सम्पादकीय

कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट से निपटना अभी भी जरूरी

Gulabi
4 March 2022 2:00 PM GMT
कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट से निपटना अभी भी जरूरी
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कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई
अनिरुद्ध तगात, हंसिका कपूर।
मार्च 2022 तक भारत में कोरोना (Coronavirus) के सबसे संक्रामक ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron Variant) द्वारा लाए गए तीसरी लहर (Covid Third wave) की स्थिति से उबरने की संभावना है. यहां तक कि देश भर में COVID-19 प्रतिबंधों में धीरे-धीरे छूट देने के साथ टीकाकरण कवरेज (Vaccination) के प्रयासों में भी वृद्धि हुई है. इसका उदाहरण है – जनवरी 2022 में भारत सरकार द्वारा 15-17 आयु वर्ग के लिए टीकाकरण शुरू करना. सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों समेत ज्यादा जोखिम वाले लोगों के लिए को एहतियाती खुराक (Precautionary dose) या कोविड वैक्सीन की तीसरी खुराक देना शुरू किया है. चूंकि पहली बार 2021 की शुरुआत में टीकाकरण शुरू किया गया था, इसलिए 75 प्रतिशत से अधिक योग्य आबादी को पूरी तरह से टीका लगाया जा चुका है.
भारत में अब तक वैक्सीन की 178 करोड़ से अधिक डोज दी जा चुकी हैं. हालांकि ,आंकड़े बताते हैं कि अभी तक केवल 56 प्रतिशत लोग ही पूरी तरह से वैक्सीनेटेड हैं. इसका मतलब है कि लगभग आधी आबादी में सुरक्षा की कमी रहने से COVID-19 की एक और लहर आ सकती है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तीसरी लहर में 3,50,000 मामले सामने आए. एपिडेमियोलॉजिस्ट (Epidemiologists) यानी, संक्रामक रोगों के एक्सपर्ट, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बार-बार कोरोना के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण पर जोर दिया है. उनका मानना है कि वैक्सीन (Vaccine) बीमारी के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित करने में मदद करता है. हालांकि, जैसा कि हाल के शोध से पता चलता है, कई राज्यों में मास्क पहनने और वैक्सीन लेने को लेकर पर्याप्त झिझक है.
ऐसे हुई वैक्सीन से परहेज की पड़ताल
'हेल्थ कम्युनिकेशन' में प्रकाशित ताज़ा रिसर्च पेपर में हमने खास तौर पर प्रिवेंटिव हेल्थ बेहवियर्स (Preventive health behaviours), वैक्सीन लेने और उससे जुड़ी चिंताओं के बीच परस्पर सबंधों की पड़ताल की है. वरुण अरोड़ा, सुजॉय चक्रवर्ती, शगता मुखर्जी और शुभब्रत रॉय ने इस पड़ताल में हमारा साथ दिया. वर्ष 2021 की शुरुआत में बड़े पैमाने पर वैक्सीन ड्राइव लांच करने से पहले इस रिसर्च का आयोजन किया गया था. तब वैक्सीन के प्रभावी होने लेकर कीमतों और दुष्प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्याप्त थी. हमने फरवरी और मार्च 2021 के बीच नौ भारतीय शहरों बैंगलोर, चंडीगढ़, चेन्नई, गुरुग्राम, हैदराबाद, इंदौर, मुंबई, नई दिल्ली और कोलकाता में वैक्सीन को लेकर लोगों में हिचकिचाहट, उनके दृष्टिकोण और व्यवहार पर एक ऑनलाइन और टेलीफोनिक सर्वेक्षण किया था.
हमने वैक्सीन हेज़िटन्सी (Vaccine hesitancy) की पड़ताल करने के लिए दो मापदंड बनाए. पहले मापदंड में टीके के अवयवों से संबंधित चिंताएं, टीके के कारण होने वाले दुष्प्रभाव और टीके की लागत शामिल थी. दूसरा केवल एक प्रश्न था जिसमें पूछा गया था कि क्या जवाब देने वाला व्यक्ति मानता है कि वैक्सीन संक्रमण दर, अस्पताल में भर्ती होने या मृत्यु रोकने में प्रभावी होगी. अंत में हमने यह भी पूछा कि क्या आप अनुमानित तौर पर 'फ्री' भारत-निर्मित वैक्सीन या कीमत देकर विदेशी वैक्सीन लेना पसंद करेंगे. बता दें, सर्वेक्षण के समय कोविशील्ड और कोवैक्सिन के लिए सरकारी अनुमोदन आने वाला था.
सतर्क लोगों में दिखी वैक्सीन के प्रति उत्सुकता
विश्लेषण के दौरान हमने पाया कि हाथ धोने जैसे प्रिवेंटिव हेल्थ बिहेवियर (PHB) की प्रभावशीलता में विश्वास करने वाले लोग वैक्सीन को लेकर अधिक उत्सुक हैं. उनमें वैक्सीन लेने की अधिक इच्छा दिखी. यह स्वाभाविक है क्योंकि वैक्सीन आने से पहले लोगों के पास बार-बार हाथ धोना, मास्क पहनना, सामाजिक दूरी बनाए रखना जैसे गैर-फार्मास्युटिकल विकल्प ही मौजूद थे. तब COVID-19 संक्रमण से बचने का यही तरीका था. विश्लेषण में जो दूसरी बात सामने आई वह थी वैक्सीन की कीमत को लेकर. टीके की लागत के बारे में चिंता जताने वाले लोगों में टीका लगवाने की संभावना कम दिखी. वैक्सीन की पसंद को प्रभावित करने वाली प्रमुख बातों ने वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट की तरफ इशारा किया. वैक्सीन कारगर है या नहीं, उसमें क्या है जैसी बातों के अलावा लोगों ने उसकी कीमत और साइड इफेक्ट्स पर चिंता जताई.
वैक्सीन चयन में इन्फॉर्मेशन सोर्स का रोल
हमारे अध्ययन में एक और दिलचस्प बात सामने आई. वैक्सीनेशन के मामले में इन्फॉर्मेशन सोर्स ने महत्वपूर्ण रोल निभाया. कोई भी व्यक्ति किस तरह से टीका लगवाना पसंद करता है या वह टीका लेने का इच्छुक है भी या नहीं जैसी बातें पूरी तरह से सूचनाओं के सोर्स पर निर्भर करती हैं. उदाहरण के तौर पर हमारे सर्वेक्षण में भाग लेने वाले लोगों ने संकेत दिया कि वे इफेक्टिवनेस के बारे तुलना करने के बाद ही किसी वैक्सीन का चयन करेंगे. उन्हें कोविड से संबंधित जानकारी समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और इंटरनेट से प्राप्त होने की अधिक संभावना थी.
अभी भी कोविड प्रोटोकॉल का पालन आवश्यक
हमारे रिसर्च में कुछ महत्वपूर्ण आंकलन सामने आए. सबसे पहली बात, कोविड-उपयुक्त व्यवहार का सीधा संबंध टीके के प्रति हिचकिचाहट से है. यहां ध्यान देने योग्य दो बातें हैं: (1) भारत अपनी वयस्क आबादी के संपूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है; और (2) टीकों द्वारा उत्पन्न प्रतिरक्षा क्षमता को चकमा देने वाले कोविड-19 के नए वेरिएंट जो म्यूटेंट से मिलकर बने हैं. इस लिहाज से मास्क पहनना, बार-बार हाथ धोना और शारीरिक दूरी बनाए रखना जैसी सभी बातें भारत में COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. यदि हम इन बातों के इर्द-गिर्द शासनादेश लागू करना जारी रखते हैं तो इस बात की संभावना है कि यह हाई वैक्सीनेशन रेट में भी योगदान देगा.
जागरूकता बढ़ाना जरूरी
एक और बात, वैक्सीन को बढ़ावा देने के लिए चैनलों के माध्यम से जागरूकता फैलाना महत्वपूर्ण हैं. साथ ही हमें वर्तमान में दी जा रही बूस्टर डोज पर भी नजर रखना होगा. हमें COVID-19 परीक्षण, वैक्सीन और अन्य मापदंडों पर अधिक डेटा जारी करने करना होगा. शोधकर्ताओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस संबंध में लगातार अनुरोध करते रहे हैं. यह पब्लिक हेल्थ कम्युनिकेशन को मजबूत करने के लिहाज से महत्वपूर्ण है.
टीकाकरण लक्ष्य को पाना ही होगा
यदि भारत को COVID-19 के खिलाफ अपनी लड़ाई मजबूती से जारी रखना है और भविष्य में संक्रमण की लहर को रोकना है, तो सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति (public health policy) के तहत टीके के प्रति झिझक या हिचकिचाहट को मिटाना होगा. यह अनिवार्य है. यह देखते हुए कि COVID-19 प्रतिबंधों को काफी हद तक वापस ले लिया गया है और इस साल विशाल चुनावी रैलियों का आयोजन हुआ है, टीकाकरण लक्ष्यों को प्राप्त करना प्राथमिकता होनी चाहिए. हमारा अध्ययन एक उपयोगी ढांचा प्रदान करता है जिसके तहत टीके से जुड़ी तमाम बातों पर प्रकाश डाला गया है. इस क्षेत्र में हमारा अगला कदम है, मनोवैज्ञानिक पूर्वाग्रहों (psychological biases) की पड़ताल करना. यह टीकाकरण के प्रति हमारी सक्रियता बढ़ाएगा, जिसका उपयोग भविष्य में हेल्थ कम्युनिकेशन में किया जा सकता है. इसका संबंध केवल व्यवहारवादी (behavioural) और फार्मास्युटिकल इंटरवेंशन से है. इसके आधार पर हम अगले दो वर्षों में कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण प्रगति की उम्मीद कर सकते हैं.
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