सम्पादकीय

लोकतंत्र के पक्ष में

Subhi
13 Oct 2022 5:20 AM GMT
लोकतंत्र के पक्ष में
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रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव पर नए सिरे से हमला कर भारी तबाही मचाई। उसे लेकर दुनिया के तमाम देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई। जब यूक्रेन के चार इलाकों पर रूस के कब्जे के खिलाफ निंदा संबंधी मसविदे पर संयुक्त राष्ट्र में रूस ने गुप्त मतदान कराने की मांग की तो उसके विरोध में सौ से अधिक देशों ने मतदान किया।

Written by जनसत्ता; रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव पर नए सिरे से हमला कर भारी तबाही मचाई। उसे लेकर दुनिया के तमाम देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई। जब यूक्रेन के चार इलाकों पर रूस के कब्जे के खिलाफ निंदा संबंधी मसविदे पर संयुक्त राष्ट्र में रूस ने गुप्त मतदान कराने की मांग की तो उसके विरोध में सौ से अधिक देशों ने मतदान किया।

ज्यादातर ने सार्वजनिक मतदान की वकालत की। रूस के पक्ष में केवल तेरह देशों ने मतदान किया, जबकि उनतालीस देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। भारत ने भी गुप्त मतदान के खिलाफ मत जाहिर कर दिया। इस तरह स्वाभाविक ही रूस तिलमिलाया हुआ है। उसने इस फैसले पर दुबारा विचार करने की अपील की मगर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उसकी अपील ठुकरा दी।

अब रूस कह रहा है कि इस तरह उसके खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। मगर देखना है कि संयुक्त राष्ट्र में मुंह की खाने के बाद रूस अपने कदम पर कितना विचार करता है। यह मामला केवल रूस और यूक्रेन के आपसी संघर्ष का नहीं है। राष्ट्रों की स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल रखने का भी है।

यूक्रेन के चार इलाकों पर रूस के कब्जे पर आंखें बंद कर लेने का अर्थ यह होगा कि दुनिया के तमाम देश एक शक्तिशाली देश के पक्ष में खड़े नजर आएंगे। यूक्रेन की एक राष्ट्र के रूप में स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। कोई भी ताकतवर देश अपने से कमजोर देश पर हमला कर उस पर कब्जा करने का प्रयास करे, तो इसे किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता।

यूक्रेन खुद रूस से अलग होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपना अस्तित्व बनाए हुए था। उसे पूरा हक है कि वह किस देश के साथ कैसा संबंध बनाए। वह अपनी सुरक्षा के मद्देनजर नाटो में शामिल होना चाहता था, मगर रूस को खतरा पैदा हो गया कि नाटो की सेनाएं उसकी सीमा के करीब पहुंच जाएंगी। इसलिए रूस यूक्रेन पर दबाव डालता रहा कि वह अपना फैसला वापस ले।

मगर यूक्रेन नहीं माना और फिर रूस ने उस पर हमला कर दिया। यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को भरोसा दिलाया था कि अगर रूस उस पर हमला करता है, तो वे उसकी मदद को आगे आएंगे। मगर ऐसा भी नहीं हुआ। यह मसला बातचीत से हल हो सकता था, मगर रूस इसे ताकत के बल पर हल करने का प्रयास कर रहा है।

भारत चूंकि सदा से लोकतांत्रिक प्रक्रिया के पक्ष में और युद्ध के खिलाफ रहा है, इसलिए स्वाभाविक ही इस बार उसने रूस का पक्ष लेने से खुद को अलग कर लिया। भारतीय प्रधानमंत्री ने शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति से युद्ध का रास्ता छोड़ कर बातचीत के जरिए समस्या का समाधान करने की सलाह दी थी। तब ब्लादिमीर पुतिन ने उनकी सलाह पर सहमति भी जताई थी।

यूक्रेन के राष्ट्रपति को भी उन्होंने बातचीत के रास्ते पर आगे बढ़ने की सलाह दी थी। अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बार फिर दोहराया है कि किसी भी रूप में लोगों की जान लेने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस तरह संयुक्त राष्ट्र में रूस की मांग के खिलाफ मतदान कर भारत ने राष्ट्रों की स्वायत्तता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है।

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