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आदरणीय श्रीमती कोरोना जी! आपको दूर से ही प्रणाम
कमल किशोर सक्सेना। आदरणीय श्रीमती कोरोना जी! आपको दूर से ही प्रणाम। दूसरों की पत्नियों को पत्र लिखना मेरे जैसे संस्कारित व्यक्ति के स्वभाव में नहीं है, परंतु आपके पति की करतूतें देखकर, संसार के हित में मुझे यह कार्य करना पड़ रहा है। दांपत्य जीवन का इतिहास साक्षी है कि संसार का प्रत्येक प्राणी अपनी पत्नी से डरता है। यहां तक कि जंगल का राजा शेर भी शेरनी को देखकर कुत्ते की तरह दुम हिलाने लगता है। इसी प्राचीन परंपरा का निर्वाह करते हुए आप अपने प्राणोश्वर को हमारे प्राण बख्शने का आदेश दें। मरने-मारने का सिलसिला बहुत हो चुका। अब हमें चैन से रहने दें। आपके पति परमेश्वर ने हमारी सहनशक्ति की सारी सीमाएं लांघ डाली हैं।
लाज, शर्म और हया, सबको घोलकर, उनका काकटेल बनाकर, वह पी चुके हैं। ढीठता में पाकिस्तान को पछाड़कर उन्होंने नया रिकार्ड बनाया है। वह समूचा 2019 निगल गए। 2020 में भी उन्होंने डकार नहीं ली। 2021 में वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद सोचा था कि अब झंझट खत्म, लेकिन वाह रे मौत के पर्यायवाची बने आपके प्राणनाथ! वह अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा के बाद हमारी छाती पर दलने के लिए पता नहीं किस देश की मूंग लेकर आ गए।
माना कि 'अतिथि देवो भव:' हमारा सूत्र वाक्य है। आप लोग अतिथि की तरह चीन से आए, हमने सिर-आंखों पर बिठाया, किंतु आप हमारे संपूर्ण शरीर पर ही कब्जा करके बैठ गए। आपकी विस्तारवादी नीति के सामने हम बेबस हो गए और धड़ाधड़ पंचतत्वों में विलीन होने लगे। सदैव से स्वच्छंद विचरण करने वाले हम जैसे यायावरों को आपके पति की वजह से लाकडाउन में कैद रहना पड़ा। साबुन से हाथ धोते-धोते हमारे हाथ की सारी लकीरें साफ हो गईं। भाग्य रेखा दुर्भाग्य में बदल गई और धन की रेखा कंगाली में। हमारा हंसता-खेलता जीवन बस पिद्दी भर के मास्क और दो गज दूरी तक ही सिकुड़कर रह गया है।
हे ओमिक्रोन की जेठानी! आप भी संयुक्त परिवार की कुलवधू हैं। देवर-देवरानी, ननद, भतीजे-भतीजी आपके भी आंगन को गुलजार करते होंगे। उनके मुंडन-कंछेदन, जनेऊ-तिलक और शादी आपके भी समाज में होते होंगे। फिर हमारे यहां इन सब पर ग्रहण लगाना कहां का न्याय है। पिछले दो साल से हमारी सहालगें पितर पक्ष जैसी बीत रही थीं। घोड़ियां दूल्हों को बिठाने को और डीजे दुलत्ती चलाने जैसे डांस को तरस रहे थे। इस वर्ष कुछ उम्मीद बंधी थी कि बारातें निकलेंगी, पैसे लुटाए जाएंगे, अंगूर की बेटी से लिपटे कदम लड़खड़ाएंगे, लेकिन आपकी नई देवरानी (ओमिक्रोन) की आमद से सब गुड़-गोबर होता दिख रहा है। हमारी लड़कियों का बैंड-बाजे के साथ सुहागन बनना स्वप्न बनकर रह गया लगता है।
हे कोरोना साम्राज्य की पटरानी! आपके यहां होता हो या न होता हो, लेकिन हमारे समाज में बच्चों को स्कूल भेजने का रिवाज है। स्कूलों में पढ़कर हमारे बच्चे बड़े अफसर बनते हैं। जो कुछ भी नहीं बन पाते वे नेता बनकर देशसेवा करते हैं। मगर पिछले दो वर्षो से हमारे बच्चे स्कूल जाने को तरस गए। इधर कुछ दिनों से बच्चे पुरानी दिनचर्या में आ ही रहे थे कि डेल्टा की देवरानी आ धमकीं।
हे श्रीमती कोरोना! 'वर्क फ्राम होम' करते-करते हमारे युवा बोर हो चुके हैं। इधर कुछ माह से आफिस जाना शुरू किया ही था कि फिर घर में बैठने के आसार बनने लगे। कामकाजी लोग घर में बरमूडा और पैजामा पहनते-पहनते ऊब चुके हैं। पैंट और कमीजों ने बड़ी मुश्किल से मालिक को फिर पहचानना शुरू किया था कि वायरस नई पहचान लेकर आ गया। हे कोरोना की भार्या! अब रहम करो। 2021 के कुछ दिन बचे हैं, नया साल आने वाला है, उसको बेदाग आने दो। मैं आपको 'सदा सुहागन रहो' भी नहीं कह सकता। हमने अंग्रेज शासकों को अपने यहां से खदेड़ दिया, आपको भी खानदान समेत खदेड़कर दम लेंगे।
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