आम तौर पर संसद सत्र के पहले बुलाई जाने वाली सर्वदलीय बैठकों में बनी सहमति संसद की कार्यवाही के दौरान मुश्किल से ही नजर आती है, फिर भी ऐसा होने की ही अपेक्षा की जाती है। यह वक्त बताएगा कि संसद के बजट सत्र में क्या होगा, लेकिन उचित यही है कि संसदीय कार्यवाही हंगामे का शिकार न बने। इसके लिए जहां यह आवश्यक है कि सत्तापक्ष सभी जरूरी मसलों पर चर्चा के लिए तैयार रहे, वहीं विपक्ष अपनी बात कहने के नाम पर हंगामा करने को तत्पर न दिखे। संसद के इस सत्र में किसान आंदोलन का मसला उठना स्वाभाविक है। यह उठना भी चाहिए, लेकिन इससे ज्यादा जरूरी है इस मसले का समाधान। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने इस दिशा में पहल करते हुए कहा कि किसान संगठनों के लिए वह प्रस्ताव अभी भी हाजिर है, जिसके तहत यह कहा गया था कि सरकार डेढ़ साल के लिए कृषि कानूनों पर अमल रोकने को तैयार है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि बातचीत फिर से शुरू करने के लिए किसान नेताओं को कृषि मंत्री को बस एक फोन करना है। पता नहीं किसान नेता क्या करेंगे, लेकिन यदि वे सरकार को नीचा दिखाकर अपनी मांग मनवाना चाहेंगे तो फिर कुछ होने वाला नहीं है। अगर वे वास्तव में समाधान के पक्ष में हैं तो उन्हें यह जिद छोड़नी होगी कि तीनों कृषि कानून वापस हों।