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- आपदा के सामने
तुर्किये और सीरिया अरेबियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट के ऊपर बसे हुए हैं। ये प्लेटें एक दूसरे से टकराती हैं या फिर एक दूसरे से दूर जाती हैं, तब भूकंप जैसी स्थिति पैदा होती है। कुछ दिन पहले तुर्की में आए 7.8 की तीव्रता के भूकंप से कम से कम 20,000 लोगों की मृत्यु तथा 65,000 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है। लेकिन लगता है यह आंकड़ा अभी बहुत आगे जा सकता है। भारत भी 'आपरेशन दोस्त' के तहत पूरी मदद करने की कोशिश कर रहा है।
भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है, जिसे रोका नहीं जा सकता, लेकिन भूकंपीय क्षेत्र में भूकंपरोधी मकान बनाकर और जहां भूकंप आने का अत्यधिक खतरा रहता है, वहां पर मकान न बनाकर नुकसान और तबाही को कम किया जा सकता है। भारत में भी भारतीय प्लेट के एशियाई प्लेट के नीचे क्षेपित होने से हिमालय का निर्माण हुआ है और अभी भी यह क्षेपण की प्रक्रिया जारी है, जिससे इस क्षेत्र में भूकंप आने की संभावना हमेशा बनी रहती है। लेकिन अत्यधिक पर्यटन आकर्षण का केंद्र होने की वजह से लोग हिमालय क्षेत्र में ही जाकर बस रहे हैं बिना किसी नियम और कानून-व्यवस्था को ध्यान में रखे।
ये भविष्य में भूकंपीय आपदा से निपटने में परेशानी खड़ी करेंगे और जान-माल के नुकसान में भागीदार बनेंगे। इसलिए अभी से भूकंपीय क्षेत्र में मकानों और पर्यटन को ध्यान में रखकर बढ़ावा दिया जाए तो नुकसान को कम किया जा सकता है। अन्यथा तबाही का तुर्किये और सीरिया का मंजर भविष्य में कहीं भी देखने को मिल सकता है।
राजस्थान विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की एक बड़ी लापरवाही उनके लिए मुसीबत का कारण बन गई। दरअसल, गहलोत ने विधानसभा में बजट पेश किया। उन्होंने ने छह मिनट से ज्यादा पिछले साल का पुराना बजट पढ़ डाला, जिसके बाद उनके मंत्री को टोकने पर उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ।
वहीं इस दौरान सदन में विपक्ष ने मुख्यमंत्री गहलोत की इस लापरवाही को लेकर जमकर हंगामा किया। विपक्ष इस प्रकरण को पेपर लीक मामले से जोड़कर लगातार मुख्यमंत्री पर निशाना साध रहा है। जाहिर है, इन सब के बीच राजस्थान की जनता का भरोसा गहलोत से डगमगा सकता है।
दरअसल बजट पर राजस्थान की जनता की नजरें और आशाएं दोनों टिकी हुई थीं। ऐसे में इतनी बड़ी लापरवाही न सिर्फ विपक्ष के सामने उनकी छवि धूमिल कर गई, बल्कि उन्हें जनता के सामने भी हंसी का पात्र बना कर पेश कर गई। इस लापरवाही के पीछे चाहे जो भी अधिकारी शामिल हो, मगर सवाल तो सूबे के मुखिया अशोक गहलोत से बनते हैं कि आखिर इतनी देर तक पुराना बजट पढ़ने के बावजूद उन्हें अहसास क्यों नहीं हुआ? आखिर वे कौन से अधिकारी शामिल थे जिन पर बजट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी? उम्मीद है मामले की गंभीरता को देखते हुए जल्द से जल्द इस पर कार्रवाई होगी और भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न दोहराई जाएं तो सबके हित में होगा।
भारत में दाल की महत्ता से सभी लोग वाकिफ हैं, लेकिन महंगाई की वजह से गरीबों की थाली से दाल गायब हो चुकी है। भारत में अरहर, चना, मसूर और खेसारी का दाल प्रमुख रूप से पाया जाता है। खेसारी का दाल सस्ती होने की वजह से जन-जन तक उपलब्ध थी, लेकिन कुछ बीमारियों में खेसारी की सहायक भूमिका होने की वजह से उसे प्रतिबंधित कर दिया गया और आज यह गरीबों की थाली से दाल गायब हो चुका है।
खेसारी पर और अधिक शोध करने की आवश्यकता है। भारत की विशाल आबादी को दाल की आपूर्ति का दायरा बढ़ाना होगा। विश्व दलहन गुजर गया, लेकिन ऐसे दिवसों की रस्म अदायगी से गरीबों की दाल की समस्या दूर नहीं हो सकती है। जन वितरण प्रणाली के द्वारा आमजनों तक दाल उपलब्ध करानी चाहिए।
भारत की अंतरिक्ष एजंसी इरो ने अपने सबसे छोटे राकेट एसएसएलवी-डी2 को अंतरिक्ष में भेजकर सफलता की नई उड़ान भरी। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से यह राकेट अपने साथ तीन सैटेलाइट भी लेकर गया है। इस तरह इसरो की शान में एक और कामयाबी जुड़ गई है। वर्तमान समय में अत्याधुनिक तकनीक को सैटेलाइट परीक्षण की सर्वाधिक आवश्यकता है. और यह वर्ष दर वर्ष बढ़ती ही जाएगी। इसके द्वारा शिक्षा, कृषि ,लघु उद्योग और अनेक कार्यों में यह कारगर सिद्ध होगा। छोटे उपग्रहों के माध्यम से सुदूर गांव में भी इंटरनेट और मोबाइल सिग्नल मिलना आसान हो जाएगा।
लोगों को प्रतिदिन के कामकाज के लिए कई तरह की नई सुविधाएं प्राप्त हो जाएंगी। वहीं इसरो भी अभी तक बिना मुनाफे के चल रहा था, मगर अब उसके मुनाफे में भी भारी वृद्धि हो जाएगी। विशेष तौर से छात्रों द्वारा बनाया गया सैटेलाइट अपना आर्बिट में जाकर सौर पैनल खोलेगा, जिससे उसे पर्याप्त सौर ऊर्जा प्राप्त होती रहेगी और यह लंबे समय तक काम करता रहेगा। संसार में पहली बार किया गया यह प्रयोग सफल रहना भारत के लिए गौरव की बात है।
पशुपालन और आहार के प्रति जागरूकता जरूरी है। गौरतलब है कि ऐसा कोई घर और व्यक्ति नहीं होगा, जो दूध का सेवन न करता हो। वहीं गत वर्ष में ही लगातार पांच बार दाम में वृद्धि होने से दूध इतना महंगा हो चुका है जो सबकी और खासतौर पर गरीब वर्ग की मुश्किलें बढ़ा रहा है। कहा जाता है कि भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, लेकिन इसकी सत्यता पर संदेह भी होता है, क्योंकि मंहगा और कृत्रिम दूध ही इसे झुठला रहा है।
गौरतलब है कि कुपोषण दूर करने का प्रमुख पेय पदार्थ दूध है। इसलिए दवाई उत्पादन में वृद्धि के बजाय अगर हम पशुपालन और पशुआहार के प्रति जागरूक होकर दूध के उत्पादन को बढ़ाएंगें, तो सस्ता दूध कुपोषण को दूर करेगा और लोग स्वस्थ जीवन भी जी सकेंगे।
क्रेडिट : jansatta.com