सम्पादकीय

मोटे अनाज की खेती बढ़े

Gulabi Jagat
25 March 2022 4:35 AM GMT
मोटे अनाज की खेती बढ़े
x
विश्वव्यापी महामारी से उबरने के बाद दुनिया पटरी पर आती दिख रही है
पद्मश्री अशोक भगत
सचिव, विकास भारती बिशुनपुर
विश्वव्यापी महामारी से उबरने के बाद दुनिया पटरी पर आती दिख रही है. हालांकि जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अवसाद अभी भी बरकरार है, लेकिन संतोष की बात यह है कि अब महामारी से मुठभेड़ का हथियार दुनिया ने ईजाद कर लिया है. बावजूद इसके हम मानव संपदा को संभालने की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. भारत जैसे देश में तो यह बड़ी समस्या है. फिलहाल हमारे यहां खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है. विश्वस्त आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में हमारे किसानों ने कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाया है. जहां उद्योग, पर्यटन एवं सेवा जैसे आर्थिक विकास के स्रोत शुष्क से हो गये, वहीं कृषि विकास की दर ने मिसाल पेश की है. पर इतने भर से हमें तसल्ली नहीं होनी चाहिए. कृषिगत क्षमता में इजाफा हमारा और हमारी सरकार का मूल मंत्र होना चाहिए. यह बदल रहे जलवायु के कारण खाद्यान्न की आसन्न समस्या के समाधान के लिए भी जरूरी है.
खाद्यान्न उत्पादन के लिए उपयोग होनेवाले मीठे पानी की लगातार कमी होती जा रही है. साथ ही, दुनिया के कई फसल उत्पादक क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण शुष्कता बढ़ने लगी है. इसका असर पड़ना तय है और स्वाभाविक रूप से खाद्यान्न उत्पादन पर इसका नकारात्मक असर होगा. इन आसन्न खतरों को भांप कर हमारी सरकार ने खाद्यान्न की कमी को दूर करने की व्यवस्थित योजना बनायी है, जो हमारी पारंपरिक कृषि प्रणाली पर आधारित है, लेकिन उसमें थोड़ा वैज्ञानिक संशोधन किया गया है. बता दें कि जिसे हम मोटा अनाज कहते हैं और अमूमन उसे गरीब लोगों का भोजन माना जाता है, अब सरकार ने उसके विकास की योजना बनायी है. मोटे अनाज में पोषक तत्वों की मात्रा बहुत होती है. एक शोध से पता चला है कि मोटे अनाज में प्रोटीन, विटामिन ए, लौह तत्व एवं आयोडिन जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं. इसका उपयोग किया जाए, तो हम अपनी बड़ी आबादी को पोषक अनाज देने में कामयाब होंगे.
मोटे तौर पर ज्वार, मड़ुवा, रागी, कुटको, सांवा, कंगनी, चीना और मक्का को मोटे अनाजों की श्रेणी में रखा गया है. इस अनाज की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका शुष्क क्षेत्र में भी उत्पादन किया जा सकता है. यही नहीं, धान व गेहूं की तुलना में इसमें कम खर्च करना पड़ता है. इसके उत्पादन में अन्य फसलों की तुलना में समय भी बहुत कम लगता है. यही कारण है कि भारत सरकार ने वर्ष 2018 को राष्ट्रीय कदन्न यानी मोटा अनाज वर्ष घोषित किया था. भारत के इस प्रयास को दुनिया भी सराहने लगी है. जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सद प्रयास से पूरी दुनिया में भारतीय योग का डंका बजने लगा है, उसी प्रकार मोटे अनाज के उत्पादन पर भी दुनिया सहमत होने लगी है.
अगला वर्ष यानी 2023 को विश्व खाद्यान्न संगठन ने अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय किया है. हरित क्रांति के कारण हमारे देश में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि तो हुई, लेकिन हम बहुत कुछ पीछे छोड़ आये. आंकड़े बताते हैं कि हरित क्रांति के पूर्व हमारे देश में लगभग 36.50 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के कदन्नों की खेती होती थी, लेकिन वर्ष 2016-17 में यह क्षेत्रफल घट कर 14.72 मिलियन हेक्टेयर पर सिमट गया है. हमारे आहार आदत में व्यापक परिवर्तन आया है. हमारा समाज गेहूं और चावल को ही अभिजात्य भोजन मानने लगा है. इस चित्र को बदलना होगा. आनेवाले समय में अपनों को यदि भुखमरी से बचाना है, तो हमें पारंपरिक मोटे अनाजों को भोजन में शामिल करना होगा.
जानकारों की राय में कुपोषण का मतलब भोजन की अनुपलब्धता नहीं है, अपितु विश्व खाद्य संगठन का मानना है कि जो व्यक्ति 1800 कैलोरी से कम ऊर्जा ग्रहण कर रहा है, वह भी कुपोषित है. इन दिनों भारत में कुपोषितों की संख्या में कमी आयी है, लेकिन इससे यह अंदाजा लगा लेना कि हम खाद्यान्न की दृष्टि से आत्मनिर्भर हो गये हैं, यह ठीक नहीं है. समाज को भी सरकार के साथ कदमताल करना होगा और मोटे अनाजों के उत्पादन पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा. झारखंड जैसे पठारी व पथरीली जमीन के लिए यह बेहतर विकल्प हो सकता है. इस बार के बजट में झारखंड सरकार द्वारा रियायती दरों पर गरीबों को प्रति माह एक किलो दाल देने की घोषणा सराहनीय है, लेकिन सरकार ने जिस कारण यह निर्णय लिया है, उसका समाधान झारखंड के गांवों से निकाला जा सकता है.
झारखंड में उपजने वाले कई ऐसे मोटे अनाज हैं, जिसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध है. सरकार को उस अनाज के प्रोत्साहन पर बजट की एक निश्चित राशि खर्च करनी चाहिए. साथ ही, झारखंड में उत्पादित होनेवाले धान पर अतिरिक्त समर्थन मूल्य निर्धारित कर देना चाहिए. भारत सरकार ने मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए गेहूं व चावल की तुलना में इसके समर्थन मूल्य को लगभग दोगुना कर दिया है. इससे मोटे अनाजों के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ेगा. छोटे व मझोले किस्म के किसानों को फायदा होगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी. कुल मिलाकर, हमें अपने फसल उत्पादन को परंपरा के साथ जोड़ने की जरूरत है . इसके साथ ही अपनी खाद्य आदत में परिवर्तन कर मोटे अनाजों को जोड़ लेना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
Next Story