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Written by जनसत्ता: भारत में वायु प्रदूषण से हालात इतने बदतर हो गए हैं कि लोगों की औसत उम्र तक पर इसका असर पड़ रहा है। हाल में शिकागो विश्वविद्यालय ने वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक संबंधी जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें स्पष्ट कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण भारत में औसत उम्र पांच साल कम हो गई है। जबकि दुनिया में यह आंकड़ा 2.2 का है। इस लिहाज से देखें तो भारत की हालत सबसे ज्यादा चिंताजनक है।
वैसे भी बांग्लादेश के बाद भारत दुनिया का सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण वाला देश माना जाता है। हालांकि वायु प्रदूषण फैलाने में दूसरे देश भी कम पीछे नहीं हैं। इनमें चीन कहीं आगे है। लेकिन उसने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए उपाय शुरू कर दिए हैं और दीर्घावधि की योजनाएं लागू की हैं जिनके ठोस नतीजे सामने आने भी लगे हैं। जबकि भारत में ऐसे उपाय अब तक होते नहीं दिखे जो वायु प्रदूषण से लोगों को निजात दिला सकें।
वैसे भी वायु प्रदूषण को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन, पर्यावरण शोध संस्थानों और विश्वविद्यालयों की अब तक जितनी भी रिपोर्टें आई हैं, उनमें सबसे खतरनाक स्थिति भारत की ही रहती है। दुनिया के सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण वाले शीर्ष दस-बीस शहरों में भारत के एक या दो नहीं, बल्कि दस से ज्यादा शहर शुमार रहते हैं। यह खतरनाक स्थिति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
भारत में वायु प्रदूषण की समस्या पिछले तीन-चार दशकों में तेजी से बढ़ी है। शहरीकरण और देश में वाहनों की बढ़ती संख्या तो बड़ा कारण हैं ही, र्इंधन के पारंपरिक स्रोत, कारखानों से निकलने वाला धुआं, निर्माण संबंधी गतिविधियां और कूड़े-कचरे को आग के हवाले करना भी प्रदूषण का बड़ी वजह है। पराली जलाने से मुक्ति अभी भी नहीं मिल पाई है।
हर साल अक्तूबर-नवंबर के महीने में ज्यादातर राज्यों में किसान खेतों में पराली जलाते ही हैं। इसका असर यह होता है कि दो-ढाई महीने उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में वायु प्रदूषण गंभीर खतरे के स्तर के ऊपर ही बना रहता है। ऐसे में सांस लेने के लिए साफ हवा मिलेगी कहां से? शिकागो विश्वविद्यालय की रिपोर्ट बता रही है कि भारत में जहां औसत उम्र पांच साल घटी है, वहीं राजधानी दिल्ली में रह रहे लोगों की औसत उम्र दस साल कम हुई है। इसके अलावा, देश की तिरसठ फीसद आबादी बेहद खराब हवा में सांस लेने को मजबूर है। यह रिपोर्ट इस बात की चेतावनी देती है कि अगर हम अभी भी नहीं संभले तो अगले एक-दो दशक में हालात और विस्फोटक रूप ले सकते हैं।
इस रिपोर्ट के निष्कर्षों को समाधान के संदर्भ में देखने की जरूरत है। रिपोर्ट में हालांकि वायु प्रदूषण के लिए भारत को जरा ज्यादा ही जिम्मेदार ठहराया गया लगता है। जबकि हकीकत है यह है कि अमेरिका सहित यूरोप के कई देश भी इसके लिए समान रूप दोषी हैं। पर भारत की असलियत यह है कि वायु प्रदूषण से निपटने के उपायों को लेकर हमारी प्रगति की रफ्तार सुस्त बनी हुई है।
कुछेक बड़ों शहरों को छोड़ दें तो आज भी गांव-कस्बों और मझोले शहरों की हालत अच्छी नहीं है। डीजल वाहन, जनरेटर आदि धड़ल्ले से चलते हैं। घरों में लकड़ी, कोयला आज भी जलाया ही जा रहा है। यहां तक कि भारत में ज्यादातर बिजलीघर भी कोयले से ही चलने वाले हैं। ये सब देख लगता नहीं कि वायु प्रदूषण से निपटना केंद्र और राज्य सरकारों की प्राथमिकता में शामिल है। ठोस और दूरदृष्टि वाली नीतियों का अभाव साफ दिखता है। ऐसे में वायु प्रदूषण कैसे कम हो, यह बड़ा सवाल है।