सम्पादकीय

महान संस्कार के नाम पर लोग खोजने लगते हैं सहूलियत की पतली गलियां ​​​​​​​

Gulabi
14 Jan 2022 8:24 AM GMT
महान संस्कार के नाम पर लोग खोजने लगते हैं सहूलियत की पतली गलियां ​​​​​​​
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गौरतलब है कि महामारी के पहले दौर में अभिनेता सोनू सूद ने आम और परेशान आदमी की बड़ी मदद की थी
जयप्रकाश चौकसे का कॉलम:
गौरतलब है कि महामारी के पहले दौर में अभिनेता सोनू सूद ने आम और परेशान आदमी की बड़ी मदद की थी। यही नहीं बाद में उन्हें अपनी आय के स्रोत भी बताना पड़े। गौरतलब है कि सोनू ने फिल्मों में नकारात्मक भूमिकाएं अभिनीत की हैं। सलमान खान अभिनीत 'दबंग' में भी उन्होंने खलनायक का पात्र निभाया था। सोनू की अधिकांश कमाई दक्षिण भारत में बनने वाली फिल्मों से हुई है।
वर्तमान में दक्षिण भारत के फिल्मकार, सोनू को अवसर ही नहीं दे रहे। उनका कहना है कि महामारी के समय भलाई के काम करने के कारण दर्शक उन्हें अब नकारात्मक भूमिका में देखना ही नहीं चाहते! भलाई के परिणाम ऐसे भी होते हैं? प्राय: खलनायक के पात्र अभिनीत करने वाले कलाकार अपने यथार्थ में भले आदमी रहे हैं। प्राण साहब को हाथ घड़ी पहनने का शौक रहा और उनके पास ढेरों घड़ियां थीं।
फिल्म के दौरान सहकलाकार प्राण साहब की घड़ी की प्रशंसा करता तो वे तुरंत अपनी घड़ी उतारकर उसे दे देते थे। उस दौर में फिल्म उद्योग के अधिकांश कलाकार प्राण साहब द्वारा भेंट की गई घड़ियां पहनते थे। गोया कि प्राण साहब की घड़ियों से ही उद्योग संचालित हो रहा था। यह खेल छवियों का है। छवियां छलावा भी देती हैं। कभी-कभी कोई कलाकार अपने अभिनीत पात्र को यथार्थ मान बैठता है।
सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि मनुष्य को ठगा जाना पसंद है। कुछ लोगों को विलाप करने में बड़ा आनंद आता है। धर्मवीर भारती की रचना 'गुनाहों का देवता' के प्रेमी जुदा रहने का फैसला लेते हैं। गरीब नायक को नायिका के पिता ने पढ़ाया है और मदद की है। नायक और नायिका अलग अलग रहने का फैसला इस आशंका से करते हैं कि नायिका के पिता द्वारा नायक को की गई मदद के बाद उनका विवाह सूत्र में बंधना रिश्तों का समीकरण बदल देगा।
धर्मवीर भारती की 'कनुप्रिया' को महान रचना माना जाता है। उस दौर में एक निर्माता 'गुनाहों का देवता' से प्रेरित फिल्म बनाना चाहता था। उस निर्माता ने पहले बड़ी फूहड़ फिल्में बनाई थीं। स्वयं धर्मवीर भारती को फिल्मों में विशेष रुचि नहीं थी। मित्रों के परामर्श पर भारती ने उस निर्माता को अधिकार नहीं बेचे। उस निर्माता ने अन्य कहानी से प्रेरित फिल्म का नाम 'गुनाहों का देवता' रख लिया। धर्मवीर भारती ने टाइम्स द्वारा प्रकाशित पत्रिका धर्म युग का संपादन लंबे समय तक किया।
उस दौर में इलस्ट्रेटेड वीकली के संपादक खुशवंत सिंह हुआ करते थे। बहरहाल, आज सोनू बहुत परेशान हैं कि क्या भलाई का ऐसा भी परिणाम हो सकता है! महामारी के समय सोनू सूद ने जिनकी सहायता की थी उनमें से कोई आगे आकर उनका हाल पूछे। धर्मवीर भारती की एक रचना 'प्रमथ्यु गाथा' में आम नागरिकों के लिए ज्ञान का प्रकाश लाने वाले को दंड स्वरूप चौराहे पर लटका देते हैं। एक गिद्ध उसके हृदय पिंड को सारा दिन नोंचता है। रात में उसका नया हृदय आ जाता है।
कुछ ही दिनों में लोग अभ्यस्त हो जाते हैं और उस आदमी के कष्ट देखकर तालियां बजाने लगते हैं। तमाशबीन ऐसे ही होते हैं। वैसे सोनू बड़े स्वाभिमानी हैं। उन्हें किसी की मदद की आवश्यकता नहीं। स्वाभिमान जैसे जीवन मूल्य बाजार हड़प रहा है। परंतु अच्छाई की नाजुक कोंपल तो पत्थरों से बनी सड़क पर दो पत्थरों के बीच की उर्वरा जमीन में भी उग आती है। यह कोंपल जानती है कि वह कुचली जाएगी, परंतु इस भय से कोपल मुस्कुराना बंद नहीं करती।
जितेंद्र अभिनीत एक फिल्म में पिता का पात्र अपने स्वार्थी पुत्र पर मुकदमा दर्ज करता है कि पुत्र उनकी देखभाल नहीं करता। अत: वह सब धन लौटाए जो उसके लालन-पालन और शिक्षा पर उसने खर्च किया है। इस अजीब मुकदमे ने जज को परेशान कर दिया है। लालन-पालन पिता का दायित्व है। स्वार्थी पुत्र ने कोई अपराध भी नहीं किया है। क्या स्वार्थ का संस्कार पिता ने दिया है। दरअसल महान संस्कार के नाम पर लोग सहूलियत की पतली गलियां खोजने लगते हैं।
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