सम्पादकीय

क्वाड के रूप में भारत के पास चालबाज चीन को पटखनी देने का सुनहरा अवसर

Gulabi
27 Sep 2021 5:02 AM GMT
क्वाड के रूप में भारत के पास चालबाज चीन को पटखनी देने का सुनहरा अवसर
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भारत के पास चालबाज चीन को पटखनी देने का सुनहरा अवसर

ब्रजबिहारी। चीन की बेचैनी बढ़ती जा रही है। पिछले हफ्ते अंतरराष्ट्रीय मंच पर चले घटनाक्रम ने उसकी उद्विग्नता की आग में घी डालने का काम किया है। वह कितना छटपटाया हुआ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के संगठन क्वाड को समय के साथ खत्म हो जाने वाला करार दिया है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में इस बयान का मतलब है कि वह इस नए संगठन से सहज नहीं है। उसे दक्षिण चीन सागर में अपनी बादशाहत खतरे में लग रही है।

चीन के इस बुरे सपने को सच करने के लिए भारत हर पल सक्रिय है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में संबोधन से पूर्व की क्वाड की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन को घेरने का पूरा इंतजाम कर दिया। चीन की आर्थिक शक्ति को खत्म करने का संकेत देते हुए न्यूयार्क से पहले वाशिंगटन में प्रधानमंत्री और अमेरिका की प्रमुख कंपनियों के साथ मुलाकात के बाद यह एलान किया गया कि अब भारत पूरी दुनिया को वस्तुओं और सेवाओं की ग्लोबल सप्लाई चेन का केंद्र बनेगा। इस सप्लाई चेन का केंद्र होने के कारण ही चीन अमेरिका को भी आंखें दिखा पा रहा था। हालांकि दुनिया को अपनी ताकत दिखाने के लिए उसने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से पहले ताइवान के आसमान में अपने लड़ाकू विमान उड़ाकर कुछ लोगों के दिलों में तीसरे विश्व युद्ध की आशंका को भी जन्म दे दिया, पर उसे भी मालूम है कि उसके दिन लद रहे हैं।
अमेरिका में 23 सितंबर को जनरल एटोमिक्स ग्लोबल कारपोरेशन के मुख्य कार्यकारी विवेक लाल (बाएं) से बातचीत करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। पीआइबी
बौद्धिक संपदा अधिकार (आइपीआर) की चोरी और मानवाधिकार के खराब रिकार्ड के कारण पहले से चीन से चिढ़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को जैसे कोरोना ने मौका दे दिया। उसके बाद हुई घटनाओं ने कंपनियों को हिलाकर रख दिया। चीन में जैक मा की कंपनी सहित टेक्नोलाजी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई ने भी उन्हें भड़काने का काम किया। इधर, भारत सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआइ) स्कीम की घोषणा कर चीन से कारोबार समेटने का मन बना रही कंपनियों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वाशिंगटन में प्रधानमंत्री ने अमेरिकी कंपनियों की बैठक में पीएलआइ स्कीम का खासतौर पर उल्लेख किया। इस स्कीम के जरिये 153 अरब डालर का निवेश आकर्षति करने का लक्ष्य रखा गया है।
अब तक तीन औद्योगिक क्रांतियों का पूरी तरह लाभ उठाने से वंचित भारत अब चौथी औद्योगिक क्रांति के मौके से चूकना नहीं चाहता है। चौथी औद्योगिक क्रांति यानी अब तक की सभी टेक्नोलाजी के सम्मिश्रण से पैदा हुआ अनोखा संसार। पहली औद्योगिक क्रांति भाप की ताकत पर चली, दूसरी इलेक्टिक पर और तीसरी इलेक्ट्रानिक्स पर। अब चौथी औद्योगिक क्रांति में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अक्षय ऊर्जा पर जोर है। इन क्षेत्रों में भारत को अगुआ बनाने के लिए परिस्थितियां भी अनुकूल हैं। अफगानिस्तान में बदले हालात ने अमेरिका के सुपर पावर की छवि को नुकसान पहुंचाया है। अब उसके वहां से निकलने के बाद चीन और पाकिस्तान मिलकर अफगानिस्तान को अपनी दुरभि संधियों का केंद्र बनाना चाहते हैं। अमेरिका ऐसा होने नहीं देगा और इस काम में उसे भारत से बढ़िया कोई दूसरा साझीदार नहीं मिल सकता है।
बहरहाल, भारत की राह आसान नहीं है। दो युद्ध और कश्मीर में प्राक्सी वार हार चुका पाकिस्तान अब भारत को अस्थिर करने के लिए ड्रोन को हथियार बना रहा है। नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम के बाद से पाकिस्तान ड्रोन के जरिये पंजाब और जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में आतंकियों को हथियार और नशीली दवाएं भेजने की लगातार कई घटनाएं हो चुकी हैं। वह ड्रोन से हमले भी कर चुका है। इस काम में उसे अब तक चीन से मदद मिल रही है। वर्ष 2016 में पहली बार पाकिस्तान की मियांवाली हवाईअड्डे पर चीन निíमत मानवरहित विमान (ड्रोन) देखे गए थे। सैटेलाइट तस्वीरों में उसके बाद से 2017 और बीते जुलाई में वहां के अलग-अलग जगहों पर चीन निर्मित ड्रोन देखे गए हैं।
एक आनलाइन डिफेंस पोर्टल के मुताबिक पाकिस्तान ने चीन से 'काई हांग 4' नामक पांच ड्रोन खरीदे हैं। पाकिस्तान की नजर तुर्की निर्मित ड्रोन पर भी है। अजरबैजान और आर्मेनिया की लड़ाई में अजरबैजान की ओर से तुर्की में बने ड्रोन इस्तेमाल किए गए। इन्हीं की बमबारी का नतीजा था कि पिछले साल नवंबर में आर्मेनिया को हथियार डालने पर मजबूर होना पड़ा। ये ड्रोन पाकिस्तान तक पहुंच सकते हैं। पाकिस्तान की कूटनीति तुर्की को साधने में जुटी है। सऊदी अरब और यूएई से निराश पाकिस्तान तुर्की से करीबी बढ़ा रहा है।
कभी रूस का हिस्सा रहे अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच हुई लड़ाई ने सभी देशों के नीति-नियंताओं के सामने स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य के युद्ध कैसे होंगे। दोनों देशों के बीच नगर्नो कराबाख का इलाका विवाद का विषय बना हुआ है। परंपरागत रूप से यह इलाका अरजबैजान का हिस्सा माना जाता है, लेकिन 1994 से इस हिस्से पर आर्मेनियाई सेना का कब्जा है। दोनों देशों के बीच की यह लड़ाई बता रही है कि युद्ध के रंगमंच का हुलिया अब बदल रहा है। परंपरागत हथियारों और परमाणु अस्त्रों के साथ-साथ अब सभी देशों का ध्यान ड्रोन टेक्नोलाजी में महारत हासिल करने पर है। यह सुखद है कि प्रधानमंत्री ने वाशिंगटन में पिछले हफ्ते ड्रोन टेक्नोलाजी में दुनिया की जिस शीर्ष कंपनी जनरल एटामिक्स को निवेश के लिए आमंत्रित किया उसके सीईओ विवेक लाल भारतीय मूल के हैं।
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