सम्पादकीय

यूपी में निषाद पार्टी-अपना दल-एसबीएसपी तो छोड़िए नई नवेली जनसत्ता पार्टी भी कांग्रेस पर पड़ी भारी, क्या प्रियंका लेंगी जिम्मेदारी

Rani Sahu
13 March 2022 9:03 AM GMT
यूपी में निषाद पार्टी-अपना दल-एसबीएसपी तो छोड़िए नई नवेली जनसत्ता पार्टी भी कांग्रेस पर पड़ी भारी, क्या प्रियंका लेंगी जिम्मेदारी
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पांच राज्यों में बुरी तरह हार के बाद कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) आज पांचों राज्यों में कांग्रेस की बुरी तरह हुई हार के कारणों पर चर्चा कर रही है

यूसुफ़ अंसारी

पांच राज्यों में बुरी तरह हार के बाद कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) आज पांचों राज्यों में कांग्रेस की बुरी तरह हुई हार के कारणों पर चर्चा कर रही है. पिछले साल 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन नहीं रहा था. इसी तरह इस बार भी पांचों राज्यों में (5 State Assembly Election) कांग्रेस का बंटाधार हो गया है. देश की राजनीति में सबसे ज्यादा अहमियत रखने वाले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सिर्फ 2 सीटें जीत पाई है. यहां वह बीजेपी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन (Samajwadi Party Alliance) की छोटी पार्टियों के मुकाबले भी पिछड़ गई. एक नई पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक भी कांग्रेस के बराबर ही 2 सीटें जीतने में कामयाब रही हैं. इसे लेकर नेहरू-गांधी परिवार एक बार फिर निशाने पर है.
क्या प्रियंका हैं जिम्मेदार
राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठ रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के विरोध प्रदर्शन और अपने खुद की हार के बाद कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. तो क्या प्रियंका गांधी भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हुई दुर्गति की जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस के महासचिव पद से इस्तीफा देंगी?ये सवाल उठना लाज़िमी है. दरअसल लोकसभा चुनाव में भी प्रियंकी गांधी के प्रभारी महासचिव रहते कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी अपनी परंपरागत सीट अमेठी से चुनाव हार गए थे. इस बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी अपना विधानसभा चुनाव हार गए हैं. प्रियंका का लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा एकदम नहीं चला. इस अभियान के तहत चुनाव मैदान में उतारी गईं 140 महिला उम्मीदवारो में से सिर्फ़ एक ही जीत पाई.
राहुल गांधी ने 2019 में प्रियंका गांधी को बड़ी उम्मीदों के साथ उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी थी. प्रियंका गांधी ने भरोसा दिलाया था कि वह 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता की दहलीज़ पर लाकर खड़ा कर देंगी. सत्ता की दहलीज़ पर लाना तो बहुत दूर की बात है वो विधानसभा में बमुश्किल तमाम कांग्रेस को प्रवेश दिला पाईं हैं. कांग्रेस के हलकों में यह सवाल उठने लगा है कि राहुल गांधी हार की जम्मेदारी स्वीकार करके इस्तीफा दे सकते हैं तो प्रियंका गांधी यह कदम क्यों नहीं उठा सकती? कांग्रेस के भीतर ही इस बात की चर्चा है कि प्रियंका गांधी 2019 में राहुल गांधी की तर्ज पर कार्यसमिति की बैठक में महासचिव पद से अपने इस्तीफे की पेशकश कर सकती हैं. वो राहुल गांधी की उम्मीदों पर खऱा नहीं उतरने की स्थिति में राजनीति छोड़ने की भी पेशकश कर सकती हैं.
पांच राज्यों मे कांग्रेस के क्या मिला
पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस ने बेहद निराशाजनक प्रदर्शन किया है. उत्तरस प्रदेश में कई चुनावों बाद कांग्रेस ने सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन कांग्रेस को यहां सिर्फ 2 सीटें ही मिल पाई. वहीं उत्तराखंड में कुल 70 सीटों में कांग्रेस को सिर्फ 19 सीटे ही मिली. जबकि कांग्रेस यहां सत्ता हासिल करने की प्रबल दावेदार थी. यहां एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की सरकार बनने की परंपरा रही है. बीजेपी ने इस परंपरा को तोड़ते हुए कांग्रेस को धूल चटा दी. कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्रीहरीश रावत अपना चुनाव तक नहीं जीत सके. वो पिछले चुनाव में भई दो सीटों से हारे थे. पंजाब में कांग्रेस लाख केशिशों के बावजूद सरकार बचाने में नाकाम रही. पंचाब की कुल सीट 117 सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ 18 सीटें मिली. उसके मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दोनों सीटों से चुनाव हार गए. प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी अपना चुनाव हार गए.गोवा में कुल 40 सीटों में कांग्रेस सिर्फ 11 सीटें जीती.वहीं मणिपुर में कुल 60 सीटों में उसे सिर्फ 5 सीटें ही मिली. इन दोनो राज्यों में उसकी सरकार बनने की संभावना थी.
उत्तर प्रदेश में लुप्तप्राय बनी कांग्रेस
कांग्रेस का सबसे बुरा हाल उत्तर प्रदेश मे रहा. राज्य में वो लुप्तप्राय पार्टी बन कर रह गई है. इस बार कांग्रेस ने अपने अकेले दम पर 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस को सिर्फ 2.33% वोट और दो सीटें मिली हैं. इस चुनाव मे कांग्रेस को सिर्फ क़रीब 21,51,234 वोट मिले हैं. ये आज़ादी के बाद प्रदेश में काग्रेस का सबसे ख़राब प्रदर्शन है. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर 114 सीटों पर चुनाव लड़ा था. तब उसे 7 सीटें और 6.24% वोट मिला था. तब उसे 5416540 वोट मिले थे. 2012 के विधानसभा चुनाव में काग्रेस ने रालोद के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था. तब उसे 355 सीटों पर 11.36%वोट मिले थे. उसे कुल 88,32,895 वोट मिले थे. तब कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थी. इस लिहाज से देखें तो कांग्रेस इस चुनाव में उत्तर प्रदेश की लुप्त प्राय पार्टी बन कर रह गई है.
छोटी पार्टियों का कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए सबसे शर्मनाक बात ये रही कि कभी जो पार्टियां गठबंधन के लिए कांग्रेस का मुंह ताकती थीं, वो कांग्रेस से ज्यादा वोट और सीटें जीत कर विधानसभा में पहुंची है. कांग्रेस के साथ कई बार गठबंधन करने वाली रालोद इस बार सपा से गठबंधन करके अपन डूबती नैया बचाने मैं कामयाब रही. रालोद 3 सीटें पर चुनाव लड़कर 8 सीटें जीती और उसने कांग्रेस से ज़्यादा 2.85% वोट हासिल किया है. हालांकि बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) इस बार बीजेपी और सपा के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. उसने 13 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 जीतीं. उसे 6 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिला है. बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी ने 6 सीटें जीती हैं. सपा की दूसरू सबसे बड़ी सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी 20 सीटों पर चुनाव लड़कर 6 सीटें जीती हैं. एकदम नई नवेली जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी भी 2 सीटें जीतकर कांग्रेस के बराबर आकर खड़ी हो गई है.
नहीं चला प्रियंका का जादू
इस बारस कांग्रेस ने यूपी का विधानसभा चुनाव पूरी तरह से प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व मेंलड़ा. इसमें किसी दूसरे नेता का कोई दख़ल नहीं था. यहां तक कि राहुल गांधी ने भी अमेठी और वाराणसी में दो रैलियां कीं. कई महीनों तक प्रियंका ने खुद को प्रदेश की राजनीति में झोंक दिया और विपक्ष की ओर से सशक्त आवाज बन गईं. उन्होंने हाथरस, लखीमपुर, उन्नाव आदि जैसे मुद्दे उठाकर यूपी सरकार पर जमकर निशाना साधा. लखीमपुर खीरी में हुए तिकुनिया कांड के बाद वह देर रात ही लखनऊ से लखीमपुर रवाना हो गईं, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार तक कर लिया गया. प्रियंका लगातार दावे करती रहीं कि जब भी प्रदेश में कोई बड़ा मुद्दा उठाया तो वह उनकी पार्टी ने ही उठाया. प्रियंका कहती रही हैं कि यूपी में उनकी लड़ाई लंबे समय के लिए है. उनकी ये सारी क़वायद वोटों में तब्दील नहीं हुई.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तक हारे चुनाव
उत्तर प्रदेश के ज़रिए कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति में वापस लामने की कोशिश कर रहीं प्रियंका गांधी को बड़ा झटका ये भी लगा है कि उनकी पसंद के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू खुद अपना चुनाव भी हार गए. वो तमकुहीराज सीट से तीसरे नंबर पर रहे. जबकि इस सीट पर वो 2012 और 2017 में लगातार दो चुनाव जीते हैं. इस बार बीजेपी गठबंधन की निषाद पार्टी के डॉ. असीम कुमार ने उन्हें 11,4957 मत हासिल करते हुए समाजवादी पार्टी के उदय नारायण गुप्ता को हरा दिया. लल्लू को इस चुनाव में 33,496 वोट मिले हैं. पिछले चुनाव में उन्होंने 60,980 वोट हासिल करके बीजेपी के जगदीश मिश्रा को करीब 17 हज़ार वोटों से हराया था. 2012 के विधानसभा चुनाव में लल्लू ने 53,121 वोट हासिल किए थे. तब उन्होंने बीजेपी के नंद किशोर मिश्रा को पांच हज़ार से ज़्यादा वोटों से हराया था. इस बार उन्हें पिछले तीनों चुनाव में सबसे कम वोट मिले और वो तीसरे स्थान पर खिसक गए.
हार के बाद कांग्रेस में सिर फुटव्वल
पांच राज्यों में बुरी तरह हार के बाद कांग्रेस में सिर फुटव्वल होना लाज़िमी है. कांग्रेस की दुर्गति को देखते को देखते हुए पार्टी में सिर फुटव्वल तो होना ही था. वो शुरू हो चुका है. इस मामले पर सबसे पहले शशि थरूर ने सवाल उठाए. उन्होंने कहा, 'जो भी कांग्रेस पर भरोसा रखते हैं उन्हें चुनावी नतीजों से दुख हुआ है. ये भारत के उस विचार को मज़बूत करने का समय है जिसके लिए कांग्रेस खड़ी है और देश को सकारात्मक एजेंडा देती है. ये हमारे संगठनात्मक नेतृत्व को इस तरह सुधारने का समय है जो उन विचारों में फिर से जान भर दे और लोगों को प्रेरित करे. एक बात साफ़ है- सफ़ल होने के लिए परिवर्तन अनिवार्य है.' शशि थरूर के इस ट्वीट के बाद दिल्ली में गुलाम नबी आजाद के घर उन कांग्रेस नेताओं की बैठक भी हुई जो लंबे वक्त से पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं और जिन्हे जी-23 के नाम से जाना जाता है. इन हालात में हो रही कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. इसमें जमकर बवाल हो सकता है. इसमें लंबे समय से लटके पड़े कांग्रेस के अध्यक्ष के लिए होने वाले चुनाव पर भी फैसला होना है. बैठक में इन्हें जल्दी कराने की मांग उठ सकती है. वहीं सोनिया गांधी इन्हें कुछ और समय के लिए टाल सकती हैं. प्रियंका गांधी के क़दम पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई हैं.
Rani Sahu

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