सम्पादकीय

आर.के लक्ष्मण की निगाह में राजा और रंक में कोई भेद नहीं

Rani Sahu
13 Oct 2021 8:46 AM GMT
आर.के लक्ष्मण की निगाह में राजा और रंक में कोई भेद नहीं
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लंबे समय तक कार्टूनिस्ट आर.के लक्ष्मण के कार्टून समाज के विरोधाभास और विसंगतियों को प्रस्तुत करके हमें हंसाने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर करते रहे

जयप्रकाश चौकसे लंबे समय तक कार्टूनिस्ट आर.के लक्ष्मण के कार्टून समाज के विरोधाभास और विसंगतियों को प्रस्तुत करके हमें हंसाने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर करते रहे। गोया कि आर.के लक्ष्मण के कार्टूनों में आम आदमी, अन्याय व असमानता का दर्शक मात्र है। उसने तंग कोट पहना है। उसकी बगल में छाता है और उसके सिर्फ तीन या चार बाल खड़े हैं। उसके ये बाल अनुत्तरित प्रश्नों की तरह खड़े हैं। आर.के लक्ष्मण की निगाह में राजा और रंक में कोई भेद नहीं है।

लक्ष्मण और चार्ली चैपलिन के पात्रों में कुछ समानता है। चैप्लिन के तंग दिखने वाले कोट में अवाम के अरमान कैद लगते हैं और ऊंची पैंट भी उसकी खस्ता माली हालत को अभिव्यक्त करती है। याद आता है शैलेंद्र का लिखा गीत 'निकल पड़े हैं खुली सड़क पर अपना सीना ताने, मंज़िल कहां, कहां रुकना है, ऊपर वाला जाने..., होंगे राजे राजकुंवर, हम बिगड़े दिल शहज़ादे, हम सिंहासन पर जा बैठे जब-जब करें इरादे।'
ताजा खबर यह है कि एक प्रतिष्ठित अखबार में आर.के लक्ष्मण के कार्टून पुनः प्रकाशित किए जा रहे हैं। परंतु इस बार उन पर लिखी इबारत हटा दी गई। एक प्रतियोगिता घोषित की गई है कि वर्तमान के संदर्भ में नई इबारत लिखें और पुरस्कार जीतें। आर.के लक्ष्मण के कार्टून में विट होता था, जिसे हास्य नहीं समझा जाना चाहिए, इसमें व्यंग्य है। 'विट' से व्यक्ति तिलमिला जाता है, भीतर घाव बन जाता है। वह निरुत्तर रह जाता है।
पी.जी वुडहाऊस की रचना में बर्नाड शॉ का हास्य है । ज्ञातव्य है कि बर्नाड शॉ देखने में सुंदर नहीं थे, परंतु उन्हें कुरूप भी नहीं कहा जा सकता। शॉ की वाणी में बांकपन था। कहा जाता है कि एक बार मर्लिन मुनरो ने शॉ से शादी करने की इच्छा जाहिर की। मर्लिन का विचार यह रहा कि इस विवाह से जन्मे बच्चे उसकी तरह सुंदर और शॉ की तरह विद्वान होंगे। बर्नाड शॉ ने अपना भय जाहिर किया कि इस विवाह से जन्मे बच्चे, स्वयं शॉ की तरह असुंदर और मर्लिन की तरह अल्पबुद्धि भी हो सकते हैं।
यह बर्नाड का विट है। विट, विचार संसार सागर में प्रकाश स्तंभ की तरह होता है। कार्टून और कैरीकेचर में अंतर होता है। मनुष्य और मोहरे में भी अंतर होता है। लंबे समय तक मुखौटा धारण करने से चेहरा गुम हो जाता है। चश्मा रख कर भूल जाते हैं। कॉन्टेक्ट लेंस और चश्मा खोजने से अधिक कठिन है अपना चेहरा खोजना। आर.के.लक्ष्मण के पुराने कार्टूनों में समसामयिक इबारत भरना बहुत कठिन प्रतियोगिता है। वर्तमान में जाने कब कौन आहत हो जाता है?
तुनक मिजाजी की अपनी हद है, हाजिर जवाबी भी सहन नहीं होती। हर व्यक्ति किसी न किसी से टकराना चाहता है। अरसे पहले प्रकाशित आर.के लक्ष्मण के कार्टून में नई इबारत लिखने की प्रतियोगिता केवल युवा वर्ग के लिए आयोजित है। इस युवा की विचार प्रक्रिया में केवल कड़वाहट है। वह रिबेल विदाउट कॉज की तरह है। वह 'विट' कहां से लाएगा? उसने परिवार में तल्ख़ियां देखी हैं। एक दौर में अंग्रेजों की हुकूमत इतने अधिक देशों में थी कि कहा गया कि हुकूमत-ए-बरतानिया में सूर्य कभी अस्त नहीं होता।
आर.के.लक्ष्मण का रचना काल वह था, जब सदियों की गुलामी से भारत मुक्त हुआ था। उस दौर में आम आदमी के सपने और भय अलग-अलग किस्म के थे। उस दौर की जद्दोजहद, शैलेंद्र ने अमिया चक्रवर्ती की नूतन अभिनीत फिल्म 'सीमा' में प्रस्तुत की थी, 'घायल मन का पागल पंछी उड़ने को बेक़रार, पंख है घायल, आंख है धुंधली, जाना है सागर पार, अब तू ही हमें बतला कि आएं कौन दिशा से हम।'
हमने समाजवादी रास्ता चुना। आधुनिक भारत की आधारशिला रखी गई। सदियों में बने सांस्कृतिक मूल्यों को कायम रखा और आधुनिकता का समावेश किया। हर कालखंड में आगे ले जाने वालों के रास्तों में बाधाएं खड़ी की जाती हैं। मगर चलते रहने का हौसला बना रहना जरूरी है।


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