सम्पादकीय

राजस्थान में पहले करौली और अब जोधपुर की हिंसा से राज्य सरकार कठघरे में

Rani Sahu
6 May 2022 10:13 AM GMT
राजस्थान में पहले करौली और अब जोधपुर की हिंसा से राज्य सरकार कठघरे में
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राजस्थान में पहले करौली और अब जोधपुर की हिंसा ने पूरे देश में चिंता उत्पन्न की है

अवधेश कुमार।

राजस्थान में पहले करौली और अब जोधपुर की हिंसा ने पूरे देश में चिंता उत्पन्न की है। जोधपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृहनगर भी है। वह कह रहे हैं कि उन्होंने संपूर्ण जीवन पंथनिरपेक्षता की रक्षा के लिए लगाया है। आखिर ऐसी सफाई देने की नौबत आई क्यों? गहलोत और उनके समर्थकों की नजर में पंथनिरपेक्षता का अर्थ क्या है, इसे भी उन्हें स्पष्ट करना चाहिए। करौली में नव संवत्सर के अवसर पर निकाली गई शोभायात्रा पर हमले के बाद की कार्रवाई में निष्पक्षता अभी तक नहीं दिखी। अगर करौली की घटना के बाद पुलिस प्रशासन ने पूरी सख्ती दिखाई होती, शोभा यात्रा पर हमले के दोषी पकड़े जाते तो शायद जोधपुर की हिंसा देखने को नहीं मिलती। करौली हिंसा का पूरा सच सामने था, लेकिन सरकार भाजपा पर आरोप लगाने में ज्यादा शक्ति खर्च करती रही।

सरकार ने मजहबी कट्टरपंथी तत्वों पर थोड़ा भी फोकस किया होता तो तस्वीर दूसरी होती। वास्तव में करौली हिंसा पूरे राजस्थान में सतह के अंदर व्याप्त स्थिति का एक प्रकटीकरण मात्र थी। निश्चय ही इसके बाद सरकार ने खुफिया रपटों का अध्ययन किया होगा। यह संभव नहीं कि एक ही दिन ईद और परशुराम जन्मोत्सव होने के कारण तनाव, हिंसा आदि की आशंका खुफिया रपटों में न हो। इसे ध्यान में रखते हुए संवेदनशील स्थानों पर सख्त सुरक्षा व्यवस्था एवं हिंसा रोकने संबंधी कदम उठाए जाने चाहिए थे, लेकिन जोधपुर की घटना बताती है कि ऐसा नहीं किया गया।
करौली और जोधपुर के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में शोभा यात्रओं पर हुए हमलों ने यह साफ कर दिया है कि बड़ी संख्या में भारत विरोधी तत्व सांप्रदायिक हिंसा फैला कर देश की एकता को बाधित करना चाहते हैं। पकड़े गए लोगों से पूछताछ के बाद कई ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं, जो भय पैदा करते हैं। करौली की घटना के बाद गहलोत सरकार की जिम्मेदारी थी कि पूरी स्थिति की समीक्षा कर नए सिरे से सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता करती। उसने ऐसा नहीं किया। जोधपुर में परशुराम जन्मोत्सव पर शोभायात्रा निकालने की घोषणा हो चुकी थी। तय मार्ग पर यात्र के आयोजकों ने जगह-जगह भगवा झंडे लगाए थे। चूंकि प्रशासन ने शोभा यात्र की अनुमति दी थी, इसलिए यह जिम्मेदारी उसकी ही थी कि कहां झंडे लगेंगे और कहां नहीं? यदि आरंभ में उसने शर्त लगाई होती कि कहीं झंडे नहीं लगेंगे तो नहीं लगते।
हालांकि बाद में प्रशासन ने यात्र के आयोजकों से बात कर ज्यादातर जगहों से भगवा झंडे हटवा दिए। बड़ी संख्या में लगे होने के कारण दो-चार झंडे छूट जाना अस्वाभाविक नहीं था। उन्हीं में से एक स्थान जालौरी गेट पर स्वतंत्रता सेनानी बालमुकुंद बिस्सा की प्रतिमा वाला सर्किल था। यहां आधी रात के बाद कुछ मुस्लिम युवक आए। उन्होंने भगवा झंडा उतार कर फेंक दिया और उसकी जगह चांद सितारे बने झंडे लगाने लगे। इसका विरोध होना ही था। झंडा लगाने वालों ने विरोध का जवाब हमले से दिया। उन्होंने न केवल झंडे लगाए, बल्कि प्रतिमा के मुंह पर कथित तौर पर टेप भी लगा दिया। सच जो भी हो, इससे तनाव बढ़ा। यहां पुलिस को त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए थी। इस घटना के दूसरे दिन जो कुछ हुआ, उसे हर दृष्टि से उपद्रवियों के बढ़े मनोबल और पुलिस की कमजोरी का ही परिणाम माना जाएगा। ईद की नमाज के बाद धार्मिक नारे लगने लगे। अनेक हाथों में तलवारें लहराने लगीं। इसके साथ पत्थरबाजी शुरू हो गई। एक युवक को चाकू घोंप दिया गया। अनेक वाहनों को तोड़ा गया। इस तरह की हिंसा का मतलब है कि पहले से तैयारी थी। स्थानीय भाजपा विधायक सूर्यकांता व्यास के घर पर हमला हुआ और मोहल्ले में तेजाब की बोतलें तक फेंकी गईं। स्थिति बिगड़ने पर कफ्यरू लगाना पड़ा।
सामान्यत: त्योहारों के पूर्व प्रशासन शांति और एकता समितियों की बैठक करता है। खुफिया इनपुट के आधार पर हर स्तर की सुरक्षा तैयारी होती है। आवश्यकता पड़ने पर कुछ लोगों को हिरासत में लिया जाता है। ऐसा राजस्थान में देखने को नहीं मिला। ध्यान रहे कि कहीं पर भी पुलिस प्रशासन राजनीतिक नेतृत्व के निर्देश के अनुसार ही काम करता है। उत्तर प्रदेश इसका उदाहरण है कि अगर राजनीतिक नेतृत्व कानून और व्यवस्था के प्रति संकल्पबद्ध हो तो स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन हो सकता है। 1947 के बाद पहला अवसर है जब उत्तर प्रदेश में अलविदा की कोई नमाज सड़क पर नहीं हुई। इसका अर्थ है कि अभी तक जानबूझकर ऐसा होता रहा। उत्तर प्रदेश में पूरे रमजान के महीने में कोई अवांछित घटना नहीं घटी। हर तरह की शोभा यात्रएं निकलीं और शांतिपूर्वक संपन्न भी हो गईं। ईद भी शांति से मनी। उत्तर प्रदेश में कई हजार धार्मिक स्थानों से अवैध लाउडस्पीकर हटाए गए और उनकी आवाज कम की गई। कहीं किसी ने इसके विरोध में हिंसक प्रतिक्रिया देखी? इससे राजस्थान और दूसरे राज्यों को भी सीख लेनी चाहिए।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जितना प्रतिबद्ध बताएं या कानून की सख्ती का दावा करें, सच्चाई सबके सामने है। जब कानून के उल्लंघन की घटनाओं की लगातार अनदेखी होती है तो असामाजिक एवं कट्टरपंथी तत्वों का मनोबल बढ़ता है और वे इसका अपने तरीके से लाभ उठाते हैं। नि:संदेह कोई पूरा समुदाय आक्रामक नहीं होता, लेकिन यदि उसके बीच के कुछ तत्वों का मनोबल बढ़ जाए तो यह प्रशासन के इकबाल का परिचायक नहीं हो सकता।
Rani Sahu

Rani Sahu

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