सम्पादकीय

तपोवन सत्र की मुंह दिखाई में

Rani Sahu
17 Dec 2021 6:52 PM GMT
तपोवन सत्र की मुंह दिखाई में
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हिमाचल विधानसभा का शीतकालीन या तपोवन सत्र अपनी गरिमा में राजनीतिक मुंह दिखाई भी करता है

हिमाचल विधानसभा का शीतकालीन या तपोवन सत्र अपनी गरिमा में राजनीतिक मुंह दिखाई भी करता है और अगर इसके आलोक में प्रदेश के विषय पढ़े जाएं, तो यह सत्ता का संतुलन है या ऐसी माटी की गंध, जो शिमला के चौबारे नहीं सूंघ पाते। जयराम सरकार अपने अंतिम पड़ाव में रिपोर्ट कार्ड के साथ शेष काल अवधि की महत्त्वाकांक्षा को संवारती रही, तो विपक्ष ने खुद को साबित करते मजमून ढूंढ लिए। कांग्रेस के प्रदर्शन में जितना गुलाल उड़ा, उसके रंग बताते हैं कि पार्टी के भीतर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की कितनी परछाइयां हैं, फिर भी नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री की भूमिका में मुद्दे इस बार सरकार को अग्निपरीक्षा में डालते हुए दिखाई दिए। विपक्ष की पेशकश में स्वाभाविक आक्रोश था, लेकिन सदन के भीतर कार्यवाही और चर्चा के भीतर संवाद कायम रहा। इसीलिए छोटे से शीतकालीन सत्र ने सदन के 28 घंटे सींच दिए। यह दीगर है कि सदन के बाहर सुनाने को बहुत कुछ था और पहले से अंतिम दिन तक चलता रहा घटनाक्रम प्रदेश की हवाओं का घर्षण तथा सत्ता की अदाओं के स्पर्श के बीच मुकाबिल रहा। प्रदेश के कई पक्ष सड़कों से होते हुए विधानसभा परिसर तक पहुंचे, तो बेतकल्लुफ मुलाकातों में कुछ कवच टूटे और इसी कड़ी में सामान्य वर्ग आयोग के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ।

जेसीसी बैठक की मुलायम बैठक के बावजूद कर्मचारियों के सख्त लहजे अगर तपोवन आए, तो इस वकालत के झंडे तले पुलिस पे बैंड, ओल्ड पेंशन स्कीम तथा आउटसोर्स कर्मचारियों के अनुबंध पर सारा हिमाचल देखा गया और कांग्रेस ने भी सदन में शिद्दत से हल्ला बोला। सदन ने दो दिन अगर मुख्यमंत्री को अनुपस्थित पाया, तो वरिष्ठता व सत्ता की घनिष्टता में अव्वल आंके गए जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह और शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज को भाजपा की अग्रिम पंक्ति में देखा गया। सदन इस बार कुछ बहस कर पाया और इसके लिए विपक्ष की गंभीरता और अदा भी काम आई। इसी कड़ी में कुछ विषय व्यापक चर्चा पैदा कर गए। पर्यटन विभाग की संपत्तियों से जुड़े एक विषय पर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री के सवाल गहन चिंतन करते हैं। एडीबी से प्राप्त ऋण का हवाला देते हुए विपक्ष चार संपत्तियों पर व्यय किए दो सौ करोड़ का हवाला देते हुए पूछता है कि इन्हें चंद लाख रुपए की वार्षिक लीज पर क्यों दिया गया। उल्लेखनीय है कि मंडी कन्वेंशन 41.57 करोड़, जंजैहली का आर्ट एंड कल्चरल सेंटर 27.16 करोड़, क्यारी घाट कन्वेंशन परिसर 37.50 करोड़ और बड़ा ग्राम के 47.19 करोड़ के आर्ट सेंटर का औचित्य अब निजी क्षेत्र में संपन्न होगा और यह सौदा कितने घाटे का है, इस पर चर्चा के खुलासे अहम हो जाते हैं। यहीं से निकलती कैग रिपोर्ट राज्य की आर्थिक स्थिति पर टिप्पणी करती है। पिछले एक साल के मुकाबले कर्ज अगर 14.57 प्रतिशत बढ़ जाता है, तो कर्मचारियों के हक में अतिरिक्त खर्च हो रहे 75000 करोड़ का अगले बजट में जिक्र होगा और यह पहलू हमारी आत्मनिर्भरता के बंद दरवाजों को कैसे खोलेगा, विचार करना होगा।
कर्ज का पहाड़ हमारी अर्थव्यवस्था की खिल्ली उड़ाते हुए अगर बासठ हजार करोड़ से ऊपर निकल गया है, तो बजटीय प्रावधानों की खिदमत में जाया होती राज्य की ऊर्जा का क्या करें। उधार उतारने के लिए भी कर्ज का बोझ बढ़ता जाए और जब औकात से बढ़कर नखरे हो जाएं, तो सरकार की दरियादिली का हिसाब कौन करेगा। जाहिर है आर्थिक सुधारों, सुशासन तथा सरकारी कार्यसंस्कृति पर पक्ष व प्रतिपक्ष के बीच संवाद होना चाहिए, लेकिन सत्ता के विरोध में हमेशा विपक्ष उन्हीं कांटों को चुनता है जो वास्तव में राज्य के खजाने को लहूलुहान करते हैं। यानी प्रदेश के आर्थिक हालात, स्वरोजगार और निजी निवेश के जरिए रोजगार पर चर्चा के बजाय कर्मचारी सियासत को साधने की कला में हिमाचल के सारे लिफाफे खाली हो रहे हैं। कुल मिला कर तपोवन में पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच बहस की कुछ सामग्री चुनी गई, जबकि अनेक विषय अभी भी राजनीतिक प्राथमिकताओं से दूर केवल फिजूलखर्ची के आलम में झूल रहे हैं। अगर निवेश की ग्राउंड ब्रेकिंग जैसे विषय पर भी यह पूछ लिया जाए कि सारे तामझाम में रोजगार के वादे क्या हैं और तमाम प्रस्तावों के बीच पर्यटन क्षेत्र की स्थिति क्या है, तो मालूम हो जाएगा कि प्रदेश के लिए संभावनाएं हैं कितनी।

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