सम्पादकीय

भारत में पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों को दुष्कर्म के दायरे में लाया जाना हो सकता है खतरनाक

Gulabi
1 Feb 2022 5:20 AM GMT
भारत में पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों को दुष्कर्म के दायरे में लाया जाना हो सकता है खतरनाक
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भारत में पति और पत्नी के बीच यौन संबंध
दीपिका नारायण भारद्वाज। इन दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय की एक पीठ में भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) में पतियों को दुष्कर्म के आरोपों से अपवादस्वरूप प्रदान की जाने वाली छूट पर जोरदार बहस हो रही है। भारत में दुष्कर्म के अपराध को परिभाषित करने वाली आइपीसी की धारा 375 में निहित अपवाद कहता है कि 'अपनी पत्नी के साथ पुरुष द्वारा किया जाने वाला संभोग पत्नी की उम्र पंद्रह वर्ष से अधिक होने की दशा में दुष्कर्म नहीं माना जाएगा।' इसी अपवाद को आरआइटी फाउंडेशन, आल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन एसोसिएशन और दो व्यक्तियों ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है। दूसरी ओर दिल्ली सरकार, हृदय फाउंडेशन नामक गैर सरकारी संस्था और मेन वेलफेयर ट्रस्ट के अमित लखानी तथा ऋत्विक बिसारिया इस अपवाद को खत्म करने का विरोध कर रहे हैं। भारत में पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों को दुष्कर्म के दायरे में लाए जाने पर सबसे ज्यादा जताई जा रही चिंताओं में से एक यह है कि दुर्भावना रखने वाली पत्नियों द्वारा अपने पतियों और उनके परिवारों को परेशान करने के लिए दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाए जा सकते हैं। हालांकि यह एक जायज चिंता है, लेकिन याचिकाकर्ताओं और यहां तक कि खंडपीठ ने भी इसे यह कहते हुए दबाने की कोशिश की है कि 'हर कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है, लेकिन यह कानून नहीं लाने का आधार नहीं हो सकता।' यह तर्क देखने में तो जायज लगता है, लेकिन अगर हम वास्तव में प्रत्येक नागरिक के समान अधिकारों के बारे में चिंतित हैं तो एक नया कानून लाते समय जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने वैवाहिक दुष्कर्म को कानूनी तौर पर अपराध घोषित करवाने के लिए मिसाल के तौर पर विभिन्न देशों के कानूनों को सामने रखा है, लेकिन उन राष्ट्रों में झूठी गवाही देने, झूठे आरोप लगाने और गलत तरीके से कैद करवाने के विरुद्ध लागू मजबूत सुरक्षा उपायों का जिक्र तक नहीं किया है। जब भारत में पुरुषों पर झूठे मामले दर्ज करने वाली महिलाओं पर मुकदमा चलाने की बात आती है तो ये याचिकाकर्ता गायब हो जाते हैं। आपने पिछली बार कब किसी महिला को अपने पति और उसके परिवार वालों पर दहेज उत्पीडऩ का झूठा आरोप लगाने के अपराध में जेल जाते हुए सुना था? कब किसी ऐसे पुरुष को पर्याप्त मुआवजा दिए जाने के बारे में सुना था जिसे दुष्कर्म के झूठे मुकदमे में फंसा दिया गया था? शायद इन दोनों ही सवालों का जवाब कभी नहीं मिलेगा।
वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीडऩ कानूनों के दुरुपयोग को 'कानूनी आतंकवाद' करार दिया। अंतत: वर्ष 2014 में उसने दहेज उत्पीडऩ के मुकदमों में पतियों की तत्काल गिरफ्तारी नहीं किए जाने के दिशानिर्देश पारित किए। उसके बाद से वैवाहिक विवादों में प्राथमिकी दर्ज करते समय दहेज उत्पीडऩ के साथ घरेलू हिंसा और अप्राकृतिक यौन शोषण की धाराएं भी जुड़वाई जाने लगीं, ताकि किसी भी तरह से महिला के पति और उसके परिवार की गिरफ्तारी करवाई जा सके। इन दिनों वैवाहिक विवादों में दर्ज शिकायतों में विभिन्न आपराधिक धाराओं का एक विशेष और खतरनाक मिश्रण तैयार किया जाने लगा है। जैसे-पूरे परिवार के खिलाफ दहेज और घरेलू हिंसा का आरोप, पति के खिलाफ अप्राकृतिक यौन संबंध का आरोप, ससुर के खिलाफ दुष्कर्म का आरोप और देवर के खिलाफ छेड़छाड़ का आरोप लगाए जाने लगे हैं। सिर्फ एक पंक्ति में लिख दिए गए आरोप में ही उसके पति और उसके पूरे परिवार को तत्काल गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया, भले ही ऐसा कोई अपराध कभी हुआ ही न हो। कुछ पुरुषों ने 90 दिन जेल में बिताए हैं, जबकि कुछ अन्य ने छह महीने तक बिताए हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें केवल दहेज का मामला होने पर अदालत से जमानत अवश्य मिल जाती।
अगर वैवाहिक दुष्कर्म के नाम से एक नया कानून बना दिया जाता है तो कोई निर्दोष पुरुष यह कैसे साबित करेगा कि उस पर पांच साल पहले दुष्कर्म का झूठा आरोप अब लगा रही उसकी पत्नी झूठ बोल रही है? अगर कोई महिला दुष्कर्म की शिकायत करती है तो पुलिस एफआइआर दर्ज करने से इन्कार नहीं कर सकती है। वैवाहिक दुष्कर्म के मामलों में वह अपराध हुआ भी था या नहीं, यह पता लगाने के लिए पुलिस क्या प्रारंभिक जांच करेगी? आज एक महिला को दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज करवाने के लिए अपने बयान के अलावा और कुछ नहीं चाहिए। आरोपी द्वारा अपने बचाव में पेश किए गए किसी भी सुबूत पर पुलिस शायद ही कभी विचार करती है। 2013 के बाद से दुष्कर्म कानूनों का घोर दुरुपयोग हुआ है। वैवाहिक विवादों को लेकर लोग बेहद निचले नैतिक स्तर तक गिर गए हैं। यहां तक कि वे अपने बच्चों को भी नहीं बख्श रहे हैं। महिलाओं द्वारा अब यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो) का दुरुपयोग तक किया जाने लगा है ताकि पति और उसके परिवार को बर्बाद किया जा सके।
ऐसे परिदृश्य में यह कहना कि किसी कानून का दुरुपयोग किया जाना उस कानून को न लाने का आधार नहीं हो सकता है-उन व्यक्तियों विशेष रूप से पुरुषों के अपार दुख, आघात और आजीवन भोगे जाने वाले दुष्परिणामों की घोर उपेक्षा है, जिन पर रोजाना सैकड़ों की संख्या में ऐसे झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं। अगर हम महिलाओं की गरिमा की रक्षा करने की बात कर रहे हैं तो हमें ऐसे जघन्य और कुत्सित झूठे आरोपों से पुरुषों की गरिमा की रक्षा करने की भी बात करनी होगी। संविधान लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है। समय आ गया है कि हमारे राजनेता और न्यायपालिका भी ऐसा न करें।

(लेखिका वृत्तचित्र फिल्म निर्माता हैं)
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