सम्पादकीय

व्यवस्था के पक्ष में

Rani Sahu
19 April 2022 7:15 PM GMT
व्यवस्था के पक्ष में
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राजधानी दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में घटी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ताजा फैसलों का महत्व समझा जा सकता है

राजधानी दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में घटी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ताजा फैसलों का महत्व समझा जा सकता है। योगी सख्त प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं और उनके ताजा निर्देश इस बात की ताईद करते हैं। मुख्यमंत्री ने राज्य की कानून-व्यवस्था की समीक्षा बैठक में स्पष्ट निर्देश दिया कि नए धार्मिक जुलूसों की इजाजत न दी जाए और न ही नए धर्मस्थलों पर लाउडस्पीकर लगाने की। पारंपरिक जुलूसों और शोभायात्राओं के संदर्भ में भी उन्होंने तय मानदंडों का हरसूरत में पालन कराने का निर्देश दिया है। इसमें कोई दोराय नहीं कि आस्था नितांत निजी विषय है और देश का आईन अपने सभी नागरिकों को उपासना की आजादी देता है। लेकिन आस्था जब प्रतिस्पद्र्धा में तब्दील होने लगे, तब वह नियमन के दायरे में भी आ जाती है।

बहुधर्मी भारतीय समाज में पूजा-इबादत की विविधता इसके सांस्कृतिक सौंदर्य का अटूट हिस्सा है और दुनिया इसकी मिसालें भी देती रही है। यह विशेषता एक दशक या दो सदी में हासिल नहीं हुई, समाज ने सहस्राब्दियों में इसको अर्जित किया है। पर इतिहास की तल्ख घटनाओं को कुरेदने की राजनीति से भाईचारे की संस्कृति को चोट पहुंच रही है। यही वजह है कि 21वीं सदी के तीसरे दशक में जब हमारी ऊर्जा विज्ञान व पर्यावरण के जटिल मुद्दों को सुलझाने में खर्च होनी चाहिए थी, हमें सांप्रदायिक-सामुदायिक एकता को बचाने के लिए खर्च करनी पड़ रही है। ऐसा क्यों है?दरअसल, धार्मिक आडंबरों, जिदों के आगे समर्पण और इस या उस समुदाय के प्रति सख्ती-नरमी भरे प्रशासनिक रवैये से इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है। यकीनन, इसके लिए हमारा समूचा राजनीतिक वर्ग जिम्मेदार है। किसी एक पार्टी या संगठन को इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यदि प्रशासन पर सियासी दबाव न होते, तो ऐसी बहुत सारी समस्याएं सामाजिक विद्वेष की वजह ही नहीं बन पातीं। ऐसे में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने उचित ही साफ किया है कि अब किसी के साथ कोई रियायत नहीं बरती जाएगी।
किसी भी धार्मिक जुलूस या शोभायात्रा के मार्ग, समय-अवधि या इसमें शिरकत करने वाले श्रद्धालुओं के संख्याबल को लेकर पुलिस की अपनी नियमावली है। यदि इसका ईमानदारी से पालन हो, तो न ट्रैफिक की समस्या हो सकती है और न सामाजिक माहौल बिगड़़ सकता है, पर अक्सर इसकी अनदेखी होती है, जैसा कि जहांगीरपुरी विवाद में बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी का उत्तर प्रदेश में इसे सख्ती से लागू करने और पारंपरिक जुलूसों व शोभायात्राओं से पहले सभी धर्मों के सम्मानित गुरुओं की बैठकें करने का निर्देश टकराव टालने में अहम साबित होगा। प्रशासन को शोभायात्राओं में घातक हथियारों के प्रदर्शन के मामले में भी कठोर निगरानी करनी चाहिए। इसी तरह, मौजूदा यांत्रिक युग में अब बहुत ऊंची आवाज लगाने की आवश्यकता भी नहीं रह बची है। बेहतर तो यही होता कि सभी धर्मों के धर्माधिकारी सर्वधर्म सभा का आयोजन कर ऐसी मिसालें पेश करते और अपने-अपने समुदाय का मार्गदर्शन करते, मगर जब बदगुमानियां बढ़ने लगी हैं, सांप्रदायिक दुराव शांति-व्यवस्था के लिए खतरा बन गया है, तब राज्य-सत्ता का हस्तक्षेप उसका दायित्व भी है और जरूरत भी। देश को आर्थिक तरक्की के लिए शांत भारत चाहिए। दंगे और तनाव उसकी खुशहाली व प्रतिष्ठा को ग्रहण ही लगाएंगे।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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