सम्पादकीय

1977 में जयप्रकाश नारायण चाहते थे कि जगजीवन राम के खिलाफ राम विलास पासवान चुनाव लड़ें

Gulabi Jagat
22 March 2022 8:36 AM GMT
1977 में जयप्रकाश नारायण चाहते थे कि जगजीवन राम के खिलाफ राम विलास पासवान चुनाव लड़ें
x
जगजीवन राम बनना चाहते थे प्रधानमंत्री
सुरेंद्र किशोर।
सन 1977 में जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) चाहते थे कि राम विलास पासवान (Ram Vilas Paswan), जगजीवन राम (Jagjivan Ram) के खिलाफ लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) लड़ें. लेकिन जनवरी, 1977 में चुनाव की घोषणा हो जाने के बाद अचानक जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बना ली. उनकी पार्टी का नाम था "कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी" यानी सी.एफ.डी. इस तरह जगजीवन राम यानि "बाबू जी" को हराने के राजनीतिक गौरव से रामविलास पासवान वंचित रह गए थे. याद रहे कि जगजीवन राम कभी चुनाव नहीं हारे. वे बिहार के सासाराम लोकसभा चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ते और जीतते थे. सन 1977 का चुनाव यदि वे कांग्रेस के टिकट पर लड़े होते तो उनकी जीत असंभव थी. क्योंकि बिहार की सभी 54 सीटों पर कांग्रेस हार गई थी.
सन 1977 में जगजीवन राम ने जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. पहली बार सन 1937 में शाहाबाद से बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए थे. सन 1937 में गठित डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की सरकार में जगजीवन राम संसदीय सचिव थे. श्रीकृष्ण सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री जगलाल चैधरी थे. दिवंगत चैधरी अनुसूचित जाति से आते थे. किंतु बाद के वर्षों में उनके राजनीतिक करियर पर विराम लगा दिया गया.
जगजीवन राम बनना चाहते थे प्रधानमंत्री
कुछ लोगों ने इसका कारण यह बताया कि वे अत्यंत ईमानदार नेता थे. बिहार के आबकारी मंत्री के रूप में दिवंगत चैधरी ने नशाबंदी लागू कर दी थी.उधर कांग्रेस पार्टी नशाबंदी नहीं चाहती थी. उत्तर प्रदेश में भी यही हुआ था. मध्य प्रदेश की एक सीट छोड़कर लगभग पूरे हिन्दी भारत से 1977 में कांग्रेस का सफाया हो गया था. तब जनता पार्टी के पक्ष में चुनावी लहर चल रही थी. उस तूफान में बड़े-बड़े कांग्रेसी बटवृक्ष उखड़ गए थे. याद रहे कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी सन 1977 में लोक सभा चुनाव हार गए थे.
वैसे जगजीवन राम के समर्थकों को इस बात की गलतफहमी रही कि जगजीवन राम के कांग्रेस छोड़ने के बाद ही जनता पार्टी के पक्ष में चुनावी आंधी चली थी. यदि यह सच होता तो जगजीवन राम की समधिन और मीरा कुमार की सास सन 1977 में बिहार के बलिया लोकसभा क्षेत्र से जीत गई होतीं. वहां वह निर्दलीय उम्मीदवार थीं. जगजीवन राम उर्फ 'बाबू जी' ने उनके लिए प्रचार भी किया था. जब जनता पार्टी से टिकट नहीं मिला तो बाबू जी ने सुमित्रा देवी को निर्दलीय खड़ा करा दिया था. सुमित्रा देवी को सिर्फ 31 हजार मत मिले थे. उनकी जमानत जब्त हो गई थी.
याद रहे कि सुमित्रा देवी 1952 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनीं थीं. बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुकी थीं. उधर रामविलास पासवान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार सन 1969 में अलौली से बिहार विधानसभा के सदस्य बने थे. लेकिन वे 1972 में चुनाव हार गए. वे जेपी आंदोलन में सक्रिय थे. सन 1977 में हाजी पुर लोकसभा क्षेत्र में ऐसी जबर्दस्त जीत हासिल की कि राम विलास पासवान का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल हो गया. 1977 के लोकसभा चुनाव के बाद जगजीवन राम प्रधान मंत्री बनना चाहते थे. लेकिन जनता पार्टी के अनेक नेताओं का यह मानना था कि जिस व्यक्ति ने इमरजेंसी के समर्थन में संसद में प्रस्ताव पेश किया था, उसे कैसे अपना प्रधान मंत्री मान लिया जाए?
मोरारजी देसाई के मंत्रीमंडल में शामिल नहीं होना चाहते थे जगजीवन राम
चैधरी चरण सिंह भी जगजीवन बाबू के खिलाफ थे. चैधरी साहब ने इस पद के लिए मोरारजी देसाई का समर्थन कर दिया. जेपी और जे.बी.कृपलानी ने जनता पार्टी के नव निर्वाचित सांसदों से राय ली. आम राय मोरारजी के पक्ष में थी. मोरारजी प्रधान मंत्री बन गए. उसके बाद जगजीवन राम ने मोरारजी मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया. इस पर जयप्रकाश नारायण ने चंद्रशेखर के जरिए बाबू जी को यह संदेश भिजवाया, "जगजीवन राम देश की महान सामाजिक ताकत हैं. उनके सहयोग के बिना नए भारत के निर्माण का काम संभव नहीं हो पाएगा." जगजीवन राम पर इस संदेश का सकारात्मक असर पड़ा और वे मोरारजी मंत्रिमंडल में शामिल हो गए. उससे पहले एक राजनीतिक नाटक हो चुका था.
नेता के चुनाव के लिए जनता पार्टी के सांसदों की बैठक में जगजीवन राम शमिल ही नहीं हुए थे. क्योंकि उन्हें मालूम हो गया था कि मोरारजी का चयन होने जा रहा है. पहले तो सी.एफ.डी. के कुछ सांसद जनता पार्टी संसदीय दल की बैठक में शामिल होने गए थे. किंतु थोड़ी दर बाद जब उन्हें कहीं से संदेश आया तो वे बीच में ही सभा भवन से बाहर निकल गए. जनता पार्टी में कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी के विलय के काम में भी देरी हुई. हालांकि विलय हो गया. उसके बाद भी जनता पार्टी में भीतर ही भीतर तीन घटक दलों की गुटबाजी चलती रही. खैर, उससे पहले आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण यह कहा करते थे कि "मुझे आश्चर्य है कि जगजीवन राम और वाई बी.चव्हाण क्यों इंदिरा गांधी के साथ हैं!"
लोकसभा चुनाव के बाद कई राज्य विधान सभाओं के चुनाव हुए. राज्यों के चुनावों के बाद लोकदल घटक और जनसंघ घटक ने मिलकर अपने बीच छह राज्य बांट लिए. तीन राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के मुख्य मंत्री लोक दल घटक के नेता बनाए गए. अन्य तीन राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जनसंघ घटक के नेता बनाए गए. पर, कलह के कारण सन 1979 में बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के मुख्य मंत्री हटा दिए गए. उसके परिणाम स्वरूप मोरारजी देसाई सरकार भी गिरा दी गई.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Next Story