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- मुद्दों के अखाड़े में
'अपनी ख्याति पर दुपट्टा ओढे़ इंतजार किसका करें, यह पौ बारह का समाधान है मलाल किसका करें।' यह जिक्र उस उदारता का है जो हर बार हिमाचल की सरकार को श्रेष्ठ मानने की शर्त सरीखा है। यानी एक हाथ से दो और दूसरे से श्रेष्ठ होने की पावती हासिल करो। अभी बुधवार को ही हिमाचल सरकार ने देव संस्कृति के अनुष्ठान में अपने फैसलों की परिक्रमा की थी, लेकिन गुरुवार के परिदृश्य में सारी बाजी पलट दी गई। यानी हिमाचल में ईश्वर को पूजना आसान है, लेकिन कर्मचारी वर्ग के प्रति सरकार की आस्था को महसूस करना अति कठिन हो चुका है। कर्मचारी जो मांग रहे हैं, वह उनकी जरूरत को अभिव्यक्त करता है, लेकिन सरकार के पास अब तजुर्बेकार फैसलों के बजाय फैसलों की फांस बढ़ रही है। बहरहाल, यह तो मानना पड़ेगा कि सरकार मानने के मनोयोग में हर तरह की मांग की आपूर्ति में खुद को और सरकारी खजाने को बलिदान कर रही है। इसीलिए शिमला पहुंचे धरना प्रदर्शन की भी कीमत अदा होगी, भले ही इससे पहले सरकार ने धरना-प्रदर्शन रोकने का शंखनाद करते हुए एहतियाती कदम उठा लिए थे, लेकिन यहां तो आर-पार की स्थिति में सारा राज्य फंस रहा है।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल