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हासिल कर सकता! फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात उसी सपने की एक झलक है।
पांच राज्यों की चुनावी सरगर्मियों में लगता है कि एक महत्वपूर्ण खबर कहीं गुम गई है, जिसका संबंध हथियारों के मामले में देश की आत्मनिर्भरता और आयुध उद्योग से संभव आर्थिक विकास से है। परोक्ष रूप में यह खबर देश की सुरक्षा से भी जुड़ी हुई है।
हाल ही में भारत और फिलीपींस के बीच एक समझौता हुआ है, जिसके तहत फिलीपींस भारत में रूसी सहयोग से बने तीन ब्रह्मोस मिसाइल खरीदेगा। 37.4 करोड़ रुपये के इस सौदे में भारत ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्रों के साथ उसके रख-रखाव की सामग्री और उसे इस्तेमाल करने वाले मानव संसाधनों का प्रशिक्षण भी फिलीपींस को मुहैया कराएगा।
फिलीपींस के साथ ऐसे सौदे दूरगामी सामरिक महत्व के हैं, क्योंकि वह दक्षिण चीन सागर में चीनी प्रभुत्व से निपटने के लिए अपने जमीनी ठिकानों से चीनी नौसेना के जंगी जहाजों को नष्ट करने की क्षमता बढ़ाने के लिए ये हथियार खरीद रहा है।
भारत पहले ही से क्वाड (अमेरिका, जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया का गठबंधन) में शामिल होकर प्रशांत और हिंद महासागरों में चीनी नौसेना के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है। फिलीपींस द्वारा ब्रह्मोस मिसाइल की खरीद को इस दिशा में सहयोग के रूप में देखा जाना चाहिए। यह सौदा भारत में हथियार उद्योग के विकास और निर्यात की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
भारत को लगातार अपनी सीमाओं पर और निकटवर्ती समुद्री क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन से गंभीर सैन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते हमारा रक्षा बजट लगातार एक भारी बोझ बनता जा रहा है। इस अपरिहार्य खर्च के लिए वर्ष 2021-22 के बजट में 4.8 लाख करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया। सीमाओं पर बढ़ते दबाव को देखते हुए इसमें कटौती नहीं की जा सकती।
पिछले पांच वर्षों में विदेशों से हथियार खरीदने वाले देशों में भारत दूसरे पायदान पर रहा है। हालांकि हथियारों का आयात कम करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इनमें सबसे प्रमुख है-101 विभिन्न हथियारों और उनकी प्रणालियों के आयात पर पूरा प्रतिबंध। इसके अलावा भारत में हथियारों और आयुध प्रणालियों के उत्पादन के लिए विदेशी निवेशकों के निवेश की सीमा बढ़ाकर 74 प्रतिशत तक कर दी गई है।
पाकिस्तान की सैन्य क्षमता से निपटना भारत के लिए मुश्किल नहीं है, लेकिन चीन की चुनौतियों को देखते हुए हमें अपनी सैन्य क्षमता में लगातार बढ़ोतरी करनी पड़ रही है। ऐसे में, देश की विकास संबंधी योजनाओं पर खर्च के लिए इस आयात राशि की भरपाई देश के अंदर हथियारों के उत्पादन से की जाए और फिर उन्हें ऐसे देशों में निर्यात किया जाए, जिन्हें हमारे हथियार अमेरिका, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड आदि देशों में निर्मित हथियारों की गुणवत्ता जैसे लगें, लेकिन जो कीमत में किफायती हों।
रूस की मदद से हमने भारत में ऐसे ब्रह्मोस मिसाइलों का उत्पादन शुरू किया है, जो जमीन से, जंगी जहाजों और पनडुब्बियों से और आकाश में उड़ते वायुयानों से भी दागे जा सकते हैं। भारतीय सेना में इन प्रक्षेपास्त्रों को शामिल करने से विदेशी मुद्रा की तो बचत हुई ही, अब फिलीपींस से खरीद का सौदा होना हथियार निर्यात की दिशा में मील का पत्थर है। अब तक हथियार निर्यात में हमारा योगदान बहुत कम था। हम केवल छोटे हेलीकॉप्टर, परिवहन विमान, छोटे जंगी जहाज, पेट्रोल बोट, तोप और गोला-बारूद और आर्टिलरी शेल्स (तोपखाने के गोलों के सांचे) ही निर्यात कर रहे थे।
लेकिन अब भारत उच्च तकनीक वाले हथियार और प्रणालियों के निर्यात की दिशा में महत्वपूर्ण चरण में पहुंच रहा है। यदि इस्राइल जैसा छोटा-सा देश अत्याधुनिक रक्षा उत्पादन और निर्यात से इतना समृद्ध हो चुका है, तो भारत 'मेक इन इंडिया सेल ग्लोबली' के सिद्धांत पर अमल करते हुए वर्ष 2025 तक पांच अरब डॉलर मूल्य के हथियार निर्यात का लक्ष्य क्यों नहीं हासिल कर सकता! फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात उसी सपने की एक झलक है।
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