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खिलौना उद्योग के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण के अलावा बैंकों से ऋण एवं वित्तीय सहायता संबंधी बाधाएं भी दूर करनी होंगी।
देश में खिलौना उद्योग का परिदृश्य अनुकूल दिखाई दे रहा है। पिछले चार साल में खिलौनों का आयात जहां लगातार घटा है, वहीं खिलौनों का निर्यात बढ़ा है। प्रधानमंत्री ने हाल ही में 91वें 'मन की बात' कार्यक्रम में यह बात रेखांकित की है कि पिछले तीन-चार साल में खिलौना उद्योग का रणनीतिक विकास कर अपना देश वैश्विक बाजार की जरूरतें पूरी करने में अहम भूमिका निभा रहा है। तीन-चार साल पहले तक भारत में बिकने वाले 85 प्रतिशत खिलौने आयात किए जाते थे, पर अब अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, पश्चिम एशिया, इंडोनेशिया, मंगोलिया, केन्या, न्यूजीलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया आदि को भारत से खिलौने निर्यात किए जा रहे हैं।
आज भारतीय खिलौना निर्माता ग्लोबल टॉय ब्रांड के प्रमुख निर्माता के रूप में दुनिया भर में चिह्नित किए जा रहे हैं और वे हसब्रो, हैमलेज, स्पीन मास्टर, ड्रैगन, शिफू, हार्नबाइ, एमजीए, आइएमसी और गोल्डन बियर जैसे वैश्विक ब्रांड के लिए खिलौने तैयार कर रहे हैं। कोरोना की चुनौतियों के बीच सरकार वोकल फॉर लोकल व आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत खिलौना उद्योग को अधिकतम प्रोत्साहन देने तथा खिलौना बाजार से चीन के खिलौनों को हटाने की रणनीति के साथ आगे बढ़ी है।
इसमें गुणवत्तापूर्ण खिलौनों के उत्पादन पर ध्यान दिया गया है। वर्ष 2019 में सर्वे में पाया गया कि भारतीय बाजार में उपलब्ध अधिकांश खिलौने भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) के मानकों को पूरा नहीं करते। तब यह भी पाया गया कि देश में घटिया स्तर के और खतरनाक खिलौनों का आयात हो रहा है। ऐसे में, दिसंबर, 2019 में विदेश व्यापार महानिदेशालय ने आयातित खिलौनों की सैंपल जांच अनिवार्य कर दी। वर्ष 2020 में खिलौना गुणवत्ता नियंत्रण आदेश जारी किया गया।
नतीजतन अब अधिकांश खिलौने गुणवत्ता के मापदंड पूरे करते दिखाई दे रहे हैं। कुछ वर्ष पहले तक बाजार में उपलब्ध अधिकांश ऑनलाइन और डिजिटल गेम भारतीय अवधारणाओं पर आधारित नहीं थे और कई गेम हिंसा और मानसिक तनाव को भी बढ़ावा दे रहे थे। ऐसे में डिजिटल गेमिंग के लिए भारत द्वारा खिलौना निर्माण में भारतीय मूल्यों पर आधारित विषयों तथा भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के मद्देनजर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की कहानियों तथा उनके शौर्य को गेमिंग अवधारणाओं के रूप में प्रस्तुत किए जाने से भारतीय खिलौनों की बिक्री तेजी से बढ़ी। खिलौना उद्योग को हरसंभव तरीके से प्रोत्साहित किया जा रहा है।
सरकार ने खिलौना उद्योग को देश के 24 प्रमुख सेक्टर में स्थान दिया है। खिलौना मेलों के आयोजन से इस उद्योग को भारी प्रोत्साहन मिला है। सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) मंत्रालय की स्फूर्ति स्कीम के तहत देश में 19 टॉय क्लस्टर को मंजूरी दी गई है, जिनमें बड़ी संख्या में सूक्ष्म स्तर के खिलौना निर्माता काम कर रहे हैं। सरकार द्वारा बजट में भी लगातार 'मेक इन इंडिया' अभियान को गति देने से स्वदेशी खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन मिला है।
खिलौना उद्योग में रोजगार और स्वरोजगार संबंधी मौके भी बढ़ रहे हैं। ये अवसर टॉय प्रॉडक्शन, टॉय डिजाइनिंग एवं टॉय मार्केटिंग से संबंधित हैं। सॉफ्ट टॉय मेकिंग के व्यवसाय के लिए न बड़ी शैक्षणिक योग्यता की जरूरत है, न निश्चित आयु की। इसमें कुशल होने के लिए एक से दो महीने की ट्रेनिंग काफी होती है। इसके लिए बड़े निवेश और बड़ी जगह की भी जरूरत नहीं होती। स्वरोजगार योजनाओं के तहत खिलौना उद्योग के लिए आसान ऋण भी मिल रहा है।
हालांकि अब भी देश के खिलौना सेक्टर को ऊंचाई देने के लिए इस क्षेत्र में व्याप्त बाधाएं हटाना जरूरी है। इसके तहत विभिन्न एजेंसियों के बीच उपयुक्त तालमेल बनाने, डिजाइन और इनोवेशन की कमी दूर करने तथा देश में नई टेक्नोलॉजी से सुसज्जित खिलौना डिजाइन संस्थान की स्थापना को मूर्त रूप देना आवश्यक है। खिलौना उद्योग के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण के अलावा बैंकों से ऋण एवं वित्तीय सहायता संबंधी बाधाएं भी दूर करनी होंगी।
सोर्स: अमर उजाला
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