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व्यवस्था कर सकता है। और शायद उनके चुने हुए पत्राचार की एक किताब भी।
अपने जीवन में मैं बहुत सारे लोगों के संपर्क में आया हूं, जो विद्वान, लेखक, कलाकार, खिलाड़ी, वैज्ञानिक, उद्यमी, राजनेता और कार्यकर्ता के रूप में सुप्रतिष्ठित हैं। बगैर किसी अपवाद के, इन सभी में एक किस्म का अहंकार है। जैसा कि कहा जाता है, 'वे सब अपने आपको बहुत समझते हैं।' इनमें से कुछ लोग अपनी उपलब्धियों के बारे में खुलेआम घमंड के साथ बताते हैं, तो कुछ लोग अपने बारे में विनम्रता से शेखी बघारते हैं। कुल मिलाकर, आपके साथ पहली ही मुलाकात में वे अपने महत्व के बारे में बता देते हैं।
जीवन में मैं जिन सैकड़ों सफल और प्रसिद्ध लोगों से मिला हूं, उनमें से सिर्फ दो ही लोगों को मैं इसका अपवाद मान सकता हूं। इनमें से एक क्रिकेटर गुंडप्पा रंगनाथ विश्वनाथ हैं। दूसरे थे लेखक इयान जैक, जिनकी पिछले सप्ताह मृत्यु हो गई। विशी (विश्वनाथ) की तरह इयान में भी अद्भुत पेशेवर दक्षता और असाधारण व्यक्तिगत शालीनता का मेल था। वह अपनी पीढ़ी के महानतम स्तंभकार और साहित्य संपादक होने के साथ-साथ बहुत अच्छे और दयालु व्यक्ति थे। उन्हें पढ़ना अगर बेहद आनंददायक अनुभव था, तो उन्हें जानना आनंददायक और सौभाग्यपूर्ण था।
स्कॉट पृष्ठभूमि, पर ब्रिटिश मानसिकता वाले इयान की भारत के प्रति अगाध रुचि थी। संडे टाइम्स के रिपोर्टर के तौर पर वह 1970 के दशक में पहली बार भारत आए थे, उसके बाद भी उनका भारत आना लगा रहा। भारत में जिन दो लोगों से उनकी गहरी दोस्ती थी, वे हैं स्त्रीवादी प्रकाशक उर्वशी बुटालिया और डॉक्यूमेंटरी फिल्म निर्मात्री नसरीन मुन्नी कबीर। वह बंगाल और बंगालियों को भी बहुत पसंद करते थे। हालांकि उन्हें भारतीय रेल में सफर करना और भारत के छोटे शहरों में घूमना बहुत पसंद था, लेकिन न जाने कैसे वह लगभग जिद्दी तरीके से इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे (जैसा कि उन्होंने मुझे लिखा भी था) कि 'रहने के लिए कोलकाता भारत का सबसे दिलचस्प शहर है।'
1990 के दशक के आखिर में मुन्नी कबीर ने पहली बार इयान जैक और उनकी पत्नी लिंडी शार्पे से मेरा परिचय कराया था। उसके बाद हम लंदन, बेंगलुरु और कुछ दूसरी जगहों में भी मिले, जहां संयोग से हम होते थे। हम नियमित रूप से पत्राचार भी करते थे। अक्तूबर, 2014 में महात्मा गांधी की जीवनी पर शोध करते हुए मैंने उन्हें लिखा, कि गांधी ने 1921 में जब असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी, जो उनका पहला बड़ा आंदोलन था, तब ब्रिटिश प्रेस का गांधी के प्रति रुख ज्यादातर संशयवादी या गाली-गलौज वाला था। उस समय ग्लोसगो हेराल्ड अकेला अखबार था, जिसने उस आंदोलन का विचारपूर्ण और संतुलित विश्लेषण किया था। मैंने इयान से यह जानना चाहा कि ग्लोसगो हेराल्ड किस तरह का अखबार था? उदारवादी या वाम रुझान वाला?
इयान ने मेरे सवाल के लंबे जवाब में लिखा कि जब उन्होंने 1965 में हेराल्ड जॉयन किया था, तब वह एक परंपरावादी व्यापार-समर्थक अखबार था। उस समय वह अखबार ट्रेड यूनियनों का विरोधी था। उस अखबार के दो प्रमुख लेखकों में से एक कंजरवेटिव पार्टी के सांसद बने थे, जबकि डिप्टी एडिटर जॉर्ज मेक्डोनाल्ड फ्रेजर को कुछ समय बाद फ्लैशमैन सीरीज के अपने उपन्यासों से प्रसिद्धि मिली। इयान ने इसके बाद लिखा, 'लेकिन 1921 में उस अखबार की छवि दूसरी रही हो सकती है।
तब अखबार के संपादक सर रॉबर्ट ब्रुस थे, जिन्हें तत्कालीन उदारवादी प्रधानमंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज से दोस्ती के कारण नाइट की उपाधि मिली थी। ब्रुस की विशेषज्ञता घरेलू मुद्दों में थी। इसलिए उन्होंने विदेशी मामलों की जिम्मेदारी दूसरे पत्रकारों पर छोड़ रखी थी। शायद उन्हीं में किसी ने गांधी के बारे में लिखा, क्योंकि उन्हें स्वतंत्रता हासिल थी। लेकिन वह अखबार गांधी के प्रति सहानुभूति पूर्ण तो कतई न रहा होगा।' इयान का यह जवाब उनके लेखन, सामाजिक और राजनीतिक इतिहास को जोड़ने की उनकी क्षमता, तकनीक के प्रति उनके आकर्षण, मानवीय चरित्रों के प्रति उनकी रुचि और दुनिया के साथ ब्रिटेन के जटिल रिश्ते के बारे में उनकी अगाध समझ के बारे में बताता है।
द गार्डियन में इयान जैक को श्रद्धांजलि देते हुए उनके समकालीन जॉन लॉयड ने लिखा, 'इयान जैक एक पत्रकार के रूप में सुकरात के विचारों को आगे बढ़ाने वाले समकालीन वास्तुकार थे और सामने वाले के विचार को तवज्जो देते थे। हमेशा गहराई से पड़ताल करने के लिए तैयार रहते थे। कोई और ब्रिटिश पत्रकार उस स्तर पर काम नहीं करता, और अपनी मृत्यु के समय तक वह काम कर रहे थे?' लॉयड के लेख को पढ़ने के बाद कई पाठकों ने लिखा कि शनिवार के गार्डियन में वे सबसे पहले इयान जैक का लिखा पढ़ते थे; एक ने टिप्पणी की, वह गार्डियन के सर्वश्रेष्ठ लेखक थे। लेकिन हमेशा लगा कि उन्हें सामने नहीं लाया गया। ऑनलाइन में भी उन्हें प्रमुखता नहीं दी गई।'
एक अद्भुत गद्य शैलीकार इयान जैक अपने लेखन को लेकर सजग थे। वह गार्डियन के लिए हजार शब्दों का आलेख हो, या ग्रांटा या लंदन रिव्यू ऑफ बुक्स के लिए लंबे आलेख (दस हजार शब्द), इन दोनों तरह का लेखन सहजता से करते थे। उनके इस काम के आधार पर तीन संग्रह तैयार हुए : इनमें से एक है, ए कंट्री फॉर्मरली नेम्ड ग्रेट ब्रिटेन; और दूसरा है, भारत से संबंधित लेखों का संग्रह मुफस्सिल जंक्शन। अनेक बरसों तक वह किसी एक विषय पर एक पूरी किताब लिखने से वह बचते रहे।
प्रकाशकों ने उनसे रेलवे (उनके शुरुआती और चिरस्थायी प्रेम) पर किताब लिखने का आग्रह किया; मित्रों ने स्कॉटलैंड के उनके शुरुआती वर्षों के बारे में संस्मरण लिखने का आग्रह किया। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने क्लाइड नदी और उसके आसपास की चीजों के सामाजिक इतिहास के बारे में लिखना शुरू किया था। मुझे इसके दो अध्यायों के मसौदों को पढ़ने का अवसर मिला। वे शानदार थे, ऐतिहासिक और तकनीकी विवरण के साथ व्यक्तिगत स्मृति को सहजता से जोड़ रहे थे।
मैं इस आलेख का समापन इयान जैक के पत्र व्यवहार के लेखन की कुछ मिसाल से करना चाहूंगा। उनकी मेल उनके कॉलम की तरह सूचनापरक और पैनी दृष्टि वाली होती थीं, लेकिन कुछ अनौपचारिक भी। जब उनके साथी स्कॉट्समैन गॉर्डन ब्राउन प्रधानमंत्री बने, तब मैंने इयान से उनके बारे में पूछा, तो उनका जवाब था : 'वह हमेशा बहुत-सी सूचनाओं को जज्ब कर लेते हैं- यही उनकी खूबी है। यह अलग प्रश्न है कि प्रधानमंत्री के रूप में यह कोई अच्छी विशेषता है या नहीं, लेकिन वह भयानक सारकोजी से बेहतर हैं।'
2008 में मैंने इयान जैक को अपना एक कॉलम भेजा, जिसमें मैंने तर्क दिया था कि जिन लेखकों को नोबेल से सम्मानित किया गया, उनके लेखन में बाद में तेजी से गिरावट देखी गई। उन्होंने जवाब दिया, लेकिन क्या टैगोर ने 1913 के बाद कुछ अच्छा लिखा? ऐसे सवाल से आपकी मेलबॉक्स कोलकाता से आने वाली मेल से भर जाती। उन्होंने लिखा, नायपॉल इस बात को साबित करते हैं कि एक समय आता है, जब लेखकों को लिखना बंद कर देना चाहिए।
रोथ एक अपवाद है (अब तक) और शायद बेलो भी था, लेकिन लेखक, विशेष रूप से उपन्यासकारों के पास कहने को कुछ नहीं बचता। लेखन के करिअर का एक भयानक पहलू यह है कि इसे पैसे और आत्मसम्मान के लिए करते रहने की आवश्यकता है। शायद नोबेल के बाद के सिंड्रोम के लिए उम्र का हिसाब उतना ही है, जितना कि पुरस्कार: लेखक आमतौर पर पुरस्कार जीतकर आगे बढ़ते हैं। पामुक, भले ही युवा हों, लेकिन उन्हें परखा जा सकता है।' हालांकि उन्होंने अपनी क्लाइड पुस्तक को कभी पूरा नहीं किया, उनका कोश इतना समृद्ध और इतना व्यापक था कि एक ऊर्जावान युवा संपादक आसानी से इयान जैक के काम के कई संस्करणों को प्रकाशित करने की व्यवस्था कर सकता है। और शायद उनके चुने हुए पत्राचार की एक किताब भी।
सोर्स: अमर उजाला
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