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- किसान आंदोलन से उपजे...
किसी भी देश के नेताओं के लिए यह स्वाभाविक है कि वे राजनीति में सक्रिय रहकर अपने दल, कार्यक्रम और विचारधारा को प्रोत्साहन दें। इतिहास ने हमें यह सबक सिखाया है कि जब भी राजनीतिक वर्ग ने अपने संकीर्ण हितों की र्पूित के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की अनदेखी की तो देश को उसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ा। कई बार तो यह कीमत सदियों तक चुकाई गई। हमारी कमजोरियों का लाभ उठाकर देश के दुश्मन अगर अपना पूरा नियंत्रण स्थापित नहीं कर पाए तो भी वे उसे और कमजोर करने में सफल रहे। भारत में ऐसी स्थितियों के तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं। भारतीय इतिहास का सबक स्पष्ट है कि चाहे कोई राजनीतिक दल सत्तारूढ़ हो या फिर विपक्ष में, उसे अपने राजनीतिक एजेंडे की र्पूित करने के लिए किसी भी सूरत में देश के सुरक्षा हितों को तिलांजलि नहीं देनी चाहिए। मैं यह बात इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि फिलहाल देश सुरक्षा चुनौतियों के जोखिम से जूझ रहा है। इन चुनौतियों को देखते हुए राजनीतिक वर्ग के लिए यह आवश्यक है कि वह सुरक्षा चुनौतियों पर अपने राजनीतिक मतभेद भुलाकर किसी आम सहमति पर पहुंचे। व्यापक स्तर पर हो रहे वैचारिक टकराव के बावजूद सुरक्षा संबंधी इन मुद्दों का समाधान निकालना ही होगा, क्योंकि इन मुद्दों पर भारत के भविष्य को लेकर देश-विदेश में सवाल उठ रहे हैं।