सम्पादकीय

असंयमित बोल

Subhi
10 Oct 2022 5:34 AM GMT
असंयमित बोल
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उनका मकसद अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर वार करना अधिक होता है। मगर इस तरह कई बार उनकी बातों या बयानों से सामाजिक ताने-बाने पर असर पड़ना शुरू हो जाता है।

Written by जनसत्ता: उनका मकसद अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर वार करना अधिक होता है। मगर इस तरह कई बार उनकी बातों या बयानों से सामाजिक ताने-बाने पर असर पड़ना शुरू हो जाता है। अपने विपक्षी पर किया वार पलट कर उन्हीं को आ लगता है। यही हुआ दिल्ली सरकार के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम के साथ।

कुछ दिनों पहले दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम का एक वीडियो प्रसारित हुआ, जिसमें कुछ लोग कथित रूप से शपथ लेते दिखाई देते हैं कि वे हिंदू देवी-देवताओं को नहीं मानेंगे, न उनकी पूजा करेंगे। उस कार्यक्रम के मंच से दिल्ली सरकार के समाज कल्याण मंत्री भी यह शपथ लेते या दिलाते नजर आते हैं। इसे लेकर भाजपा ने आम आदमी पार्टी पर हमला शुरू कर दिया है। गौतम के खिलाफ थाने में शिकायत भी दर्ज कराई गई है। जब यह मामला तूल पकड़ने लगा तो पहले गौतम ने सफाई दी कि वे भगवान बुद्ध के अनुयायी हैं और उनकी आस्था को संवैधानिक रूप से चुनौती नहीं दी जा सकती, भाजपा इसे नाहक तूल दे रही है। फिर उन्होंने कहा कि वे सभी देवी-देवताओं के प्रति सम्मान रखते हैं। दबाव बढ़ने पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

इन दिनों दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और भाजपा के बीच तनातनी तेज है। दिल्ली सरकार की कथित अनियमितताओं के खिलाफ जांच चल रही है और इस पर अक्सर दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ खड्गहस्त नजर आती हैं। ऐसे में गौतम के बयान ने भाजपा को हमले का एक आसान मौका मुहैया करा दिया है। भाजपा धर्म से जुड़े हर विषय पर आक्रामक रुख अपनाती और उसके जरिए जनाधार मजबूत बनाने का प्रयास करती रही है। गौतम के बयान को लेकर भी वह अब मैदान में है।

स्वाभाविक ही इस मामले में आम आदमी पार्टी को पलट कर हमला करते नहीं बन रहा है। इस समय पूरे देश में धर्म एक संवेदनशील मसला बना हुआ है। उस पर कोई भी रुख सोच-समझ कर लेना पड़ता है। मगर गौतम ने इस पर विचार नहीं किया कि उनके विचारों से भाजपा को कितना लाभ मिल सकता है। बताया जा रहा है कि उनसे दिल्ली के मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल नाराज हैं।

मगर हैरानी की बात है कि उन्होंने अब तक न तो गौतम के खिलाफ कोई कार्रवाई की, न उन्हें कोई नसीहत दी और न ही भाजपा के हमलों पर बचाव किया है। जिम्मेदार पदों का निर्वाह कर रहे लोगों से स्वाभाविक अपेक्षा रहती है कि वे सार्वजनिक जीवन में संतुलित और मर्यादित आचरण करें। बेशक बौद्ध धर्म और भीमराव आंबेडकर के विचारों का पालन करने वाले लोग हिंदू देवी-देवताओं में विश्वास न करते हों, पर यह उनकी निजी आस्था तो हो सकती है, इस आधार पर उन्हें सार्वजनिक रूप से किसी की आस्था को चोट पहुंचाने का अधिकार नहीं मिल जाता।

हालांकि जिस कार्यक्रम का वीडियो प्रसारित हो रहा है, वह बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों का कार्यक्रम था और उसमें बौद्ध धर्म ग्रहण करने वालों को शपथ दिलाई गई थी। इसलिए वे तर्क दे सकते हैं कि उनका इरादा दूसरे धर्म को आहत करने का नहीं था। मगर उस कार्यक्रम में गौतम चूंकि एक मंत्री की हैसियत से उपस्थित थे, इसलिए उनसे मर्यादा पालन की अपेक्षा थी।


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