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- झाड़ू के शोरूम में

जब से सरकार ने देश की स्वच्छता, वोकल फॉर लोकल, आत्मनिर्भर भारत तथा राष्ट्रीय स्वाभिमान में झाड़ू की शालीनता को स्वीकार किया है, कई तरह के झाड़ू बाजार में आ गए हैं। झाड़ू के साथ लिया गया चित्र हमें विशुद्ध रूप में भारतीय बना देता है, बल्कि कई बार तो सार्वजनिक समारोहों में बेचारे फोटोग्राफरों को व्यक्तिगत रूप से नेताओं को झाड़ू परोसना पड़ता है। देश को भरोसा हो गया है कि अगले दशक में कुछ चले न चले, झाड़ू जरूर चलेगा। हो न हो, एक दिन हम इसी झाड़ू की वजह से विश्व गुरु बनेंगे। झाड़ू खुद में अर्थतंत्र, सामाजिक गठबंधन, पारिवारिक बंधन और व्यावसायिक तथा राजनीतिक मंथन हो चुका है। घर-घर में झाड़ू के कारण नए रिश्ते विकसित हो रहे हैं। सुबह आने वाली कामवाली जितना तेज झाड़ू घुमाती है, उतना ही पगार पाती है। हमारे द्वारा लाए गए हर झाड़ू को वह बेकार साबित कर चुकी है। उसका निरीक्षण-परीक्षण झाड़ू की नोक पर होता है। उस दिन शुभ सूचना पाकर खुश हुआ कि शहर में झाड़ू के शोरूम का उद्घाटन होने जा रहा है। पार्टी से संबंधित होने के कारण स्थानीय विधायक के साथ शोरूम के उद्घाटन के अतिथि तो थे ही, लिहाजा रिबन काटते ही सजे-धजे झाड़ू के शोरूम के अंदर थे। तरह-तरह के झाड़ू हमारे जैसे सियासी प्राणियों को देखकर मुस्करा रहे थे, कई आपस में ही चोंच लड़ा रहे थे।
