- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- बंद दफ्तरों के आगे
फाइल फोटो
जनता से रिश्ता वबेडेस्क | हिमाचल में पिछली सरकार के अंतिम चरण के फैसलों को वर्तमान की चुनौती में देखना जितना आवश्यक है, उतना ही लाजिमी है अर्थ गणित में प्रदेश की प्राथमिकताओं को गतिशील बनाना। मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू की मानें तो पिछली जयराम सरकार ने तीन हजार करोड़ की होली खेलते हुए, अपने रिवाज बदलने की कोशिश में आर्थिक स्थिति का मुंडन कर दिया। करीब 590 कार्यालयों की फेहरिस्त में अब जवाबदेही ढूंढने का वक्त आया, तो इसे केवल राजनीति के परिप्रेक्ष्य में ही क्यों समझा जाए। यह भी मानना पड़ेगा कि नए संस्थानों की अंधी बारिश के बावजूद न कभी मिशन रिपीट हुआ और न ही इस बार रिवाज बदलने का संकल्प पूरा हुआ। भले ही विपक्ष कार्यालयों के डिनोटिफाइड होने को लेकर राज्यपाल तक पहुंच गया या आने वाले समय में इसको लेकर अदालती मंचन भी करे, लेकिन कहीं तो प्रदेश के लिए हमें सोचना ही पड़ेगा और इस बार यह दायित्व कांग्रेस सरकार का है। बात केवल 590 कार्यालयों के खोलने पर किए गए एतराज तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे आगे यह फैसला लेने की दृढ़ता से पता चलेगा कि जनता को असली संदेश है क्या। सरकार को अगर वित्तीय अनुशासन कामयाब करना है, तो आरंभिक तौर पर पिछली सरकार के फैसले पलटना आसान होगा, मगर यह सवाल नीति-निर्देशों की बानगी में भी देखा जाएगा, ताकि पता चले कि सुक्खू सरकार अपने तौर पर कितनी किफायत से प्रदेश को बचा रही है। यह सत्ता के लाभार्थी पदों पर नई नियुक्तियों, कार्यालयों के युक्तिकरण, अनावश्यक कार्यालयों पर कार्रवाई तथा विकास के समन्वय व प्रादेशिक संतुलन से ही सामने आएगा।