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- सामुदायिक वानिकी से आय...

आज के हालात में भारतवर्ष में रोजगार सृजन एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है। जिन राज्यों के पास पर्याप्त वन भूमि है, वे सामुदायिक वानिकी के माध्यम से बड़े पैमाने पर आय और रोजगार सृजन कर सकते हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने इस दिशा में एक अच्छा प्रयोग करने का साहस किया है, जिसमें वन विभाग, ग्राम वन विकास समिति और स्वयं सहायता समूह में समझौता होगा। इस समझौते के अंतर्गत बांस उत्पादन के लिए स्वयं सहायता समूह को भूमि आबंटित की जाएगी। समूह को अच्छी बांस की पौध दी जाएगी और मनरेगा के तहत रोपण कार्य की मजदूरी भी दी जाएगी। समूह चार-पांच वर्ष में प्रति हेक्टेयर 2-3 लाख रुपए कमाने लगेगा और यह आय 40-50 वर्ष तक जारी रहेगी क्योंकि बांस का पौधा 40-50 वर्ष तक उपज देता रहता है। पर्वतीय क्षेत्रों में इस योजना में और भी सुधार किया जा सकता है। ऐसे बांस रोपण क्षेत्रों में यदि 50 फीसदी में बांस और शेष में फल, चारा, दवाई प्रजातियों के पेड़ लगाए जाएं तो विविधता पूर्ण आय के स्रोत खड़े हो सकते हैं। किसान पशुपालन को भी बढ़ा सकते हैं और फल बिक्री से भी आय कमा सकते हैं। सरकार को कार्बन क्रेडिट का लाभ मिल सकता है। वर्तमान परिस्थिति में जहां-जहां वन अधिकार क़ानून के तहत समुदायों को सामुदायिक अधिकार मिल चुके हैं वहां ग्राम वन प्रबंध समिति उस एक्ट के तहत बनाई जा सकती है जो ज्यादा स्थायी और क़ानून द्वारा पुष्ट आधार होगा। दुनिया में भारतवर्ष दूसरे नंबर का बांस उत्पादक है।
सोर्स- divyahimachal
