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- प्रोत्साहन का परिवेश
Written by जनसत्ता; अच्छी बात है कि वित्त मंत्री का ध्यान अब निवेश आकर्षित करने की तरफ गया है। उन्होंने चिंता जताई है कि घरेलू निवेशक उत्साहित नजर नहीं आ रहे, जबकि विदेशी निवेशक भारत में भरोसा जता रहे हैं। इसलिए उन्होंने भारतीय उद्योग जगत से पूछा कि क्या कारण हैं, जिनकी वजह से वे निवेश को लेकर हिचक रहे हैं। सरकार उद्योग जगत के साथ मिल कर काम करने को इच्छुक है और नीतिगत कदम उठाने को तैयार है।
हालांकि सरकार पहले भी प्रोत्साहन योजना लेकर आई थी, जिसमें विनिर्माण क्षेत्र में निवेश के लिए कर दरों में कटौती की गई थी। मगर उसका अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया है। वित्तमंत्री उद्योग जगत की जरूरतों के मुताबिक उस योजना में कुछ और बदलाव करने को तैयार हैं। दरअसल, दो दिन पहले आए आंकड़ों में औद्योगिक विकास दर का रुख नीचे की तरफ दर्ज हुआ, जो पिछले चार सालों में सबसे निचले स्तर पर है।
यह चिंता का विषय है। औद्योगिक विकास दर के मामले में सरकार औद्योगिक विकास पर अधिक निर्भर होती गई है, जिसके चलते जैसे ही उद्योग जगत लड़खड़ाता है, आर्थिक विकास का ग्राफ ऊपर-नीचे होने लगता है। कोरोना काल के पहले से ही उद्योग जगत की स्थिति ठीक नहीं चल रही है। रही-सही कसर कोरोना की बंदी ने निकाल दी।
हालांकि कोरोना काल और उसके पहले भी सरकार ने प्रोत्साहन योजनाएं चलार्इं, करों में कटौती और कर्ज माफी भी की, मगर उत्पादन उत्साहजनक स्तर पर नहीं पहुंच सका। इसकी वजहें सरकार से छिपी नहीं हैं। अब वित्त मंत्री ने उद्योग जगत की अड़चनों को पहचानने का प्रयास शुरू किया है। आमतौर पर सरकार अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के दावे तो करती रहती है, मगर जमीनी हकीकत को नजरअंदाज किया जाता है। अब अगर एक स्थिति को स्वीकार करने के संकेत हैं तो इसके आधार की पड़ताल भी करनी चाहिए।
उद्योग जगत में निवेश तभी बढ़ता है, जब उसमें उत्पादन और खपत बढ़ती है। केवल उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने से उद्योग जगत में बेहतरी की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसके लिए जरूरी है कि खपत बढ़ाई जाए। निर्यात में कमी और आयात में बढ़ोतरी की वजह से सरकार का व्यापार घाटा काफी बढ़ गया है। यह किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं माना जाता। उत्पादन की खपत बढ़ाने के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में विस्तार जरूरी है। तो वास्तविकता पर ध्यान जाने के साथ उन वजहों की पड़ताल और अड़चनों को दूर करने की जरूरत है, जिनसे उद्योगपति झिझक रहे हैं।
घरेलू बाजार की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। बार-बार मौद्रिक नीति में बदलाव कर रिजर्व बैंक बढ़ती महंगाई को रोकने और बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़ाने का प्रयास करता रहा है। मगर उसके भी नतीजे बहुत उत्साहजनक नजर नहीं आ रहे। यह बात भी सरकार को मालूम है कि बाजार में पूंजी का प्रवाह तभी बढ़ता है, जब नागरिकों की क्रय शक्ति अच्छी हो। क्रय शक्ति अच्छी तभी होती है, जब लोगों की आमदनी बढ़ती है।
आमदनी के लिए रोजगार की जरूरत पड़ती है। रोजगार की दयनीय तस्वीर सभी जानते हैं। सबसे अधिक रोजगार वाले क्षेत्र सूक्ष्म, मध्यम और मझोले उद्योगों की रीढ़ टूट चुकी है। इसलिए सरकार को बड़े उद्योगों के साथ-साथ छोटे उद्योगों के प्रोत्साहन पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। अर्थव्यवस्था में बेहतरी लाना है तो सभी मोर्चों पर सुधार के प्रयास करने होंगे, केवल बड़े उद्योगों के क्षेत्र में नहीं। बाजार बेहतर होगा तो घरेलू और विदेशी निवेशक अपने आप निवेश के लिए आकर्षित होंगे।