सम्पादकीय

पीएम मोदी के गवर्नेंस माडल में बढ़ी समाज में महिलाओं की भूमिका, हो रहा है पूरे परिवार और देश का सशक्तीकरण

Rani Sahu
31 July 2022 5:03 PM GMT
पीएम मोदी के गवर्नेंस माडल में बढ़ी समाज में महिलाओं की भूमिका, हो रहा है पूरे परिवार और देश का सशक्तीकरण
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पीएम मोदी के गवर्नेंस माडल में बढ़ी समाज में महिलाओं की भूमिका


सोर्स- Jagran
अश्विनी वैष्णव। हल्द्वानी के एक छोटे से गांव खेड़ा की निवासी रमा देवी ने कुछ साल पहले तक बैंक में अपना खाता होने की कल्पना भी नहीं की होगी। आज न केवल बैंक में उनका खाता है, बल्कि उसी के माध्यम से वह सरकार द्वारा विभिन्न माध्यमों से दी जा रही वित्तीय मदद को भी सीधे प्राप्त कर रही हैं। उत्तराखंड के हल्द्वानी से दूर मध्य प्रदेश के ग्वालियर में टिक्की बेचने वाली अर्चना ने पीएम स्वनिधि ऋण की मदद से लाकडाउन के बाद फिर से अपना व्यवसाय शुरू किया और अपने परिवार को आर्थिक संबल दिया। इसी तरह उज्जैन की फल विक्रेता नजमीन ने पीएम स्वनिधि के अंतर्गत लिए ऋण से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ ही आर्थिक गतिविधियों को नया आयाम दिया।
इतना ही नहीं, यूपीआइ और क्यूआर कोड ने उनके वित्तीय लेनदेन को भी खासा सुगम बना दिया है। आज का नया भारत ऐसे प्रेरक प्रसंगों और प्रेरणादायक कहानियों से भरा हुआ है। ये कहानियां इस बात की गवाही देती हैं कि कैसे नारी शक्ति श्रेष्ठ भारत के निर्माण में एक सशक्त स्तंभ बन रही है। लंबे समय तक भारतीय महिलाओं के वित्तीय समावेशन का नेतृत्व मुख्य रूप से स्वयं सहायता समूह आंदोलन द्वारा किया गया था। वैसे तो यह मुहिम पिछली सदी के नौवें दशक से आरंभ हो गई थी, लेकिन बैंकिंग सेवाओं का अपेक्षित विस्तार न होने से उसे पर्याप्त सफलता नहीं मिल पाई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मोर्चे पर कमियों को महसूस करते हुए वित्तीय समावेशन का व्यापक अभियान शुरू किया।
उनकी पहल पर आरंभ जन-धन योजना ने उन सभी को बैंकिंग-वित्तीय सेवाओं से जोड़ दिया जो उनसे वंचित रहे। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं लाभान्वित हुईं। औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जुड़ाव वित्तीय समावेशन में क्रांतिकारी सिद्ध हुआ। संप्रति जन-धन में 56 प्रतिशत खाताधारक महिलाएं हैं। इस तरह बैंकिंग सेवाओं से वंचित 23 करोड़ महिलाएं बैंकों से जुड़ सकीं। इसके गुणात्मक प्रभाव भी प्रत्यक्ष दिखने लगे। आंकड़े यह कहानी खुद कहते हैं। स्टैंड अप इंडिया में महिलाओं की हिस्सेदारी 81 प्रतिशत, मुद्रा ऋण में 71 प्रतिशत, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में 37 प्रतिशत और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना में 27 प्रतिशत है। यह रुझान उत्साहजनक होने के साथ ही देश के लिए गौरव का भी विषय है।
पीएम मोदी के गवर्नेंस माडल ने समाज में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाया है। उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ा है। वित्तीय सशक्तीकरण के साथ महिलाएं अब अपने परिवारों और समुदायों में निर्णयकर्ता की भूमिका निभा रही हैं। दो करोड़ से अधिक पीएम आवास योजना (ग्रामीण) के घरों में 68 प्रतिशत का स्वामित्व या तो स्वतंत्र रूप से महिलाओं के पास है या उनका संयुक्त रूप से जुड़ाव है। पीएम स्वनिधि योजना के तहत रेहड़ी-पटरी वालों को बड़ी संख्या में धनराशि उपलब्ध कराई गई है, जिनमें 41 प्रतिशत महिला लाभार्थी हैं। इसी तरह 2022-23 के दौरान बैंकों द्वारा आठ लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों को 11,000 करोड़ रुपये और अब तक लगभग चार लाख करोड़ रुपये का ऋण भी उपलब्ध कराया है। औपचारिक बैंकिंग ढांचे का सर्वोत्तम उपयोग और सरकार द्वारा लोगों की सेवा करने के पारदर्शी इरादे से ही यह सफलता संभव हुई है। सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों से लेकर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक इस अभियान में खरे उतरे हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास बैंकिंग सेवाओं से वंचित वर्गों को उचित आर्थिक अवसर प्रदान करने की भरपूर क्षमता है। उन्होंने इस मोर्चे पर अपनी क्षमताओं को खासा विस्तार भी दिया है। व्यापक समावेशी समाज निर्माण के इस अभियान में निजी बैंकों को भी अपना योगदान देकर महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देना चाहिए। महिलाओं द्वारा न्यूनतम डिफाल्ट के साथ बैंक ऋण भुगतान बड़े ऋणों के लिए उनकी पात्रता को और अधिक सक्षम बनाते हैं। इससे महिलाओं के लिए व्यापक वित्तीय एवं अनुपूरक सेवाओं के द्वार खुलते हैं। यदि इन संभावनाओं को भुनाया जाता है तो सकारात्मक आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था का निर्माण आसान हो जाएगा।
भारतीय रिजर्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021-22 के दौरान दिए गए बैंक ऋणों में 22.5 प्रतिशत हिस्सेदारी महिलाओं की थी। कोविड-19 महामारी के दौरान कृषि, अवसंरचना और व्यापार में एमएसएमई ऋणों में महिला उधारकर्ताओं की ऋण हिस्सेदारी में भी वृद्धि देखी गई, जिसे प्रमुख रूप से आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के माध्यम से प्रोत्साहित किया गया है। ये आंकड़े सिर्फ महिलाओं के बैंक खातों, उनकी बचत और उनके ऋण पोर्टफोलियो की ही जानकारी नहीं देते, बल्कि महामारी के कारण दो वर्षों के आर्थिक तनाव के बाद महिलाओं के नेतृत्व में वित्तीय समावेशन को भी दर्शाते हैं। यह कहानी बताती है कि उनके इस अभियान ने हमारी अर्थव्यवस्था को सुधार की राह पर आगे बढ़ाने के साथ ही विकास को नई गति दी है।
इस पूरी प्रक्रिया में सरकारी सुधारों ने सेतु और उत्प्रेरक की भूमिका निभाई है। इसमें एक ओर बैंक थे तो दूसरी तरफ बचतकर्ता और ऋणधारक के रूप में महिलाएं। विकास योजनाओं और जन-धन खाते के बीच यह संबंध बैंक खाता संचालन में सुगमता सुनिश्चित करता है। सशक्त भारत का 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' मार्गदर्शक सिद्धांत ही इस वित्तीय समावेशन के अभियान में प्रत्येक भारतीय महिला को साथ लेकर चलने के संकल्प सहित सरकार और बैंकिंग क्षेत्र के प्रयासों को और अधिक ऊर्जा प्रदान कर रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय बैंकिंग प्रणाली के सहयोग से किए गए महिला केंद्रित निरंतर सुधारों ने आर्थिक रूप से स्वतंत्र और प्रतिष्ठित महिलाओं के एक नए युग की शुरुआत की है। आज 21वीं सदी के आत्मनिर्भर भारत की सक्षम और सशक्त नारी शक्ति हर क्षेत्र में अवसर पा रही हैं और नए भारत के निर्माण में अपना महत्तम योगदान दे रही हैं। शून्य बैलेंस खाते की शुरुआत से आरंभ हुआ एक सुधार अब घर-परिवारों और देश की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव डाल रहा है। आखिर एक महिला के सशक्तीकरण का अर्थ है पूरे परिवार और पूरे देश का सशक्तीकरण।


Rani Sahu

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