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मानव इतिहास में मोटापा या ओबिसिटी कभी न कोई समस्या थी, न बीमारी
मनीषा पांडेय मानव इतिहास में मोटापा या ओबिसिटी कभी न कोई समस्या थी, न बीमारी. ग्रीक मिथकों, कहानियों और उपन्यासों में स्थूलकाय काया वाले चरित्र कम ही दिखाई पड़ते हैं. फिक्शन ही नहीं, 500 ईसा पूर्व से लेकर 19वीं सदी के अंत तक मेडिकल साइंस की किताबों में मोटापे का बीमारी या किसी समस्या के रूप में जिक्र ना के बराबर मिलता है.
कोविड महामारी से पहले 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मोटापे यानि ओबिसिटी को मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे तेजी से बढ़ रहा खतरा बताया था और इसे पैनडेमिक का नाम दिया था. आज की तारीख में अमेरिका की 30 फीसदी आबादी ओबिसिटी का शिकार है. चीन, कोरिया और जापान जैसे देश, जहां अभी महज दो दशक पहले तक मोटापा का फीसद पूरी दुनिया में सबसे कम था, वहां भी ओबिसिटी का रेट बहुत तेजी के साथ बढ़ रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक आज चीन की 12 फीसदी आबादी ओबिसिटी का शिकार है, जो आज से महज दो दशक पहले जीरो फीसदी थी यानि उस देश में एक भी इंसान ओवरवेट नहीं था.
दो साल पहले चीन के स्वास्थ्य मंत्री वांग लांगदे ने ओबिसिटी को नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हुए फास्ट फूड कल्चर पर लगाम लगाने की मांग की थी. आखिरकार नागरिकों का औसत स्वास्थ्य किसी भी देश की औसत सेहत का बुनियादी पैरामीटर है. अगर लोग स्वस्थ नहीं तो देश कैसे हो सकता है.
जापान में आज की तारीख में 3.6 फीसदी आबादी ओबिसिटी का शिकार है, जो आज से सिर्फ 10 साल पहले जीरो फीसदी थी. हालांकि आज भी पूरी दुनिया में ओबिसिटी का सबसे कम प्रतिशत जापान में है, लेकिन शून्य से 3.6 फीसदी जाना इस बात की ओर तो इशारा कर रहा है कि ओबिसिटी का ग्राफ स्थिर होने के बजाय ऊपर की ओर बढ़ रहा है.
हालांकि यहां इस बात को भी अलग से रेखांकित करना जरूरी है कि जापान का फूड सिस्टम वहां की सरकार के द्वारा पूरी तरह नियंत्रित है. जब मैकडोनाल्ड्स ने भी जापान का रुख किया तो उसे वहां कार्ब और फैट से भरे बरगर और फ्रेंच फ्राइज बेचने की इजाजत नहीं मिली. वैश्वीकरण के चलते मैकडोनाल्ड्स वहां अपनी चेन तो खोल सकते थे, लेकिन जापानियों को अपना फास्ट फूड और शुगर ड्रिंक्स नहीं बेच सकते थे. उन्हें ट्रेडिशनल जापानी खाना ही सर्व करने की इजाजत थी.
पूरी दुनिया से ज्ञान-विज्ञान, तकनीक और नॉलेज को आयात करने वाला जापान खाने के मामले में हमेशा बहुत कंजरवेटिव और अपनी जड़ों से जुड़ा रहा है. दुनिया से बहुत कुछ अपनाने के बाद भी उन्होंने दुनिया का फास्ट फूड नहीं अपनाया. जापान में पब्लिक फूड कंजम्पशन को लेकर नियम कड़े हैं. फास्ट फूड वहां की पॉपुलर कल्चर का हिस्सा पहले भी नहीं था और ग्लोबलाइजेशन के बाद भी नहीं हो पाया, लेकिन सबकुछ सरकारी नियंत्रण में है.
जो फास्ट फूड, बरगर और फ्रेंच फ्राइज खाकर अमेरिका और पूरी दुनिया की 30 फीसदी से ज्यादा आबादी ओबिसिटी और उससे जुड़ी बीमारियों की शिकार हो रही है, उस तरह के खाने पर जिन देशों में सरकार के द्वारा रोक है, वहां मोटापे का रेट काफी कम है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट कहती है कि जापानी लोग दुनिया में सबसे ज्यादा स्वस्थ लोग हैं.
अकसर लोग सवाल करते हैं कि पूरी दुनिया जो पास्ता-पिज्जा खाकर मोटी हो रही है, उस पास्ता-पिज्जा के जनक देश इटली में लोग मोटे क्यों नहीं हैं. पूरे यूरोप में ओबिसिटी रेट इटली में सबसे ज्यादा कम है, हालांकि पिछले एक दशक में यह आंकड़ा भी बदलता दिखाई दे रहा है क्योंकि इटली का स्वास्थ्य मंत्रालय ओबिसिटी को स्वास्थ्य के लिए एक बढ़त खतरे के रूप में देख रहा है. लेकिन जापान की तरह इटली में अभी भी ओबिसिटी रेट दुनिया के मुकाबले बहुत कम है.
ओलिवर ग्रीन की किताब ओबिसिटी वर्ल्डवाइड के पास इस सवाल का जवाब है. इस किताब में वो लिखते हैं कि पारंपरिक इटालियन खाना उस तरह का पिज्जा-पास्ता नहीं है, जो अमेरिका और तीसरी दुनिया के देशों में लोग खा रहे हैं, जो कि मुख्य रूप से जीएमओ यानि जेनिटिकली मॉडिफाइड ग्रेन्स से बन रहा है. दूसरे पूरी दुनिया में इटली का स्लीप रेट यानि वहां के नागरिकों की औसत नींद सबसे ज्यादा है.
आधुनिक पूंजीवाद संस्कृति नींद को आलस और कमजोरी के रूप में देखती है, जबकि ओलिवर ग्रीन कहते हैं कि अच्छी, गहरी और लंबी नींद एक प्रिवेलेज नहीं, बल्कि अच्छे स्वस्थ जीवन का बहुत बुनियादी जरूरत है. जिन देशों का औसत स्लीप रेट बेहतर है, वहां के नागरिकों का स्वास्थ्य भी बेहतर है. साथ ही इस किताब के मुताबिक मेडिटेरियन क्लाइमेट और फूड कल्चर इटली के कम मोटापे दर की मुख्य वजह है. जिन देशों का फूड कल्चर का एक बड़ा हिस्सा सी फूड है, उनका कार्ब कंजम्पशन कम है और वहां मोटापा और बीमारियां भी कम हैं. साथ ही जापान की तरह इटली भी एक ऐसा देश है, जिसने अपने पारंपरिक खाने का पूरी दुनिया में प्रसार तो किया, लेकिन दुनिया के फास्ट फूड को खुद नहीं अपनाया. आज पूरी दुनिया में ऑलिव ऑइल का कंजम्शन हो रहा है, लेकिन इटली के लोग अपनी जलवायु और मिट्टी में उगा भोजन खाते हैं.
वर्ल्ड ओबिसिटी के इस आंकड़े में भारत और हमारे पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश का नाम सबसे नीचे है, लेकिन ओबिसिटी की कहानी में इस बात का जिक्र बहुत मौजूं नहीं क्योंकि कुपोषण, गरीबी और खराब स्वास्थ्य के आंकड़ों में यही देश सबसे ऊपर भी हैं. आज भारत की 9 फीसदी आबादी ओबिसिटी का शिकार है, जो कि भारत की जनसंख्या को देखते हुए एक डरावनी संख्या होनी चाहिए, लेकिन फिलहाल नहीं है. किसी सरकार, स्वास्थ्य मंत्रालय या मेडिकल एसोसिएशंस ने कभी बढ़ती ओबिसिटी दर को देश के नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए एक चेतावनी के रूप में पेश नहीं किया. जहां जापान 3 फीसदी, चीन 12 फीसदी और इटली 2 फीसदी मोटापे की दर से परेशान है, वहीं भारत के लिए 9 फीसदी कोई चिंताजनक आंकड़ा फिलहाल तो नहीं है.
अंत में ओलिवर ग्रीन की किताब से ही मोटापे की इस कहानी का अंत होना चाहिए कि मानवता के इतिहास में कभी मनुष्य खाने के अभाव और भूख से उतना नहीं मरा, जितना कि ज्यादा और गलत खाकर मर रहा है. ओलिवर ग्रीन भविष्यवाणी करते हैं कि अगर हम भी हम सचेत नहीं हुए और लोगों की देह पर मोटापे की चर्बी इसी गति से चढ़ती रही तो जल्द ही ओबिसिटी पूरी दुनिया में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा. किसी बीमारी, महामारी, बैक्टीरिया और वायरस ने हमें उतना नुकसान नहीं पहुंचाया, जितना हमें ओबिसिटी से होने वाला है.
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