- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- 'अधिक हिंदू' बनने की...

x
‘प्रतिबंध संस्कृति’ (Ban Culture) एक ऐसे देश में खुद को तेजी से उजागर कर रही है
प्रशांत सक्सेना
'प्रतिबंध संस्कृति' (Ban Culture) एक ऐसे देश में खुद को तेजी से उजागर कर रही है, जो त्योहारों के दौरान मनाए जाने वाले जीवन के अनगिनत रंगों और अपने नागरिकों द्वारा साल भरौ खाए जाने वाले स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए जाना जाता है. ऐसी विविधताओं से वंचित भारत बिना आत्मा के विशाल लैंडस्केप (Landscape) जैसा प्रतीत होगा. हालांकि, हम 'अधिक हिंदू' (Hindu) होते जा रहे हैं और इसलिए अपने आप को अपने देवी-देवताओं के करीब ले जा रहे हैं. एक तरह से हम अपने भाग्य को 'गारंटीड मोक्ष' की राह पर चलने दे रहे हैं – विशेष रूप से नौ दिनों की नवरात्रि जैसे शुभ दिनों में मीट न खाकर.
तब जब मीट में मेरिट दिखता था
अपना तर्क जायज ठहराने के लिए हम अपनी सुविधानुसार 'अहिंसा' और मांसाहार की प्राचीन प्रथाओं की महिमा का सिलेक्टिव तरीके से हवाला देते हैं. हालांकि, हम खुद की हस्ती में 'कलियुग' के आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं, जहां सब कुछ अंधकारमय, अनैतिक और प्रदूषित होगा. इस प्रक्रिया में, हम तर्क देने के लिए बड़े रूखेपन से विवादप्रिय होते जा रहे हैं. हम किसी कारण से हिंदू हैं.
सदियों पहले, हमने मीट में मेरिट की खोज की क्योंकि हमें शरीर को गर्म और स्वस्थ रखना था, इससे हमें कई तरह के मसालों की खोज करने में भी मदद मिली. तथाकथित शुभ दिनों में भी मांस इतने स्वादिष्ट और विविध तरीकों से कभी नहीं पकाया जाता था. 'हिंदू' अलफ़ाज़ और उपमा के साथ समकालीन आत्म-जुनून ने किसी तरह हमारी शुभता (auspiciousness) को 'मांसाहार के पापों" से जोड़ने के लिए प्रेरित किया है.
'पावरफुल हिंदुओं' की मीट नैतिकता
यही कारण है कि अब हमारे पास मीट मोरैलटी (meat morality) के नए प्रतीक हैं – खास नामधारी मुकेश सूर्यन या श्याम सुंदर अग्रवाल या परवेश साहिब सिंह वर्मा. वो अत्यंत शक्तिशाली हिंदू हैं. वो जो कुछ भी मानते हैं, हम भी मानते हैं. 'ज्यादातर लोग नवरात्र के दौरान मांस नहीं खाते हैं,' ऐसा वो कहते हैं. इसलिए, वो दस्तूर बताते हैं, 'कम से कम 10 दिनों के लिए कोई मांस नहीं, ठीक है?' हम खुद को 'कबाब', 'बिरयानी' और 'मटन रोगन जोश' से वंचित करने की संभावना पर सिर हिलाते हुए कहते हैं, 'हां, यह सही है". अब तक हम जो थे उससे कहीं अधिक हिंदू होना चाहिए, यही उनका मतलब है.
हालांकि, 'पावरफुल हिंदुओं' से निपटने के तरीके हैं – मीट ऐप्स हमें सबसे अच्छी हाइजीनिक (hygienic) नॉन-वेज चीजें बेचते हैं – मुझे परवाह नहीं है कि यह 'हलाल' है या 'झटका'. हमारे बाज़ूवाला कसाई अब कम से कम 10 दिनों के लिए छुट्टी पर है – शायद उसे आउटहाउस ऐप्स ने हायर किया है, लेकिन 'पावरफुल हिंदुओं' को परवाह नहीं है.
भारत में मांसाहार के ट्रेंड कुछ और ही कहते हैं
ऐसे तथ्य हैं जिन्हें मौजूदा संदर्भ में नजरअंदाज करना बेहतर है: वैदिक काल में बीफ और अन्य मांस का सेवन किया जाता था, और बाद में ब्राह्मणों द्वारा भी. 2018 में, बीबीसी ने यूएस-बेस्ड मानवविज्ञानी (anthropologist) बालमुरली नटराजन और इंडिया के अर्थशास्त्री सूरज जैकब के एक रिसर्च का हवाला दिया.
उन्होंने बताया कि भारतीय मांसाहारी होने की कम रिपोर्ट करते हैं, विशेष रूप से बीफ, और वे शाकाहारी (vegetarian) होने की अधिक रिपोर्ट करते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, इन बातों को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं का कहना है कि केवल 20% भारतीय ही वास्तव में शाकाहारी हैं – सार्वजनिक दावों और स्टिरियोटाइप (stereotype) से बहुत कम.
एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश भारतीय शाकाहारी नहीं हैं. साल 2006 के द हिंदू-सीएनएन-आईबीएन स्टेट ऑफ द नेशन सर्वे के मुताबिक, वास्तव में केवल 31 प्रतिशत भारतीय शाकाहारी हैं. सभी शाकाहारी सदस्यों के साथ परिवारों के लिए यह आंकड़ा 21 प्रतिशत था. अन्य 9 प्रतिशत आबादी 'एगेटेरियन' (eggetarian) या शाकाहारी हैं जो अंडे खाते हैं.
मीट एक्सपोर्ट बढ़ना उनके लिए भी गर्व की बात
इस बीच, 'पावरफुल हिंदू' देश के बढ़ते मीट एक्सपोर्ट (meat export) पर बहुत गर्व करते हैं. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के तहत काम करने वाले कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण – Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority (APEDA) – के अनुसार हमारे पास खुश होने के लिए पर्याप्त सरकारी आंकड़ा है. एपीडा वेबसाइट के अनुसार, इंटरनेशनल मार्किट में भारतीय बफैलो मीट (buffalo meat) की डिमांड होने की वजह से मीट एक्सपोर्ट में अचानक वृद्धि हुई है. '
भारत से कुल पशु उत्पादों के निर्यात में 89.08 फीसदी से अधिक के योगदान के साथ भैंस के मांस का निर्यात सबसे अधिक होता है. भारतीय भैंस के मांस और अन्य पशु उत्पादों के मुख्य बाजार वियतनाम सोशल रिपब्लिक, मलेशिया, मिस्र (Egypt), अरब रिपब्लिक, इराक और सऊदी अरब हैं. 2020-21 में बकरी के मांस (goat meat) का निर्यात 329.96 करोड़ रुपये यानि 44.57 मिलियन डॉलर था.
हमारा बीफ एक्सपोर्ट बढ़कर 3.17 अरब डॉलर हो गया है. हम बीफ एक्सपोर्ट करने वाले शीर्ष पांच देशों में शामिल हैं. हिंदू धर्म में ऐसे भी समुदाय हैं जो मांस का सेवन कर सभी त्योहारों को मनाते हैं. वे अब विलुप्त होने के कगार पर हैं. उम्मीद है वे जश्न मनाने वाले हिंदूकरण की हमारी सामूहिक स्मृति में जीवित रहें.

Rani Sahu
Next Story