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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। लंबी प्रतीक्षा के बाद भारत का शिक्षा जगत पिछले एक साल से नई शिक्षा नीति-2020 को लेकर उत्सुक था। यह बात किसी से छिपी न थी कि स्कूलों और अध्यापकों की कमी, अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम की दुर्दशा, पाठ्यक्रम और पाठ्य सामग्री की अनुपलब्धता और अनुपयुक्तता, शिक्षा के माध्यम की समस्या, मूल्यांकन की उपयुक्तता और पारदर्शिता से जूझ रही शिक्षा व्यवस्था समर्थ भारत के स्वप्न को साकार करने में विफल हो रही थी। प्राथमिक विद्यालय के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि चिंताजनक रूप से निराश करने वाली हो रही थी। कुल मिलाकर शिक्षा की गुणवत्ता दांव पर लग रही थी। एक ओर बेरोजगारी थी तो दूसरी और उपयुक्त योग्यता वाले अभ्यर्थी नहीं मिल रहे थे। कोरोना की महामारी ने जो भी पढ़ाई हो रही थी, उसे चौपट कर दिया। लगभग पूरा एक शिक्षा-सत्र अव्यवस्थित हो गया। ऑनलाइन पढ़ाई और परीक्षा ने शिक्षा की साख को क्षति पहुंचाई। इंटरनेट की व्यवस्था अभी हर जगह नहीं पहुंची है और जहां पहुंची है, वहां भी वह बहुत प्रभावी नहीं है। इस माहौल में नई शिक्षा नीति आशा की किरण सरीखी थी। इसलिए सभी उसके संरचनात्मक और व्यावहारिक पक्षों को लेकर गहन चर्चा में लगे हुए थे।