सम्पादकीय

चीन के विदेश मंत्री वांग यी से बातचीत में भारत ने बीजिंग की लक्ष्मण रेखा स्पष्ट कर दी

Rani Sahu
26 March 2022 2:09 PM GMT
चीन के विदेश मंत्री वांग यी से बातचीत में भारत ने बीजिंग की लक्ष्मण रेखा स्पष्ट कर दी
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इस दौरे की गोपनीयता को देखें तो, गुरुवार को चीनी विदेशी मंत्री वांग यी (Wang Yi) की दिल्ली यात्रा किसी थ्रिलर से कम नहीं थी

के वी रमेश

इस दौरे की गोपनीयता को देखें तो, गुरुवार को चीनी विदेशी मंत्री वांग यी (Wang Yi) की दिल्ली यात्रा किसी थ्रिलर से कम नहीं थी, क्योंकि डिप्लोमेसी की दुनिया में ऐसा नहीं होता, वहां सब कुछ पहले से प्लान होता है, उसकी व्यापक तैयारी की जाती है. विश्व के दो बेहद शक्तिशाली और सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों, जो परमाणु संपन्न भी हैं, इन हालातों में इनके विदेश मंत्रियों की मुलाकात को भारत-चीन (India China) क्षेत्र से बाहर विशेष तवज्जो मिली हुई होगी. अमेरिका और यूरोप, जिनका ध्यान इन दिनों यूक्रेन (Ukraine) पर है, उन्होंने भी इस पर गहरी दिलचस्पी दिखाई होगी.
खैर, यह एक तरह से अच्छा ही था क्योंकि इसने ऐसी स्थितियां पैदा कीं जहां दोनों पक्ष बिना ध्यान भटकाए द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान कर सकते थे. इस बातचीत को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने "बेहद उपयोगी" बताया. गुरुवार की शाम, जब वांग यी के आने के लिए कुछ समय बचा था, तब विदेशी मंत्रालय ने उनकी यात्रा की पुष्टि की. एयरपोर्ट पर कोई खास स्वागत समारोह नहीं हुआ, कड़ी सुरक्षा के साथ वांग सीधे यहां पहुंचे.
भले ही दो दिनों के भीतर यह वांग की दूसरी दिल्ली यात्रा थी, ओआईसी समिट में वांग द्वारा कश्मीर पर की गई टिप्पणी की भारत ने आलोचना की. इस विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने पाकिस्तान और चीन को आड़े हाथों लिया. "भारत के बारे में कही गई बातें झूठ और गलत बयानी पर आधारित हैं. अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार पर इस संस्था (OIC) की टिप्पणी साफ तौर पर बेतुकी है, पाकिस्तान स्वयं लगातार मानवाधिकारों का उल्लंघन करता रहता है." वांग पर निशाना बनाते हुए एक कटाक्ष में, जो कुछ ही घंटों में दिल्ली पहुंचने वाले थे, बागची ने ट्वीट किया, "देशों और सरकारों को जो ऐसे कृत्य शामिल होते हैं, उन्हें अपनी प्रतिष्ठा पर पड़ने वाले प्रभाव का एहसास होना चाहिए."
बातचीत के लिए जमीन तैयार करने में समय की कमी
वांग के आने से पहले बातचीत का एजेंडा तैयार करने के लिए अधिक समय नहीं था, जिस पर अब यात्रा की गोपनीयता का हवाला दिया जा रहा है. लेकिन मूल रूप से देखा जाए तो यह बातचीत ओपन एजेंडे के साथ द्विपक्षीय संबंधों को फिर से शुरू करने के बारे में थी. जयशंकर ने मीडिया को बताया कि यह बातचीत तीन घंटों तक चली. इस दौरान व्यापक और ठोस एजेंडे पर स्पष्ट और खुले रूप से चर्चा की गई. बातचीत का अहम बिंदु एलओसी के हालातों पर केंद्रित था, जहां भारत ने सीमाओं के दोनों ओर सेना का भारी जमावड़ा कम करने की जरूरत बताई, साथ ही विवाद को कम करने पर जोर दिया.
उन्होंने पाया कि बातचीत एक "कठिन" दृष्टिकोण से आगे प्रगति हुई है. जयशंकर ने बताया कि उन्होंने चीन के समक्ष यह बात स्पष्ट कर दिया है कि सीमा पर तनाव बढ़ाने के लिए वह ही जिम्मेदार है, उसने यहां की यथा-स्थिति को डिस्टर्ब किया है जहां बीते दशकों से शांति थी. जयशंकर ने कहा, "इस मसले पर मैंने वांग को पूरी ईमानदारी से हमारी राष्ट्रीय भावना के बारे में परिचित करा दिया है." उन्होंने आगे कहा, सीमा पर सेना की भारी जमावड़े को 'सामान्य रिश्ता' नहीं कहा जा सकता. भारतीय विदेश मंत्री ने कहा है कि वांग के समक्ष उन्होंने यह साफ कर दिया है कि चीन से रिश्ते के लिए भारत "तीन तरह" के दृष्टिकोण रखता है, ये हैं आपसी सम्मान, आपसी संवेदनशीलता और आपसी हित.
एस जयशंकर ने तीन बातें स्पष्ट कीं
पहला, BRICS समिट और उसके बाद होने वाले RICS समिट के लिए चीनी सरकार के निमंत्रण की प्रधानमंत्री मोदी की स्वीकृति और सीमा पर तनाव कम करने का मामला. दूसरा, इस मसले पर क्वाड में कोई चर्चा नहीं की गई. क्वाड को लेकर चीन परेशान रहता है और चार देशों के इस समूह का हिस्सा होने के कारण भारत को निशाना बनाते रहता है. तीसरा, उन्हें चीन द्वारा अफगानिस्तान में आयोजित होने वाले पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन का कोई निमंत्रण नहीं मिला है.
एस जयशंकर के साथ बातचीत से पहले वांग ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से एक घंटे पहले मुलाकात की थी, इस दौरान भारत ने यह साफ कर दिया था कि वह बातचीत में सीमा के मुद्दे को मुख्य एजेंडा बनाएगा. आधिकारिक तौर पर, सीमा के मुद्दे पर डोभाल और वांग अपने-अपने देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन दोनों की बैठक के दौरान कहा जा रहा है कि भारत ने सीमा पर तनाव कम करने के लिए फौरी हल के बजाए व्यापक समाधान निकालने पर जोर दिया.
हां तक कि जब वांग ने इन मुद्दों पर आगे चर्चा करने के लिए डोभाल को बीजिंग आमंत्रित किया, तो डोभाल ने स्पष्ट कर दिया कि निमंत्रण स्वीकार करने से पहले सीमा पर "तनाव कम" होना चाहिए. साथ ही जयशंकर ने चीन के साथ व्यापार असंतुलन के मामले को भी उठाया और उन्होंने यह मांग की कि भारतीय वस्तुओं के लिए चीन को व्यापक बाजार खोलना चाहिए. कहा जाता है कि चीन ने भारत में चीनी कंपनियों पर लगी पाबंदियों का सवाल उठाया, विशेष रूप से कम्युनिकेशन प्रोजेक्ट और कॉन्ट्रैक्ट लेने के लिए चीनी कंपनियों पर लगी रोक के मामले में.
चीन अपनी कूटनीतिक रणनीति सावधानी से तैयार करता है
आमतौर पर, चीन अपनी कूटनीतिक रणनीति सावधानी से तैयार करता है. सोवियत संघ के विघटन के बाद बनी विश्व व्यवस्था जो अब खत्म होने वाली है और नए गठजोड़ बन रहे हैं, चीन ने यह तय किया होगा कि क्या भारत के साथ नया गठजोड़ संभव है ताकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका के प्रयासों को रोका जा सके. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्लान पर अमेरिका की तिरछी नजर रहती है.
लेकिन चीनी यह चाहता है कि एलएसी पर 2020 से पहले की स्थिति को बहाल करने की भारत की मांग पर ध्यान दिए बिना वह भारत के साथ व्यापार जारी रखे. भारत ने चीन के कोरी बयानबाजी के आधार पर चुप बैठने से इनकार कर दिया है और यह साफ कर दिया है कि जब सीमा पर तनाव का हल निकालने के लिए प्रक्रिया शुरू नहीं हो जाती तब तक हमेशा की तरह व्यापार नहीं किया जा सकता.
इस बातचीत के बारे में भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि "कार्य प्रगति पर" है और उन्होंने बताया कि द्विपक्षीय संबंधों को किस तरह से आकार दिया जाएगा. यह देखते हुए कि चीन, जो प्रतिद्वंदी देशों के साथ बेतुका रवैया अपनाता है, ऐसे में जिस स्पष्टता के साथ भारतीय पक्ष ने दृढ़ता के साथ बातचीत की और संबंधों को सामान्य करने के लिए शर्तें पेश की, उससे वांग यी, भले ही यह उन्हें अच्छा न लगे, आश्चर्यचकित हुए होंगे. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चीनी विदेश मंत्री अपने सहयोगियों और अपने मालिक शी जिनपिंग को क्या संदेश देते हैं और उनकी प्रतिक्रिया क्या होती है.
Rani Sahu

Rani Sahu

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