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अंग्रेज़ी में एक कहावत है ‘Home Away From Home’ यानि घर से दूर भी घर जैसा माहौल
अजय झा.
अंग्रेज़ी में एक कहावत है 'Home Away From Home' यानि घर से दूर भी घर जैसा माहौल. अक्सर होटलों के विज्ञापन में 'Home Away From Home' का जिक्र होता है, जिसके जरिए ग्राहकों को यह कह कर लुभाया जाता है कि होटल में भी उनकी सुख सुविधाओं का पूरा ख्याल घर की तरह ही रखा जाएगा. इस बार गोवा (Goa) के नवनिर्वाचित विधानसभा में भी कुछ ऐसा ही माहौल दिखने वाला है. गोवा विधानसभा (Goa Assembly) में इस बार तीन दम्पति चुनाव जीत कर आए हैं, जिसमें से दो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सौजन्य से और एक दम्पति प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर आई है.
सबसे मज़ेदार तथ्य यह है कि जो दो दम्पति बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत कर आए हैं, वह पूर्व में कांग्रेस पार्टी से जुड़े होते थे और कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर आए दम्पति अभी हाल तक बीजेपी के सदस्य थे. ये तीन दम्पति हैं गोवा के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे और उनकी पत्नी देविया राणे जो क्रमशः वालपई (Valpoi) और परयें (Poriem) निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए हैं. गोवा की श्रम मंत्री जेनिफर मोन्सेरात और उनके पति अतानासियो मोन्सेरात जो क्रमशः तालगाव (Taleigao) और पणजी (Panaji) से विधायक चुने गए हैं और तीसरे दम्पति हैं गोवा के पूर्व मंत्री मायकल लोबो और उनकी पत्नी डिलायला लोबो जो क्रमशः कलंगुट (Calangute) और शिवोली (Siolim) से चुनाव जीत कर आए हैं. जहां राणे और मोन्सेरात दंपत्ति बीजेपी के 20 विधायकों में शामिल हैं, वहीं लोबो दम्पति का नाम कांग्रेस पार्टी के 11 नवनिर्वाचित विधायकों की सूचि में शामिल है.
विश्वजीत राणे वालपई सीट से लगातार चौथी बार विधायक चुने गए हैं
पिछले विधानसभा में सिर्फ मोन्सेरात दम्पति ही एकलौते मिया-बीवी की जोड़ी थे जो कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत कर आये थे. जहां जेनिफर मोन्सेरात 2017 के चुनाव में विधयाक चुनी गई थीं, अतानासियो मोन्सेरात, जिनकी गिनती गोवा के दबंग नेताओं में होती है, 2019 में पणजी सीट से उपचुनाव जीत कर कांग्रेस के विधायक बने थे. पणजी सीट पर उपचुनाव तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर के निधन के बाद हुआ था. पर चुनाव जीतने के ठीक बाद अतानासियो मोन्सेरात और जेनिफर मोंन्सेरात कांग्रेस पार्टी के 8 अन्य विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए थे. जेनिफर को प्रमोद सावंत मंत्रीमंडल में शामिल किया गया.
विश्वजीत राणे 2017 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर विधायक चुने गए थे, पर विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ लेने के पहले ही वह कांग्रेस पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए और मनोहर पर्रीकर सरकार में मंत्री बने. विश्वजीत राणे वालपई सीट से लगातार चौथी बार विधायक चुने गए हैं, सही मायने में 6 बार क्योंकि दो बार वह चुनाव जीत कर पार्टी बदलने के कारण उपचुनाव भी लडें और जीते. 2007 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें एक परिवार एक टिकट नियम के तहत उम्मीदवार नहीं बनाया, क्योंकि पिता प्रतापसिंह राणे, जो गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री थे, को परयें सीट से कांग्रेस पार्टी ने टिकट दिया था. विश्वजीत निर्दलीय विधायक के रूप में चुनाव जीत कर आए.
चूंकि कांग्रेस पार्टी को सरकार गठन के लिए त्रिशंकु विधानसभा में अन्य विधायकों की जरूरत थी, विश्वजीत राणे को मंत्रीमंडल में शामिल किया गया. 2009 में वह मंत्री पद से और विधानसभा से त्यागपत्र दे कर कांग्रेस पार्टी के टिकट पर उपचुनाव लड़े, जीत कर आए और पुनः मंत्री बनाए गए. 2012 में दूसरी बार और 2017 में तीसरी बार वह विधायक चुने गए. 2017 में कांग्रेस पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए और उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर विधायक चुने गए.
लोबो दम्पति को बीजेपी टिकट देती तो बहुमत से ज्यादा होती
उनकी पत्नी देविया राणे का यह पहला चुनाव था. बीजेपी चाहती थी कि प्रतापसिंह राणे कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी के टिकट पर परयें क्षेत्र से चुनाव लड़ें. प्रतापसिंह राणे को कांग्रेस पार्टी ने भी अपना उम्मीदवार घोषित कर रखा था. राणे ने कांग्रेस पार्टी नहीं छोड़ी पर चुनावी मैदान से हट गए और बीजेपी को कहा कि उनकी जगह उनकी पुत्रवधू को बीजेपी परयें से टिकट दे. दिलचस्प बात यह है कि देविया राणे की नए विधानसभा में धमाकेदार इंट्री हुई है क्योंकि वह गोवा के 40 नवनिर्वाचित विधायकों में सर्वाधित वोट ले कर चुनाव जीती हैं.
मोन्सेरात दम्पति को टिकट देना बीजेपी की मजबूरी थी. अगर किसी एक की भी पार्टी टिकट काटती तो दोनों बीजेपी छोड़ देते. बीजेपी ऐसे में दो सीटों पर रिस्क नहीं लेना चाहती थी, लिहाजा मनोहर पर्रीकर के पुत्र उत्पल पर्रीकर के दावेदारी की अनदेखी हुई. उत्पल ने पणजी सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और अतानासियो मोन्सेरात से कड़ी टक्कर में 716 वोटों से हार गए.
वैसे भी बीजेपी की नीति रही हैं एक परिवार एक टिकट, पर अगर पार्टी को यह नियम तोड़ कर राणे और मोन्सेरात दम्पति को टिकेट देना ही पड़ा तो फिर यह समझ से परे है कि क्यों बीजेपी ने यह नियम सिर्फ मायकल लोबो पर ही लागु किया. लोबो ने घोषणा कर रखी थी कि उनकी पत्नी डिलायला लोबो शिवोली क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगी, पर बीजेपी ने उनकी पत्नी को टिकट देने से मना कर दिया. अगर ऐसा नहीं होता तो बीजेपी के नए विधानसभा में 22 विधायक होते और पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल जाता और कांग्रेस पार्टी के विधायकों की संख्या मात्र 9 पर ही सिमट जाती, क्योंकि सभी को पता था कि लोबो दम्पति अपने दम पर चुनाव जीतने में सक्षम थे.
कवलेकर दम्पति चुनाव हार गई
बीजेपी ने उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत कवलेकर, जो बीजेपी में शामिल होने से पहले 2017 से 2019 के बीच नेता प्रतिपक्ष थे, को तो केपे (Quepem) से अपना उम्मेदवार बनाया पर उनकी पत्नी सावित्री कवलेकर को टिकट देने से मना कर दिया. सावित्री, जो गोवा महिला बीजेपी की उपाध्यक्ष थीं, ने पार्टी से इस्तीफा दे कर सांगे (Sanguem) सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ी पर बीजेपी के अधिकारिक प्रत्याशी सुभाष फल देसाई से 1,429 वोटों से पिछड़ कर अपने पति की ही तरह दूसरे नंबर पर रहे. कवलेकर दम्पति चुनाव हार गई.
चुनाव मैदान में एक और जोड़ी थी जो चुनाव हार गई. गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री चर्चिल आलेमाव तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर बाणावली (Benaulim) सीट के चुनाव लड़ रहे थे. 2017 का चुनाव वह एनसीपी के टिकट कर जीते थे, पर जब उन्हें लगा कि एनसीपी उनकी बेटी वलंका आलेमाव को नवेली (Navelim) से टिकट नहीं देगी तो पिता-पुत्री तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. दोनों अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में दूसरे स्थान पर रहे और तृणमूल कांग्रेस का गोवा विधानसभा में खाता नहीं खुल पाया. अगर ये दोनों भी जीत जाते तो गोवा विधानसभा पूरा परिवारमय हो जाता.
वैसे बता दें कि गोवा बीजेपी में एक और दम्पति है. मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत की पत्नी सुलक्षणा सावंत, गोवा महिला बीजेपी की अध्यक्ष हैं. पर सावित्री कवलेकर की तरह उन्होंने टिकट का दावा नहीं किया, हालांकि चुनाव लड़ने की उनकी भी चाहत थी. सबसे दिलचस्प बात है कि गोवा के नए विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या इस बार दो से बढ़ कर तीन हो गयी है. विधानसभा में Home Away From Home वाला माहौल दिखे या ना दिखे पर इतना तो निश्चित है कि तीनों महिला विधायक घर की ही तरह अपने पतियों पर सदन में भी कड़ी नज़र रखेंगी.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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