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भाजपा ने 4-1 की जीत के साथ यह साबित कर दिया कि निकट भविष्य में उसका मुकाबला करना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं है
प्रदीप गुप्ता। पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में करीब दो महीने तक चले विधानसभा चुनावों के परिणाम सामने आ गए। इसी के साथ योगी आदित्यनाथ फिर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने को तैयार हैं। यह देश की राजनीति में एक बड़ा मोड़ है। उत्तर प्रदेश में सपा और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला था, लेकिन राशन और प्रशासन के असर ने अन्य लोगों के साथ महिला मतदाताओं का रुख भाजपा की ओर करने में प्रमुख भूमिका निभाई। प्रदेश में समाज कल्याण के लिए शुरू की गई योजनाओं और इंटरनेट मीडिया पर चलाए गए प्रचार अभियान ने भी अपना रंग दिखाया, जिसके चलते भाजपा पर लोगों का भरोसा मजबूत हुआ। इसके अलावा भाजपा ने अपने चुनाव अभियान के दौरान आवास, पेंशन, किसान सम्मान निधि, शौचालय, कामगारों के लिए कैश-क्रेडिट, ई-श्रम कार्ड और कानून एवं व्यवस्था में सुधार को भी मुद्दा बनाया। यह कारगर रहा।
भाजपा ने 4-1 की जीत के साथ यह साबित कर दिया कि निकट भविष्य में उसका मुकाबला करना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं है। चुनाव वाले राज्यों में भाजपा पर कई तरह के आरोप लगाए गए। जैसे उत्तर प्रदेश में हाथरस कांड, कोविड कुप्रबंधन, महंगाई और बेरोजगारी आदि के लिए योगी सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया, लेकिन चुनाव परिणामों पर इन आरोपों का कुछ खास असर नहीं दिखा। भाजपा ने अपने मौजूदा वोट बैंक के साथ-साथ जाटव और ओबीसी के वोट भी हासिल कर एकतरफा जीत हासिल की। पार्टी ने महिलाओं को अपनी हर योजना का मुख्य लाभार्थी बनाकर उनके वोट भी अपने नाम कर लिए। हालांकि प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' नारा देकर महिलाओं का ध्यान खींचने की कोशिश की, लेकिन धरातल पर किए गए कामों और महिला सुरक्षा के कारण भाजपा ने बड़ी संख्या में महिलाओं के वोट हासिल करने में सफलता पाई। विपक्ष जहां बेरोजगारी, पक्षपात, कृषि कानूनों, लखीमपुर खीरी कांड के मुद्दों पर भाजपा को घेरने की कोशिश में था, वहीं राम मंदिर, काशी विश्वनाथ धाम, पूर्वांचल एक्सप्रेस के साथ मोदी लहर ने न केवल पूर्वांचल में अपना जोर बनाए रखा, बल्कि पूरे प्रदेश में मोदी ब्रांड का दबदबा बनाया। कांग्र्रेस तमाम उपाय आजमाने के बावजूद मतदाताओं का भरोसा जीतने में नाकाम रही। वहीं दलितों ने भी इस बार बसपा से किनारा कर लिया। पिछड़े वर्ग के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की पराजय क्षेत्र में भाजपा के प्रभाव का आभास कराती है। स्वामी प्रसाद का पलायन उन्हीं के लिए घातक साबित हुआ। फाजिलनगर में भाजपा प्रत्याशी ने उन्हें लगभग 45 हजार वोटों के भारी अंतर से हराया। स्वामी प्रसाद पांच बार विधायक रह चुके हैं। पिछले चुनाव में वह बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। माना जा रहा था कि उनका जाना भाजपा के लिए बहुत नुकसानदायक साबित होगा, लेकिन चुनाव नतीजों ने साफ कर दिया कि फिलहाल मोदी-योगी की जोड़ी का कोई तोड़ नहीं।
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड ने भी राष्ट्रहित, देश की सुरक्षा, धार्मिक पर्यटन और सैनिक कल्याण जैसे मुद्दों पर भाजपा को वोट दिया। कांग्रेस द्वारा नौकरियां देने, महंगाई से निपटने, सस्ती एलपीजी उपलब्ध कराने के वादे यहां भी नहीं टिक पाए। प्रधानमंत्री यहां गृहमंत्री के साथ तीन दिनों तक रहे। मोदी ब्रांड के सहारे भाजपा बार-बार मुख्यमंत्री बदलने के कारण हुई राजनीतिक उथल-पुथल और कोविड प्रबंधन पर उठ रहे सवालों से निपटने में सफल रही। हालांकि पुष्कर सिंह धामी अपनी ही सीट बचाने में नाकाम रहे।
पंजाब ने साफ तौर आम आदमी पार्टी को चुना। अपने वोटों में 17 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 'आप' ने शानदार जीत हासिल की। यहां कई बड़े चेहरों को हार का सामना करना पड़ा। दलित मुख्यमंत्री चन्नी के सहारे खुद को दलित हितैषी साबित करने की कोशिश कांग्रेस के काम नहीं आई। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने पहली बार 92 सीटों पर जीत हासिल कर इतिहास रचा। संभव है कि आने वाले समय में आम आदमी पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उभरे और केजरीवाल एक राष्ट्रीय नेता के रूप में अपनी जगह बना लें। भविष्य में उत्तर भारत में आम आदमी पार्टी भाजपा के सामने प्रतिद्वंद्वी के रूप में भी उभर सकती है, क्योंकि कांग्रेस लगातार सिमटती जा रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि दिल्ली माडल पंजाब में कारगर साबित हुआ। शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस की हार मतदाताओं की उनसे नाराजगी को ही उजागर करती है। पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की नई पंजाब लोक कांग्रेस के भाजपा से जुडऩे का भी कोई असर नहीं हुआ। यहां भाजपा को कैडर न होने का नुकसान उठाना पड़ा। बदलाव की चाह में पंजाब ने 'आप' को चुना। अब यह देखना रोचक होगा कि आने वाले समय में आम आदमी पार्टी पंजाब में कैसी पारी खेलती है?
मणिपुर में भी भाजपा के लिए राशन, प्रशासन और महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करना कारगर साबित हुआ। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने बड़ी जीत हासिल की। गोवा में भी भाजपा ने प्रमोद सावंत के चेहरे के साथ मोदी के भरोसे चुनाव लड़ा और विकास को प्रमुख मुद्दा बनाया। भाजपा ने यहां 40 में से 20 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी रणनीति को सही साबित किया। कुल मिलाकर 2024 के लिए चुनावी माहौल तैयार करते हुए मतदाताओं ने यह संदेश दे दिया है कि भाजपा अपनी प्रतिद्वंदी पार्टियों से बहुत आगे है। यह संदेश ऐसे समय आया है, जब देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का दबदबा लगातार कम होता जा रहा है।
(लेखक एक्सिस माई इंडिया के सीएमडी हैं)
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