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- जीव विकट समस्या में
मेरी समस्या यह नहीं कि भोलाराम को अभी तक भी पेंशन नहीं लगी है। यह उसकी निजी समस्या है। और यहां किसी को किसी की निजी समस्या से कोई लेना देना नहीं होता। असल में परसाई के जमाने में मरने के बाद दफ्तर की जिन फाइलों के नीचे फैमिली पेंशन के इंतजार में भोलाराम का जीव यमपुरी जाने के बदले इसलिए छिपा था, कि जो उसके परिवार को फैमिली पेंशन लग जाए तो वह फैमिली की टेंशन से मुक्त हो यमपुरी गमन करे। पर ये अब तक न हुआ तो न हुआ। पता नहीं क्यों आदमी को फैमिली की चिंता जिंदा रहते उतनी नहीं होती, जितनी अपने मरने के बाद होती है? पर अब भोलाराम के जीव ने जिंदों की देखा देखी में उस दफ्तर की फाइलें सरेआम दिन दहाड़े बेचनी शुरू कर दी हैं, उस दफ्तर की सीक्रेसी बेचनी शुरू कर दी है। अब वह पेंशन तो छोड़ो, मंथली पगार से बीस गुणा अधिक हर दफ्तर की सीक्रेट फाइलें बेच इज्जत से कमा रहा है। अपने इस नेक काम से वह भी खुश है और फाइल के ऊपर वाले भी। अब उसके मरने के बाद उसके घरवाले तो परेशान हैं ही नहीं, वह भी अब परेशान नहीं है। मरने के बाद भी दफ्तर में इतने मजे किए जा सकते हैं, भोलाराम के जीव को अब मालूम हुआ। मेरी विकट समस्या यह भी नहीं कि मातादीन जो चांद पर प्रतिनियुक्ति पर गया था कि वह अभी तक वहां से लौट कर नहीं आया।