सम्पादकीय

खतरे के बीच

Subhi
2 Nov 2021 4:13 AM GMT
खतरे के बीच
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यह विडंबना ही है कि कोरोना विषाणु के संक्रमण का सामना करने के क्रम में शुरुआती दौर से ही जिन उपायों और नियमों के चलते इसकी मार को काबू में करने में काफी हद तक कामयाबी मिली थी, अब उनके पालन को लेकर आम लोगों के बीच लापरवाही देखी जा रही है।

यह विडंबना ही है कि कोरोना विषाणु के संक्रमण का सामना करने के क्रम में शुरुआती दौर से ही जिन उपायों और नियमों के चलते इसकी मार को काबू में करने में काफी हद तक कामयाबी मिली थी, अब उनके पालन को लेकर आम लोगों के बीच लापरवाही देखी जा रही है। ऐसा इसके बावजूद हो रहा है कि इस महामारी का खतरा अभी टला नहीं है और कुछ समय के अंतराल पर इसके नए स्वरूप के आने और उसके फैलने की खबरें लगातार आती रहती हैं। यह सही है कि इसके संक्रमण की तीव्रता में कमी आने और टीकाकरण अभियान के रफ्तार पकड़ने को ध्यान में रखते हुए सरकार ने आर्थिक और सार्वजनिक गतिविधियों में छूट दी है, लेकिन विषाणु और संक्रमण की प्रकृति को देखते हुए फिलहाल यह मान लेना शायद जल्दबाजी होगी कि महामारी गुजर गई है।

सच यह है कि अब भी इसका जोखिम बना हुआ है और हर स्तर पर सावधानी बरत कर ही इससे बचा जा सकता है। लेकिन एक सर्वेक्षण में ये चिंताजनक आकलन सामने आए हैं कि वक्त के साथ लोगों के बीच बचाव के नियमों को लेकर उदासीनता बढ़ रही है। ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा है, जो मास्क लगाने और आपस में दूरी बना कर रहने के नियमों का पालन करना अब बहुत जरूरी नहीं समझते हैं। सवाल है कि अगर ऐसी लापरवाही के नतीजे में विषाणु अपने किसी नए स्वरूप में फिर फैलने लगा तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा!
पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जब कोरोना विषाणु के संक्रमण को वैश्विक महामारी घोषित किया था, तभी से इस बात पर लगातार जोर दिया जाता रहा है कि फिलहाल इस जानलेवा रोग का कोई मुकम्मल इलाज नहीं है, इसलिए इससे बचाव ही कारगर उपाय है। बचाव के कुछ तरीकों में मास्क लगाने, बार-बार हाथ धोने और आपस में सुरक्षित दूरी बरतने जैसे प्रमुख उपाय बताए गए। पहली लहर में इस विषाणु के संक्रमण की चपेट में आने की वजह से बहुत सारे लोगों की जान जाने को देखते हुए आम लोगों ने पूर्णबंदी सहित बचाव के उपायों को गंभीरता से लिया और इसके जरिए कुछ हद तक महामारी को नियंत्रित किया जा सका।
लेकिन विषाणु और इसके प्रसार की प्रकृति को देखते हुए शुरू से यह साफ था कि इसके खिलाफ जंग लंबी चलने वाली है और सावधानी ही इससे बचने का सबसे अच्छा उपाय है, क्योंकि इसकी रोकथाम या इसके इलाज के लिए अब तक कोई चिह्नित दवा सामने नहीं आ सकी है। फिलहाल आपात स्थिति में टीकों के जरिए इस पर काबू पाने की कोशिश की जा रही है, मगर यह प्रक्रिया लंबी और जटिल है।
ऐसे में जरूरत इस बात की है कि जब तक इससे निपटने के लिए एक कारगर और ठोस तरीका सामने नहीं आ जाता, तब तक संक्रमण से बचने के लिए भीड़भाड़ वाली जगहों पर मास्क लगाने, बार-बार हाथ धोने और आपस में दूरी बरतने के नियमों पर पूरी जिम्मेदारी से पालन हो। इसमें कोई शक नहीं कि टीकाकरण एक अभियान के तौर पर समूचे देश में चल रहा है और इसके जरिए इस महामारी पर काबू पाने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन जब तक वैश्विक स्तर पर चिकित्सा जगत की ओर से किसी एक विधि और दवा को इलाज के तौर पर मान्यता देने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक इससे बचाव ही बेहतर रास्ता है। अच्छा हो कि लोग कम से कम अपनी सेहत की फिक्र में नियमों को लेकर सजह रहें।

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