बार का उनका बजट कोरोना वायरस की महामारी की छाया में बन रहा है। उन्होंने बनने से पहले ही अपने इस बजट को ऐतिहासिक बताया है। वित्त मंत्री ने कहा है कि इस बार ऐसा बजट आएगा, जैसा पहले कभी नहीं आया। वे बजट बनाने की तैयारियों में बिजी हैं तो उधर प्रधानमंत्री भी आर्थिक जानकारों से मिले हैं और बजट के बारे में उनकी राय मांगी है। वित्त मंत्री और कई बार प्रधानमंत्री भी उद्योग जगत के लोगों सहित समाज के अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े लोगों से मिले हैँ। सरकार के लोगों को सामाजिक क्षेत्र के लोगों से भी मिलना चाहिए और सामाजिक विकास, मानव विकास की जिम्मेदारी को समझते हुए बजट निर्माण करना चाहिए।


यह मौका है बजट का तो यह ध्यान दिलाना जरूरी है कि दुनिया के मानव विकास सूचकांक में भारत 189 देशों की सूची में 131वें नंबर पर है। इसका मतलब है कि मानव विकास यानी जीवन स्तर की स्थिति भारत में बहुत खराब है। मानव विकास का दायरा बहुत बड़ा है। इसमें वो तमाम चीजें शामिल हैं, जिनसे किसी इंसान के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य इसके दो बुनियादी तत्व हैं। लेकिन इनके अलावा भी इसका दायरा बहुत बड़ा है। खेल-कूद भी इसी में शामिल है तो कला और संस्कृति भी इंसान के जीवन को बेहतर बनाने वाले तत्वों में शामिल है।

स्वास्थ्य के साथ परिवार कल्याण, श्रमिकों का कल्याण, पीने के साफ पानी की आपूर्ति, स्वच्छता, पर्यावरण की रक्षा और यहां तक की ट्रैफिक की बेहतर व्यवस्था भी इंसानी जीवन को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है। बच्चों का स्वास्थ्य और उनके लिए पोषण की अच्छी व्यवस्था भी समान रूप से जरूरी है। इन सब क्षेत्रों में सुधार के जरिए ही ओवरऑल मानव विकास सूचकांक में भारत का स्थान ऊंचा किया जा सकता है। बजट से पहले ये सारी बातें बताने का मकसद यह है कि सरकार इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के बारे में सोचे। सरकार सिर्फ इस भरोसे नहीं बैठे कि वह फैसिलिटेटर है, उसका काम नीतियां बनाना है और बाकी काम निजी क्षेत्र करे। दुनिया के विकसित देशों में जरूर ऐसा होता होगा, लेकिन भारत में अभी वह समय नहीं आया कि सरकार मानव विकास का काम निजी क्षेत्र के हवाले करे। उलटे जो सेक्टर निजी क्षेत्र के हवाले होते जा रहे हैं उनमें भी निवेश बढ़ा कर सरकारी व्यवस्था को ठीक करना चाहिए, खास कर शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में।

कोरोना वायरस की महामारी के बाद की स्थितियों में यह और भी जरूरी है कि सरकार सोशल सेक्टर के विकास पर ध्यान दे और उस सेक्टर में निवेश बढ़ाए। इसके कई तात्कालिक कारण भी हैं। जैसे देश के कई राज्यों में स्कूल बंद हो रहे हैं। बड़ी संख्या में निजी स्कूल हमेशा के लिए बंद हुए हैं क्योंकि कोरोना की वजह से हुई बंदी में वे स्कूल की बिल्डिंग का किराया और शिक्षकों का वेतन नहीं दे पाए। अकेले बिहार के बारे में खबर है कि वहां 20 हजार छोटे-बड़े निजी स्कूल बंद हुए हैं। गुजरात से खबर थी कि छह हजार के करीब सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं। कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए ज्ञापन भी दिया था। ऐसे में अगर स्कूलों की संख्या नहीं बढ़ाई गई या मौजूदा स्कूलों में नए क्लासरूम नहीं जोड़े गए या उनका बुनियादी ढांचा नहीं दुरुस्त किया गया तो बच्चों की शिक्षा पर बहुत बुरा असर होगा। स्कूलों से डॉपआउट रेट अचानक बहुत बढ़ जाएगा, जिसे बाद में नहीं संभाला जा सकेगा। भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 2.8 से तीन फीसदी तक खर्च किया जाता है। भारत की विशालता और इसकी युवा आबादी को देखते हुए यह बहुत कम है। ध्यान रहे भारत में दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले ज्यादा युवा आबादी है इसलिए सरकार को शिक्षा पर खर्च दोगुना करना चाहिए।

इसी तरह कोरोना वायरस की महामारी ने यह सबक दिया है कि अस्पतालों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। साथ ही अस्पतालों का बुनियादी ढांचा सुधारा जाना चाहिए। देश में नए लैब्स की जरूरत है, शोध संस्थाओं की जरूरत है, बड़ी संख्या में नर्सें और डॉक्टर चाहिए। इसके लिए स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने की सख्त जरूरत है। ध्यान रहे भारत सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का सिर्फ 1.2 से 1.5 फीसदी के बीच खर्च करती है। यह आंकड़ा बहुत दिन से इतने पर ही अटका हुआ है। इसे बढ़ा कर तीन फीसदी तक किया जाना चाहिए।

दिल्ली ने अपने यहां स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए अपने बजट का 13 फीसदी हिस्सा उस पर खर्च करना शुरू किया है। इससे प्रेरणा लेकर केंद्र सरकार भी अपना खर्च बढ़ाए।

शिक्षा और स्वास्थ्य सेक्टर में खर्च बढ़ाने के साथ साथ केंद्र सरकार को मानव विकास सूचकांक के दूसरे मानकों के बारे में भी विचार करना चाहिए। देश भर में शौचालय बनाने की परियोजना बहुत अच्छी है पर यह सुनिश्चित करना होगा कि लोग उनका इस्तेमाल करें। ऐसे ही गरीबों को उज्ज्वला योजना के तहत रसोई गैस का सिलिंडर देना भी अच्छी योजना है पर यह सुनिश्चित करना होगा कि लोग रिफील कराएं। उज्ज्वला योजना के तहत सिलिंडर लेने वाले ज्यादातर लोगों ने उसे दोबारा नहीं भरवाया। इस बीच सरकार लगातार रसोई गैस के दाम बढ़ाती गई है। इसलिए भी बड़ी आबादी दोबारा गैस भरवाने की स्थिति में नहीं है।

देश के बड़े हिस्से में अब भी पीने का पानी नहीं पहुंचा है। पीने के साफ पानी की उपलब्धता के बगैर गरिमापूर्ण इंसानी जीवन की कैसे कल्पना की जा सकती है खेल-कूद और कला-संस्कृति, महिला-बाल विकास, समाज कल्याण आदि किसी सरकार की प्राथमिकता में नहीं होते हैं। इनसे जुड़े मामलों का जिनको मंत्री बनाया जाता है उनको कम महत्व का माना जाता है। कोई इन विभागों का मंत्री नहीं बनना चाहता है। लेकिन सामाजिक विकास के लिए और ओवरऑल इंसान के विकास के लिए जरूरी है कि इन सभी पर समान रूप से ध्यान दिया जाए। सड़कें बनें, पुल और इमारतें बनें, बुलेट ट्रेन चले, हवाईअड्डों और स्टेशनों का विकास हो, बेशक उसके बाद उसे बेच दिया जाए, लेकिन उनके साथ साथ सामाजिक क्षेत्र पर भी खर्च बढ़ाया जाए।


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