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- इमरान का दांव
Written by जनसत्ता: नेशनल असेंबली भंग करने का दांव खेल कर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने विपक्ष को तगड़ा झटका दे दिया। विपक्ष मान कर चल रहा था कि सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर सदन में चर्चा होगी और संख्या बल में इमरान खान हार जाएंगे। पर इमरान खान ने न तो इस्तीफा दिया और न ही अविश्वास प्रस्ताव चर्चा के लिए स्वीकार हुआ। नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर ने अविश्वास प्रस्ताव को संविधान और नियमों के मुताबिक नहीं पाने और इसकी अवधि निकल जाने की बात कहते हुए इसे खारिज कर दिया।
उनके इस फैसले को विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने नेशनल असेंबली भंग कर दी। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट क्या कदम उठाता है, यह देखना होगा। अगर चुनाव हुए तो पाकिस्तान में सारी राजनीतिक पार्टियां जनता के बीच जाएंगी और वही फैसला करेगी कि अब सत्ता किसे सौंपी जाए। वैसे तो पाकिस्तान में चुनाव अगले साल होने थे। गौरतलब है कि पाकिस्तान में लंबे समय से विपक्ष और सरकार के बीच टकराव चल रहा है और इमरान खान को हटाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
देखा जाए तो पाकिस्तान में वैसा कुछ नहीं हुआ जैसे कि कयास लगाए जा रहे थे। माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री इमरान खान देश में आपातकाल लगा सकते हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा कोई कदम उठाने से परहेज किया, जिससे जनता में उनके और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआइ) को लेकर कोई नकारात्मक संदेश जाए। गौर करने वाली एक बात यह भी है कि जितनी भीड़ विपक्ष की रैलियों में जुटती है, उतनी ही इमरान की रैलियों में भी आती है। दरअसल, पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है, उसके कारण भी कोई तात्कालिक नहीं हैं।
आतंकवाद, महंगाई, आर्थिक संकट जैसे कारण तो पहले से चले आ रहे हैं। हां, इतना जरूर है कि जो लंबे-चौड़े वादे कर इमरान सत्ता में आए थे, उन पर वे रत्तीभर खरे नहीं उतरे। सवाल तो यह है कि करें भी तो क्या? जहां तक बात है भ्रष्टाचार की, तो वह हर सत्ता में चरम पर ही रहा है और आज भी है। याद किया जाना चाहिए कि जब बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री थीं, तब उनके पति आसिफ अली जरदारी 'मिस्टर टैन परसेंट' के तौर पर मशहूर थे! जहां तक सवाल है आतंकवाद से निपटने का, तो आतंकवाद पाकिस्तान सरकार की अघोषित नीति कही जाती है। कौन नहीं जानता कि सरकार, सेना और आइएसआइ आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं! ऐसे में इमरान खान कोई करिश्मा कर भी कैसे सकते हैं?
याद यह भी किया जा सकता है कि इमरान खान अपने खिलाफ मोर्चाबंदी के पीछे विदेशी हाथ होने का दावा करते रहे हैं। और न ही यह कोई छिपी बात है कि सेना और इमरान खान के बीच रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं। हालांकि इमरान को सत्ता में लाने में सेना की भूमिका भी जगजाहिर रही है। दरअसल पाकिस्तान की सत्ता में वही सरकार टिक सकती है जिस पर सेना मेहरबान हो। पाकिस्तान का इतिहास इसका गवाह रहा है।
हाल में इमरान की रूस यात्रा न सिर्फ अमेरिका, बल्कि सेना को भी खटकी है। पाकिस्तान सेना का अमेरिका के प्रति मोह जरा भी कम नहीं पड़ा है। ऐसे में इमरान खान को लेकर सैन्य प्रतिष्ठान की नजरें टेढ़ी होना लाजिमी है। हालांकि सेना ने मौजूदा घटनाक्रमों से अपने को पूरी तरह अलग बताया है। पर सच्चाई तो सब जानते हैं! अगर तीन महीने के भीतर देश में चुनाव हुए तो देखना होगा कि सेना किस पर हाथ रखती है और पाकिस्तान की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है?