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- अधूरी शिक्षा
Written by जनसत्ता: भारत में शिक्षा प्रणाली इतनी छिद्रपूर्ण है कि यह विद्यार्थी को कुशल बनाने के बजाय एक संगणित प्राणी के रूप में तब्दील कर देती है। आज व्यावहारिक शिक्षा बस नाम की है। जिस तरीके से शिक्षा संस्थानों द्वारा केवल सैद्धांतिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाता है, यह कहना अनुचित नहीं है। आज स्थिति कुछ ऐसी है कि विद्यार्थी व्यावहारिक शिक्षा न होने के कारण सामाजिक, नैतिक तथा कौशल शिक्षा से वंचित रहता है।
यहां ऐसे कर्मचारियों की अपेक्षा की जाती है, जिनके पास उद्योगों में काम करने का ज्ञान और व्यावहारिक अनुभव हो। पर शिक्षण संस्थान सैद्धांतिक शिक्षण को प्राथमिकता देने के बावजूद इस आवश्यकता को पूरा नहीं कर पाते। हाल में जारी शिक्षा रिपोर्ट भी कहती है कि भारत में जो शिक्षा प्रदान की जाती है उसमें नब्बे प्रतिशत सैद्धांतिक पक्ष होता है। यानी विद्यार्थी के पास शिक्षा संस्थानों में रचनात्मक सीखने और सोचने के लिए जगह न मात्र के बराबर है।
हकीकत यही है कि छात्रों को हमेशा विशिष्ट पाठ्यक्रमों के लिए बाध्य किया जाता है, जिससे विधार्थियों की सोच का दायरा सीमित तो होता ही है, उनका पूर्णत: विकास नहीं हो पाता है। फिलहाल नई शिक्षा नीति से यह उम्मीद जताई जा रही है कि शिक्षा प्रणाली में सुधार होगा। अगर हमें भारत को विकासशील देशों की सूची से निकाल कर विकसित देशों की सूची में शामिल कराना है तो अपनी शिक्षा प्रणाली में कुछ सुधार कर उसे लचीला, मजबूत तथा व्यावहारिक बनाना होगा।
तमाम एशियाई और अफ्रीकी देश, जो बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में साम्राज्यवादी चंगुल से मुक्त हुए, वे अपनी आजादी की लड़ाई से कोई सबक नहीं सीख सके। इसके चलते वहां लोकतंत्र आज बेहाल अवस्था में है। दरअसल, वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना और उसे लंबे समय तक कायम रखने के लिए संबंधित देश के जनमानस का विशिष्ट प्रकृति का होना जरूरी है।
विविधता जनित सह-अस्तित्व को स्वीकार करने से ऐसा जनमानस तैयार होता है। मगर इसके लिए सामंती चोला उतार फेंकना होता है। दुर्भाग्य से पाक सेना और नेतृत्व में शुरू से ऐसे सामंती तत्त्व हावी रहे, जिसका नतीजा है कि कभी वहां वास्तविक लोकतंत्र स्थापित हुआ ही नहीं। पाकिस्तानी आमजन को लोकतांत्रिक मानस के अनुरूप खुद को ढालना होगा। पर, दिक्कत यह है कि इसकी शुरुआत कैसे होगी और कौन करेगा?