सम्पादकीय

नए साल में नई के साथ बड़ी भी हैं सभी राजनीतिक दलों की चुनौतियां, सभी का होगा कड़ा इम्तिहान

Gulabi
1 Jan 2022 1:51 PM GMT
नए साल में नई के साथ बड़ी भी हैं सभी राजनीतिक दलों की चुनौतियां, सभी का होगा कड़ा इम्तिहान
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राजनीतिक दलों की चुनौतियां
डा. एके वर्मा। चुनाव आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव समय पर कराने के स्पष्ट संकेत से 2022 का स्वागत चुनावी जोश से हो रहा है। जुलाई 2022 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। इसलिए नए राष्ट्रपति का चुनाव भी नए वर्ष का एजेंडा होगा। चुनावी राज्यों में पंजाब के अलावा भाजपा की सरकारें हैं। नतीजे न केवल भाजपा के लिए, वरन राष्ट्रपति के चुनाव और सरकार की राज्यसभा में स्थिति के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि ममता बनर्जी विपक्ष का नेतृत्व हासिल कर पाती हैं या नहीं?
नए वर्ष में जनता विपक्ष के सकारात्मक स्वरूप की उम्मीद करती है। पिछले वर्ष विपक्ष के असंसदीय व्यवहार ने जनता को निराश किया। ऐसा संकेत गया कि विपक्ष संसद में गतिरोध पैदा कर सार्थक चर्चा से बचता रहा। अपनी बात को जनता के समक्ष रखने का सबसे प्रभावी मंच तो संसद है, लेकिन विपक्ष उसके इस्तेमाल में विफल रहा। इससे लगता है कि विपक्ष के पास रचनात्मक और सकारात्मक विचार नहीं।
कांग्रेस को जून 2022 में नया अध्यक्ष चुनना है। 1885 में पार्टी की स्थापना से लेकर आज तक कोई ऐसा नेता नहीं हुआ, जो लगातार 22-23 वर्षो तक अध्यक्ष रहा हो, पर सोनिया गांधी ने पूर्ववर्ती अध्यक्षों को पछाड़ दिया। वह अप्रैल 1998 से कांग्रेस अध्यक्ष हैं। बीच में डेढ़ वर्ष के लिए उन्होंने राहुल को अध्यक्ष बनाया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में नेतृत्व को लेकर जो छटपटाहट दिखाई दे रही है और जो उनको पार्टी से दूर कर रही है, उससे लगता है कि कांग्रेस अब दो प्रकार के अध्यक्षों की नियुक्ति करेगी-कार्यकारी और प्रभावी।
पार्टी कई कार्यकारी अध्यक्ष बना सकती है, जो सोनिया और राहुल के निर्देशन में काम करें। यह वही माडल है जो सोनिया के प्रधानमंत्री न बन पाने पर कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर सरकार में लागू किया था। वही प्रयोग अब संगठन में करने की कोशिश की जा रही है अर्थात उत्तरदायित्व विहीन शक्ति केंद्र। ऐसा कर पार्टी इस संभावना पर काम कर रही है कि यदि भाजपा सत्ता से बाहर हो तो राहुल को प्रधानमंत्री पद पर बैठाया जा सके।
आज देश की जनसंख्या 140 करोड़ से अधिक है। यदि जनशक्ति के इस प्रवाह को बांधा नहीं गया तो यह सुनामी बन हमारे विकास को ध्वस्त कर देगी। जब भी जनसंख्या नियंत्रित करने की बात होती है तो उसे एक समुदाय पर अंकुश से जोड़ दिया जाता है, पर इस चुनौती से सबको मिलकर लड़ना है, अन्यथा एक ऐसी स्थिति आ जाएगी कि संभाले नहीं संभल पाएगी।
नए वर्ष में भाजपा की चुनौती भी गंभीर है। उसने संसदात्मक व्यवस्था को अध्यक्षात्मक व्यवस्था में बदलने की शुरुआत की है। ऐसा प्रयास इंदिरा गांधी ने किया था, जब राजनीतिक व्यवस्था को प्रधानमंत्रीय व्यवस्था के रूप में देखा गया। प्रधानमंत्री मोदी भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्रियों और अन्य नेताओं की भूमिका सीमित हुई है, लेकिन इंदिरा या किसी पूर्व प्रधानमंत्री के मुकाबले मोदी का जनता से बेहतर संवाद है, लेकिन इससे मोदी के मंत्री, सांसद और विधायक कुछ निष्क्रिय और अपनी विजय के प्रति आश्वस्त हो गए हैं। हालांकि प्रधानमंत्री ने हाल में उनको इसके प्रति सावधान किया और चेतावनी भी दी।
नए वर्ष की राजनीतिक संभावनाओं को विगत वर्षो की प्रवृत्तियों से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में दो बातें साफ हैं। एक, देश में विकास और जनसेवाओं को जमीन पर प्रभावी ढंग से लागू किया गया है। दो, राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलाव आया है। मोदी को लोगों ने परिवर्तन के प्रतीक के रूप में देखा है, जिन्होंने तात्कालिक लाभ की जगह दूरगामी हितों पर विशेष ध्यान दिया है।
परंपरागत असंबद्धता को छोड़कर अब हम सभी देशों से सक्रिय संवाद और संबंध रखते हैं, जिससे हम अपने राष्ट्रीय हितों को बेहतर सुरक्षित कर सकें। भारत न केवल अधिक राष्ट्रवादी हो रहा है, वरन अधिक अंतरराष्ट्रीयवादी भी। इससे हम विश्व में छठवीं आर्थिक शक्ति के रूप में उभरे हैं और कुछ वर्षो में तीसरी आर्थिक-शक्ति बन सकते हैं। विश्व मंचों पर आज भारत की आवाज सुनी जा रही है और हम वैश्विक एजेंडे को प्रभावित कर रहे हैं।
देश में 42 करोड़ जनधन खातों और मुद्रा योजना में वितरित 15 लाख करोड़ रुपये से एक ऐसे वर्ग को वित्तीय समावेशन मिला है, जिसे सरकार ने पीने के पानी, शौचालय, स्वास्थ्य और एक छत की व्यवस्था को वास्तविक स्वरूप दे उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने का मार्ग प्रशस्त किया है। नवउद्यमियों को राष्ट्र निर्माता की मान्यता दे आर्थिक विकास, आयात-निर्यात असंतुलन कम करने और नई-नई नौकरियों की संभावनाएं बढ़ी हैं। सरकार नौकरी प्रदाता के रूप में अपनी भूमिका सीमित कर शासन पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
महिला सशक्तीकरण में सरकार ने बेहतर काम किया है। सेना में कमीशन, तीन तलाक से छुटकारा और पैतृक संपत्ति में हिस्सा-ये ऐसे काम हैं जिनसे महिलाओं के विकास और सशक्तीकरण को पंख लगेंगे। सरकार के लिए धन जुटाना भी समस्या रही है, जिसे उसने आयकर और जीएसटी के माध्यम से ठीक किया है। 2014 के मुकाबले आज 117 प्रतिशत ज्यादा लोग एक करोड़ से अधिक आय दिखा रहे हैं तथा आयकर रिटर्न फाइल करने में 103 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। खाते में सीधे पैसे भजने से बिचौलियों का खेल खत्म हुआ है। आधार से जुड़ने के कारण फर्जी खाते बंद हुए हैं।
मोदी सरकार ने देश की समृद्ध विरासत और आधुनिक-प्रौद्योगिकी का अद्भुत सम्मिलन किया है। देश उसका लाभ उठाता रहेगा। मीडिया जरूर मोदी सरकार के प्रति उदार नहीं रहा और उसकी उन बातों पर ध्यान नहीं दिया, जिसका श्रेय उसे मिलना चाहिए। प्रमुख यूरोपीय विचारक जान राल्स ने न्याय की अवधारणा के लिए बताया था कि यदि समाज के विभिन्न आर्थिक वर्गो को केवल एक कदम आगे बढ़ा दिया जाए तो उनको न्याय का अहसास होता है। मोदी ने वही किया है। आज गरीबों और छोटे किसानों के खातों में जो थोड़ा-सा धन आ रहा है, वह उनको आर्थिक सुरक्षा और न्याय का अहसास दिलाता है। यह सिलसिला इस नए वर्ष में भी कायम रहना चाहिए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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