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- कृषि कानून विरोधी...
चंद किसान संगठनों की ओर से जारी कृषि कानून विरोधी आंदोलन जिस तरह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा, वह केवल किसान नेताओं की जिद को ही जाहिर नहीं करता, बल्कि यह भी बताता है कि वे किस तरह किसानों के साथ छल करने में लगे हुए हैं। जो किसान नेता यह बहाना बनाने में लगे हुए थे कि उनका राजनीतिक दलों से कोई लेना-देना नहीं, वे इन दिनों बंगाल के दौरे पर हैं और ममता बनर्जी को जिताने की अपील करने में लगे हुए हैं। उनकी इस पैंतरेबाजी से उन्हेंं खुलकर समर्थन देने वाले वाम दल भी असहज हैं। यह तो समझ आता है कि किसान नेता चुनाव वाले राज्यों में पहुंचकर भाजपा को हराने की अपील करें, लेकिन किसी के लिए भी यह समझना कठिन है कि आखिर वे बंगाल पहुंचकर उस ममता सरकार की पैरवी कैसे कर सकते हैं, जिसने संकीर्ण राजनीतिक कारणों से अपने राज्य के किसानों को किसान सम्मान निधि से वंचित कर रखा है? साफ है कि इन किसान नेताओं को आम किसानों के हितों की कहीं कोई परवाह नहीं। यह इससे भी स्पष्ट होता है कि वे उस नियम का विरोध करने के लिए आगे आ गए हैं, जिसके तहत केंद्र सरकार ने यह तय किया है कि सरकारी खरीद वाले अनाज का पैसा सीधे किसानों के खाते में जाएगा। यह व्यवस्था किसानों को बिचौलियों और विशेष रूप से आढ़तियों की मनमानी से बचाने के लिए की गई है, लेकिन हैरानी की बात है कि किसान नेताओं को यह रास नहीं आ रहा है। आश्चर्यजनक रूप से पंजाब सरकार भी इस व्यवस्था से कुपित है।