सम्पादकीय

दोहरे व्यक्तित्व के इस दौर में हर इंसान भीतर कुछ, बाहर कुछ है

Gulabi Jagat
6 May 2022 8:33 AM GMT
दोहरे व्यक्तित्व के इस दौर में हर इंसान भीतर कुछ, बाहर कुछ है
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दिलों को जीतने का फन कुछ लोगों में जन्मजात ही होता है
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
दिलों को जीतने का फन कुछ लोगों में जन्मजात ही होता है। आदिगुरु शंकराचार्य उनमें से एक थे। किसी की बुद्धिमत्ता की चरम सीमा देखना हो तो पुराने समय में रावण और उसके बाद शंकराचार्य। रावण ने अपनी बुद्धि का दुरुपयोग किया, शंकराचार्य उसका सदुपयोग कर गए। उन्होंने आत्मा और परमात्मा पर जमकर काम किया। उनका सारा ज्ञान इस बात की प्रेरणा था कि देह से ऊपर उठें, आत्मा तक जाएं।
जब हम आत्मा पर टिकते हैं तो भीतर से बहुत सरल हो जाते हैं। दिल में जो होता है, उसे प्रकट करने लगते हैं। लेकिन, ऐसे लोग बहुत कम लोग होते हैं। दोहरे व्यक्तित्व के इस दौर में हर इंसान भीतर कुछ, बाहर कुछ है। शंकराचार्यजी ने कहा था देह का मिल जाना (स्त्री या पुरुष बन जाना) पर्याप्त नहीं है।
इससे आगे बढ़कर आत्मा को छूना ही पड़ेगा। पुल पार करेंगे तो पुल ही पार होगा। नदी पार कर ली, ऐसा नहीं माना जाएगा। नदी पार करने के लिए तो कूदना पड़ता है। ऐसे ही केवल देह मिल जाने से परमात्मा नहीं मिलता। वह मिलता है आत्मा के स्पर्श से।
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