सम्पादकीय

दहशत के बीच

Subhi
6 Jun 2022 4:59 AM GMT
दहशत के बीच
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कश्मीर घाटी में एक बार फिर दहशत का माहौल है। जबसे कश्मीरी पंडितों और गैर-मुसलिम प्रवासियों को लक्षित कर मारा जाने लगा है, लोग असुरक्षा के बीच जी रहे हैं। ये हत्याएं किसी सुनसान जगह में नहीं, सरेआम की जा रही हैं।

Written by जनसत्ता; कश्मीर घाटी में एक बार फिर दहशत का माहौल है। जबसे कश्मीरी पंडितों और गैर-मुसलिम प्रवासियों को लक्षित कर मारा जाने लगा है, लोग असुरक्षा के बीच जी रहे हैं। ये हत्याएं किसी सुनसान जगह में नहीं, सरेआम की जा रही हैं। दफ्तरों में घुस कर दो लोगों को मार डाला गया। इससे स्वाभाविक ही कश्मीरी पंडितों में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर नाराजगी है। कश्मीर के अलग-अलग इलाकों में कई दिनों से उनका विरोध प्रदर्शन चल रहा है। कुछ दिनों पहले उन्होंने मांग की थी कि कश्मीर से बाहर किसी सुरक्षित जगह पर उनकी तैनाती की जाए, नहीं तो वे सामूहिक पलायन करने को मजबूर होंगे। कई कश्मीरी पंडित वहां से पलायन कर जम्मू पहुंच भी चुके हैं।

बहुत सारे लोग पलायन करना चाहते हैं, मगर उन्हें रोक रखा गया है। इस समस्या से पार पाने के मकसद से केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बैठक की, जिसमें फैसला किया गया कि कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर नहीं भेजा जाएगा। उन्हें सुरक्षित जगहों पर स्थानांतरित किया जाएगा। सरकार का यह फैसला गलत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अगर फिर से कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन शुरू कर दिया, तो पूरी दुनिया में बहुत गलत संदेश जाएगा और दहशतगर्दों का भी मनोबल बढ़ेगा। पलायन पर रोक न लगाने का अर्थ यह समझा जाएगा कि सरकार ने पराजय स्वीकार कर ली।

कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए लंबे समय से प्रयास चल रहे हैं। सरकार चाहती है कि तीस साल पहले जो लोग अपना घर-बार छोड़ गए थे, वे वापस लौटें और वहीं रहें। जब घाटी में दहशतगर्दी कम हुई, तब ऐसा लग रहा था कि वे वापस लौटने को तैयार हो जाएंगे, मगर ऐसा न हो सका। फिर प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत कश्मीर में पंडितों की भर्ती की विशेष योजना शुरू की गई थी। उसके तहत बहुत सारे लोग वहां लौटे हैं।

मगर जिस तरह दफ्तरों के भीतर घुस कर बिल्कुल लक्षित करके हत्या की जा रही है, उससे एक बार फिर उनका भरोसा डिग गया है। उनमें सुरक्षा का भरोसा पैदा करने के लिए आतंकवादियों पर नकेल कसना जरूरी है। माना जा रहा था और सरकार भी बार-बार दावा कर करती रही है कि विशेष राज्य का दर्जा समाप्त होने के बाद से घाटी में दहशतगर्दी पर काफी हद तक लगाम लग चुकी है। मगर अब आतंकियों ने हिंसा का तरीका बदल लिया है, जो सरकार और सुरक्षाबलों के लिए नई चुनौती है।

सीमा पार से घुसपैठ और स्थानीय स्तर पर वित्तीय मदद पहुंचाने वालों पर काफी हद तक नकेल कसी जा चुकी है। फिर भी आतंकी संगठन अपनी साजिशों को अंजाम देने में कामयाब हो जा रहे हैं, तो जाहिर है सुरक्षा तंत्र उनकी रणनीतियों को समझने में नाकाम है। लक्षित हिंसा में स्थानीय युवाओं की हिस्सेदारी स्पष्ट है।

यानी आतंकी युवाओं को गुमराह करने, कुछ पैसे आदि का लोभ देकर उन्हें हथियार उठाने के लिए उकसाने में कामयाब हो पा रहे हैं, तो इस दिशा में सोचने की जरूरत है। जब तक स्थानीय लोगों का समर्थन बंद नहीं होगा, तब तक आतंकी संगठनों पर नकेल कसना संभव नहीं होगा। और स्थानीय लोगों का मन बंदूक से नहीं बदला जा सकता। इससे स्थिति और खराब होगी। इसलिए एक बार फिर अपेक्षा की जाती है कि सरकार आतंकवादियों से तो कड़े रूप में बंदूक से निपटे, पर स्थानीय लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए दूसरा विकल्प चुने।


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