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सेना किसी भी देश की संप्रुभता की रीढ़ होती है
सेना किसी भी देश की संप्रुभता की रीढ़ होती है. भारत जैसे सकारात्मक सजीव और सक्रिय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती यह है कि अजेय और शक्तिशाली सेना भले ही देश के अंदरूनी मामलों में नियमित हस्तक्षेप नहीं करती, लेकिन उसके शौर्य के कारण ही शत्रु देश हमारे अंदरूनी मामलों में दख़ल करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. आज प्रत्यक्ष युद्धों की आशंका तो बहुत कम है, लेकिन आतंकवाद जैसे विध्वंसक विचारों से हर पल ही युद्ध लड़ना होता है. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान हमारा पारंपरिक शत्रु है. उसे चीन का प्रत्यक्ष सहयोग हासिल है. अब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के शासन के बाद बने हालात में भारत को बहुत सतर्क और चौकन्ना रहने की ज़रूरत है
ऐसे में राजधानी दिल्ली में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बने रक्षा मंत्रालय के दो दफ़्तरों के उद्घाटन के साथ ही भारतीय सेना का मनोबल भी नई ऊंचाई पर अवश्य पहुंच गया होगा. भारतीय सेना के अदम्य साहस पर हर भारतीय को पूरा विश्वास है. अब कामकाज के लिए अत्याधुनिक भवन और दूसरी तमाम सुविधाएं मिल जाने के बाद सेना में नई स्फ़ूर्ति का संचार अवश्य होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग और अफ़्रीका एवेन्यू स्थित दो नए रक्षा कार्यालयों के उद्घाटन के अवसर पर जो कुछ कहा, उससे फिर साबित हुआ कि उनकी दृष्टि भारत को शक्ति और समृद्धि के नए युग की ओर ले जाने पर है. प्रधानमंत्री ने इस मौक़े पर राजनैतिक विरोधियों के मुंह तो सिले ही, लेकिन जिस अंदाज़ में उन्होंने बात रखी, उससे फिर साफ़ हो गया कि उनका ध्येय सुविचारित सुगम भाषणों के माध्यम से सिर्फ़ स्वयं की सरकार की राजनैतिक श्रेष्ठता साबित करना नहीं, बल्कि देश का वास्तविक विकास करना है.
देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब सेना को गुलामी के कई बड़े प्रतीकों से मुक्ति मिलना सुखद अनुभव है. अभी तक सेना का कामकाज अंग्रेज़ों के ज़माने में बनी इमारतों में होता था, जिनमें बहुत सी बैरकें थीं. अस्तबलनुमा घोड़े बांधने की बहुत सी जगहों पर सेना के अफ़सर कामकाज निपटाते थे. पहले घोड़े अफ़सरों की मुख्य सवारी होते थे, लिहाज़ा अस्तबल उस समय की ज़रूरत थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है. ये बैरकें जर्जर हो चुकी थीं. कभी भी बड़ा हादसा हो सकता था. लेकिन अब नई सुविधाओं से लैस आधुनिक इमारतों में सेना का कामकाज होगा. इस तरह सेना पर अनौपचारिक रूप से लगी औपनिवेशिक काल की मुहर अब अंतिम तौर पर मिट गई है.
साथ ही दुनिया की सर्वश्रेष्ठ चंद सेनाओं में शुमार भारत की सेना अब नई ऊर्जा की चमक महसूस करेगी. गुलामी के प्रतीकों से मुक्त होना स्वाभाविक रूप से मन में नई चेतना भरता है. इस लिहाज़ से आज़ादी के 75वें वर्ष में भारतीय सेना को नए कार्यालय मिलना महत्वपूर्ण घटना है. ऐसे कार्यालय, जिनमें भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणाओं को अनुभव करने लायक सारी सामग्री जुटाई गई है. भारतीय कलाकारों की पेंटिंग और कलाकृतियां जुटाई गई हैं. पूरी तरह आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते हुए अपनी संस्कृति पर गौरव का बोध कराने वाला वातावरण बनाया गया है.
दिल्ली में सेना के नए कार्यालयों का उद्घाटन सिर्फ़ सेना को मिली नई कामकाजी सुविधाओं से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि यह विश्व की समृद्धतम राजधानियों में से एक के विकास की राह सुगम बनाने का मामला भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी कि आज़ादी के 75वें वर्ष में आज हम देश की राजधानी को नए भारत की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार विकसित करने की तरफ़ महत्वपूर्ण क़दम बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज जब भारत अपनी सैन्य ताकत को हर लिहाज से आधुनिक बनाने में जुटा है, अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने में जुटा है, सेना की ज़रूरत की ख़रीद प्रक्रिया रफ़्तार पकड़ रही है, तब देश की रक्षा से जुड़ा कामकाज दशकों पुराने तरीके से हो, ये कैसे संभव हो सकता है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर कोरोना काल में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की आलोचना करने वालों को भी आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि जो लोग इस प्रोजेक्ट के पीछे डंडा लेकर पड़े थे, वे भारतीय सेना के लिए बने दो ऑफ़िस कॉम्पलेक्स का उल्लेख बिल्कुल नहीं करते थे. अब जब उन्हें पता लगा है कि नए कॉम्पलेक्स में सेना के सात हज़ार से ज़्यादा अफ़सर ज़रूरी कामकाज निपटाएंगे, तो विरोधियों के मुंह सिल गए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि देश के मीडिया ने भी सेना के दफ़्तर की जर्जर हालत पर कभी रिपोर्टिंग नहीं की. प्रधानमंत्री की दृष्टि में किसी देश की राजधानी सिर्फ़ एक शहर नहीं होता. किसी भी देश की राजधानी उस देश की सोच, संकल्प, सामर्थ्य और संस्कृति का प्रतीक होती है. लोकतंत्र के जनक भारत की राजधानी ऐसी होनी चाहिए, जिसके केंद्र में लोक हो, जनता हो. उन्होंने बताया कि इस दृष्टि से राजधानी दिल्ली को हर लिहाज से विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात का उल्लेख ख़ास तौर पर किया कि इन दोनों इमारतों के निर्माण में लगे हज़ारों श्रमिकों को कोरोना काल में रोज़गार मिला. उन्होंने बताया कि कोरोना काल के कारण हालांकि परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं, फिर भी डिफ़ेंस ऑफ़िस कॉम्पलेक्स 24 महीने की बजाए सिर्फ़ 12 महीने में ही पूरा हो गया. इससे पहले रक्षा मंत्रालय का मुख्य कार्यालय साउथ ब्लॉक के पास था और बाकी दफ़्तर इधर-उधर स्थित थे. लेकिन अब सारे कार्यालय दो इमारतों में आ जाएंगे. उद्घाटन कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, आवास और शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी, रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट, आवास और शहरी कार्य राज्य मंत्री कौशल किशोर, सीडीएस जनरल विपिन रावत समेत तीनों सेनाओं के प्रमुख शामिल रहे.
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के पहले चरण के तहत बनी दो बड़ी इमारतों का उद्घाटन हो गया है. जिस तरह निर्माण कार्य तय समय से आधे वक्त में किया गया है, इससे साफ़ है कि पूरा सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट जल्द ही आकार लेता दिखाई दे सकता है. विपक्ष ने आरोपों की झड़ी लगाई थी कि कोरोना की रोकथाम पर पैसा ख़र्च करने की बजाए सरकार सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर पैसे बर्बाद कर रही है. तब सरकार ने साफ़ किया था कि कोरोना से निपटने का बजट अलग है और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के बजट से इसका कोई लेना-देना नहीं है. अब सेना मुख्यालय और दूसरे दफ़्तरों का उद्घाटन हो जाने के बाद शायद ही विपक्ष का कोई नेता सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का विरोध करेगा.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
रवि पाराशर, वरिष्ठ पत्रकार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं. नवभारत टाइम्स, ज़ी न्यूज़, आजतक और सहारा टीवी नेटवर्क में विभिन्न पदों पर 30 साल से ज़्यादा का अनुभव रखते हैं. कई विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग फ़ैकल्टी रहे हैं. विभिन्न विषयों पर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में शामिल हो चुके हैं. ग़ज़लों का संकलन 'एक पत्ता हम भी लेंगे' प्रकाशित हो चुका है।
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