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- टकराव के बीच
Written by जनसत्ता: रूस और यूक्रेन की जंग के बीच इस बात को लेकर भी विवाद गहराता जा रहा है कि जंग में कौन किसका साथ दे रहा है। विवाद इसलिए उठा कि रूस और चीन की गहरी दोस्ती को लेकर अमेरिका अब ज्यादा ही परेशान है। उसका कहना है कि संकट के इस वक्त में चीन रूस का मददगार बना हुआ है। इससे रूस के हौसले और बुलंद हैं। हालांकि आधिकारिक रूप से चीन इसका खंडन कर चुका है। पर अमेरिका कहां मानने वाला है! और अमेरिका क्या, कोई भी देश इस हकीकत से तो अनजान है नहीं कि चीन रूस का ही साथ देगा और पहले भी देता ही आया है, चाहे सुरक्षा परिषद में साथ खड़ा होना हो या किसी और रूप में मदद की बात हो।
इसलिए पिछले कुछ दिनों से अमेरिका चीन को चेतावनियां दे रहा है कि अगर उसने रूस की मदद की, तो उसे इसके लिए गंभीर नतीजे झेलने पड़ेंगे। हालांकि वह करेगा क्या, इसका खुलासा नहीं किया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग से हाल में करीब पौने दो घंटे बात की। दोनों नेताओं के बीच इतनी लंबी बात का एक मतलब तो साफ है कि चीन को लेकर अमेरिका डरा हुआ है। उसे लग रहा है कि अगर संकट के इस दौर में चीन और रूस एक साथ आ गए तो वैश्विक राजनीति में उसके दबदबे को लेकर नई चुनौती खड़ी हो जाएगी और रूस पर शिकंजा कसने की अमेरिकी रणनीति पर पानी फिर सकता है।
अभी बड़ी चुनौती यूक्रेन में युद्ध विराम को लेकर है। लेकिन इसे लेकर कहीं कोई प्रयास सफल होते नहीं दिख रहे। अमेरिका और पश्चिमी देशों की धमकियों को रूस ने हवा में उड़ा दिया है। उस पर प्रतिंबधों का भी फिलहाल तो कोई असर दिख नहीं रहा, बल्कि रूस के तेवर और आक्रामक ही होते जा रहे हैं। यह पूरी दुनिया के लिए गंभीर चिंता की बात इसलिए भी बनी हुई है क्योंकि कई देश इससे किसी न किसी रूप में प्रभावित तो हो ही रहे हैं। जहां तक रूस पर अमेरिकी और पश्चिमी प्रतिंबधों के असर की बात है, तो उसका विदेशी मुद्रा और सोने का लगभग आधा फंस गया है। पर रूस अभी बेफिक्र इसलिए है क्योंकि उसके विदेशी मुद्रा भंडार का एक बड़ा हिस्सा चीनी मुद्रा युआन के रूप में है। वैसे इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता कि भले रूस कितना ताकतवर क्यों न हो, अचानक यूरोप से व्यापार बंद होना किसी बड़े झटके से कम नहीं है। पर इसकी भरपाई चीन वह चीन से कर सकता है।
चीन को लेकर अमेरिका का डर इसलिए भी बढ़ा हुआ है कि रूस को देख कहीं वह भी ताइवान को लेकर बड़ा कदम न उठा ले। ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन की तनातनी छिपी नहीं है। ऐसे में विवाद जितने बढ़ेंगे, युद्ध के खतरे भी उतने ही बढ़ते जाएंगे। हालांकि महत्त्वपूर्ण यह भी है कि लंबे समय से चले आ रहे व्यापार युद्ध सहित तमाम मतभेदों के बावजूद अमेरिका और चीन को भी लग तो रहा ही है कि यूक्रेन पर रूसी हमले बंद होने चाहिए। अमेरिका को लग रहा है कि प्रतिंबधों से रूस को काबू किया जा सकता है। पर उसे यह भी समझ आ गया है कि यूक्रेन के मामले में रूस को झुका पाना आसान नहीं है, क्योंकि चीन उसके साथ खड़ा है। सच तो यह है कि अगर महाशक्तियां टकराव का रुख छोड़ें तो बड़े से बड़े संकट का समाधान मौजूद है। लेकिन समझ कौन रहा है?