सम्पादकीय

उत्पादन को प्रोत्साहन: मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देकर किया जा सकता है बेरोजगारी की समस्या का समाधान

Neha Dani
6 March 2021 2:01 AM GMT
उत्पादन को प्रोत्साहन: मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देकर किया जा सकता है बेरोजगारी की समस्या का समाधान
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बेरोजगारी की समस्या का सही तरह समाधान होगा।

मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना यानी पीएलआइ का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने एक बार फिर यह कहा कि सरकार का काम उद्योग चलाना नहीं है। नि:संदेह सरकारों को उद्योग-धंधे चलाने से बचना चाहिए। यह उनका काम भी नहीं है। उनका काम तो समुचित नियम-कानून बनाना और यह देखना है कि उनका सही तरह पालन हो रहा है या नहीं? सब कुछ सरकार करे और यहां तक कि उद्योग-धंधे भी वही चलाए, आज के युग में इस समाजवादी सोच के लिए कोई स्थान नहीं रह गया है। चूंकि इधर प्रधानमंत्री बार-बार यह कह रहे हैं कि सरकार को कारोबार से हाथ खींचना होगा, इसलिए वैसे माहौल की प्रतीक्षा की जा रही है, जिसमें निजी क्षेत्र उद्योग-व्यापार करने के लिए उत्साहित हो। यह माहौल बनाने में राज्य सरकारों को केवल आगे ही नहीं आना चाहिए, बल्कि आर्थिक-व्यापारिक मामलों में नारेबाजी वाली सस्ती राजनीति करने से भी बाज आना चाहिए। प्रधानमंत्री ने घरेलू स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे सुधारों को आगे बढ़ाने की जो बात कही, वह उत्साहजनक तो है, लेकिन बात तब बनेगी, जब भारतीय उद्योगों की उत्पादकता बढ़ाने के ठोस उपाय किए जाएंगे। आज यदि चीन, दक्षिण कोरिया आदि देश मैन्युफैक्चरिंग के मामले में कहीं आगे निकल गए हैं तो अपनी बेहतर उत्पादकता के कारण।

उत्पादकता बढ़ाने की चुनौती को सरकार के साथ उद्योग जगत को भी स्वीकार करना होगा। उसे यह समझना होगा कि उत्पादकता और साथ ही गुणवत्ता के मामले में अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में खरा उतरकर कर ही अभीष्ट की प्राप्ति की जा सकती है। इस दिशा में ठोस प्रयास इसलिए किए जाने चाहिए, क्योंकि दुनिया में चीन के प्रति नाराजगी और अविश्वास के कारण भारत के समक्ष एक अवसर आ खड़ा हुआ है। इस अवसर को भुनाकर ही हमारे उद्योग देश के साथ दुनिया के लिए भी उत्पाद तैयार करने में सक्षम हो सकते हैं। अब जब देश को मैन्युफैक्चरिंग का गढ़ बनाने की कोशिश की जा रही है, तब श्रम कानूनों में सुधार लाने की जो गहन आवश्यकता है, उसकी भी पूíत प्राथमिकता के आधार पर की जानी चाहिए। भारतीय श्रम कानून अप्रासंगिक हो चुके हैं। सभी को और खासकर श्रमिकों के हितैषी होने का दावा करने वालों को यह समझना होगा कि मौजूदा श्रम कानून उद्योगों के विकास के साथ-साथ श्रमिकों के कल्याण में भी बाधक हैं। पुराने पड़ चुके श्रम कानूनों से उद्योग जगत को गति नहीं दी जा सकती। देश वास्तव में मैन्युफैक्चरिंग का गढ़ बने, इसके लिए हर संभव जतन इसलिए भी किए जाने चाहिए, क्योंकि इससे ही बेरोजगारी की समस्या का सही तरह समाधान होगा।





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