सम्पादकीय

बढ़ाए जाएं देश में रोजगार के अवसर, आने वाले समय में भयावह होने वाली है बेरोजगारी की समस्या

Gulabi
7 Feb 2021 3:32 PM GMT
बढ़ाए जाएं देश में रोजगार के अवसर, आने वाले समय में भयावह होने वाली है बेरोजगारी की समस्या
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हमारे देश की राजनीति में रोजगार की समस्या विमर्श के केंद्र में नहीं दिखती है।

हमारे देश की राजनीति में रोजगार की समस्या विमर्श के केंद्र में नहीं दिखती है। अगर कहीं बेरोजगारी पर सार्वजनिक रूप से चर्चा भी होती है, तो उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता है। अभी वर्तमान में भले ही इस मुद्दे को उतनी प्राथमिकता नहीं दी जा रही हो, परंतु भविष्य में पूरे देश में रोजगार की समस्या का मसला भयावह रूप धारण कर सकता है। हालांकि पूंजीवादी व्यवस्था का विकास निश्चित रूप से इस तरह के सामाजिक मुद्दे से बचने की भरपूर कोशिश करेगी, लेकिन हमारे संघीय ढांचे की व्यवस्था के कारण देश में अब तक सामाजिक मुद्दे को प्राथमिकता मिलती रही है।


इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि कोरोना काल से पूर्व भी देश की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत नहीं थी। यह सर्वविदित तथ्य है कि अर्थव्यवस्था गिरने का सीधा प्रभाव सामाजिक स्तर पड़ता है। कोई भी क्षेत्र या समूह इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहता है। ऐसे में युवाओं और रोजगार सृजन पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।वास्तविकता तो यह है कि देश में कोरोना के असर के पहले से ही बेरोजगारी प्रतिशत बढ़ता जा रहा था। युवा इसे महसूस भी कर रहे थे, लेकिन देश के अधिकांश राजनीतिक दलों ने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अधिकांश राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में भी रोजगार मुद्दे को खास महत्व नहीं दिया गया। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि रोजगार के लिए अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ होना अत्यंत आवश्यक है। देश में उदारीकरण के बाद अर्थव्यवस्था संभलती हुई जरूर दिखी।
हालांकि वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं से जुड़ने से रोजगार के नए अवसर अवश्य मिले, लेकिन यह टिकाऊ व्यवस्था बनती हुई नहीं दिख रही है। जिस विदेशी निवेश के सहारे अर्थव्यवस्था को संभालने और रोजगार पैदा करने की नीतियों को अपनाया गया था, उसका परिणाम अलग ही देखने को मिलने लगा। उदारीकरण की नीतियों से निजीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाने लगा और सार्वजनिक क्षेत्र के जो बड़े उपक्रम रोजगार सृजन करते थे, उनकी भागीदारी धीरे धीरे कम होने लगी। इस नीति ने न केवल विदेशी पूंजी का आयात किया, बल्कि घरेलू पूंजीपतियों को भी बढ़ावा दिया। लिहाजा पिछले दशकों से दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में अनेक भारतीय पूंजीपतियों का नाम भी शामिल हो रहा है।

निजी हाथों में पूंजी के संकेंद्रण ने राज्य के हाथों में रोजगार देने की क्षमता छीन ली। नौकरियों में स्थायित्व की जगह संविदा और ठेके की व्यवस्था होती जा रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों में भी स्थायी नौकरी की जगह अस्थायी नौकरी की व्यवस्था कर दी गई है। इसमें कोई शक नहीं है कि देश के युवाओं के लिए रोजगार की राह आज मुश्किल दौर में है। ऐसे में समय आ गया है जब सरकार को रोजगार को लेकर स्पष्ट नीति बनानी चाहिए और स्वरोजगार के लिए एक स्पष्ट खाका बनाना चाहिए। स्वरोजगार में भी पारदर्शिता के साथ युवाओं को अपनी क्षमता और योग्यता के हिसाब से विभिन्न सेक्टरों में अभिरुचि के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
देश में बढ़ती बेरोजगारी से युवाओं में असंतोष तो पैदा होता ही है, साथ में यह भी मांग करता है कि रोजगार के विषय पर देश में खुलकर बहस हो और राजनीतिक पार्टयिों के घोषणा पत्रों में इसे मुख्य एजेंडे के तौर पर शामिल किया जाए। साथ ही, इस पर अमल करते हुए यह बात सुनिश्चित हो कि देश में रोजगार के तमाम नए अवसर सृजित किए जाएंगे, ताकि युवाओं को आसानी से रोजगार उपलब्ध हो। सभी को यह समझना होगा कि देश का युवा खुश एवं समृद्ध होगा, तब जाकर देश तरक्की के नए आयाम को हासिल कर सकेगा।


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