सम्पादकीय

अपने ही बुने जाल में फंसे इमरान

Gulabi
23 April 2021 7:39 AM GMT
अपने ही बुने जाल में फंसे इमरान
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान असहाय दिख रहे हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ''तुमने बोये थे खेतों में इंसानों के सर, अब जमी लहू उगलती है तो रंज क्यों है?'' यह बात पाकिस्तान के हालात को बयां करने के लिए काफी है। पड़ोसी पाकिस्तान इस समय बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। बड़े-बड़े शहर हिंसा की चपेट में हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान असहाय दिख रहे हैं। उनका असहाय दिखना कोई नई बात नहीं है। हताशा में इमरान लगातार अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं और वे अपने ही बुने जाल में फंस चुके हैं। सियासत पर नजर रखने वाले तो इस बात की आशंका जाहिर कर रहे हैं कि पाकिस्तान में कभी भी गृह युद्ध​​ छिड़ सकता है। पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान की सेना और कट्टरपंथी आमने-सामने हैं। पाकिस्तान की सेना के पास अमानवीय तरीके से लोगोें का दमन करने के अलावा दूसरा विकल्प ही नहीं बचा है। पिछले वर्ष अक्तूबर में फ्रांस के नीस शहर में एक शिक्षक ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के विवादित कार्टून को दिखाया था, जिसके बाद उसकी हत्या कर दी गई थी। इस घटना की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप फ्रांस की इमैनुअल मैक्रो सरकार ने कई कदम उठाए। मैक्रो सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में जोरदार तर्क पेश ​किए और इस्लाम के कट्टरपंथी स्वरूप की आलोचना की थी। इस्लामिक कट्टरवाद को रोकने के लिए कानून बनाने का ऐलान किया और सौ से अधिक मस्जिदों को बंद कर दिया गया। इन कदमों की इस्लामिक देशों में तीखी प्रतिक्रिया होती थी और फ्रांस का बहिष्कार करने की मुहिम छेड़ दी गई। इसे फ्रांस का इस्लामोफबिया करार दिया गया। पाकिस्तान में भी ऐसी ही मुहिम शुरू हुई।


हर मोर्चे पर विफल इमरान सरकार के सामने विपक्ष एकजुट है। इमरान ने विपक्ष को कमजोर करने के लिए कट्टरपंथी तहरीक-ए-लब्बैक के सुर में सुर मिलना शुरू कर दिया। इमरान खान ने फ्रांस के खिलाफ खुलकर बयानबाजी करनी शुरू कर दी। उन्होंने इमैनुअल मैक्रो की निंदा करते हुए यह मुद्दा इतने आक्रामक ढंग से उठाया और फेसबुक को भी एक पत्र लिखकर इस्लामोफो​बिया कंटेट को सोशल प्लेटफार्म पर पूरी तरह बैन करने की मांग उठाई। इससे कट्टरपंथी ताकतों को बल मिला और मौलाना साद रिजवी के नेतृत्व में उनके संगठन तहरीक-ए-लब्बैक ने पिछले वर्ष फ्रांस से कूटनीतिक रिश्ते खत्म करने के लिए फ्रांस दूतावास पर धरना दिया था। राजनीति के कच्चे खिला​ड़ी इमरान खान ने तब उन्हें भरोसा दिया था कि ऐसा ही किया जाएगा। तब रिजवी ने इमरान सरकार के संसद में प्रस्ताव लाने के लिए 20 अप्रैल का समय दिया था। एक तरफ पाकिस्तान पर कोरोना की मार तो दूसरी तरफ देश में खाद्यान्न संकट। महंगाई के आसमान को छूने से लोगों को रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। पाकिस्तान में त्राहि​-त्राहि मची हुई है।

दूसरे देशों की मेहरबानी से चल रहा पाकिस्तान, फ्रांस और मित्र देशों से दुुश्मनी मोल नहीं ले सकता। 20 अप्रैल की समय सीमा से पहले ही इमरान सरकार ने तहरीक-ए-लब्बैक के चीफ रिजवी को गिरफ्तार कर लिया और उसके संगठन को प्रतिबंधित कर दिया। रिजवी की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान के शहर हिंसा की चपेट में आ गए। परिणाम यह रहा कि इमरान सरकार को प्रतिबंधित आतंकी संगठन के साथ बातचीत करके बाकायदा समझौता करना पड़ा। इमरान सरकार ने स्वीकार कर लिया कि संसद में फ्रांसीसी राजदूत को वापिस भेजने का प्रस्ताव पेश किया जाएगा। हालांकि इमरान खान भी इस प्रस्ताव से सहमत नहीं हैं।

पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि फ्रांसीसी राजदूत को वापिस भेजने का मतलब होगा पूरे यूरोपीय यूनियन से रिश्ते खत्म होना। पाकिस्तान का टैक्सटाइल एक्सपोर्ट का 50 फीसदी यूरोप ही जाता है, इसलिए यूरोपीय यूनियन से रिश्ते खत्म होने का मतलब होगा देश के टैक्सटाइल निर्यात का आधा हिस्सा गायब हो जाएगा। मगर यह बातें कट्टरपंथियों को कहां समझ आएंगी। इमरान को पहले यह बात समझ नहीं आई। उसने तो इस्लामी जगत में अपना कद ऊंचा करने के लिए इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश की। इससे कट्टरपंथियों की ताकत इतनी बढ़ गई कि उन्होंने सरकार को ही घुटनों पर ला दिया । इसी बीच फ्रांस सरकार ने अपने 15 राजनयिकों को वापिस बुला लिया। फ्रांस ने अपने नागरिकों और कम्पनियों को अस्थाई तौर पर पाकिस्तान छोड़ने की सलाह दी है। राजनयिकों को वापिस बुलाए जाने से साफ है कि यूरोपीय देश और पाकिस्तान के बीच संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। सियासत के पावर सिस्टम, भ्रष्टाचार, असमानता और गरीबी के चलते पाकिस्तान में पैदा हुए हालात संकेत दे रहे हैं कि पाकिस्तान गृह युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। यह भी सच है कि बंदूकों के जोर पर लोगों को लम्बे अर्से तक दबाया नहीं जा सकता। इमरान समझदार होते तो इस मुद्दे से खुद को अलग रख सकते थे। अब लगता है कि पाकिस्तान में कट्टर इस्लाम के अलावा कुछ नहीं बचा। पाकिस्तान की राजनीति की धुरी भारत विरोध पर टिकी हुई है लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक करने और ​जम्मू-कश्मीर में 370 खत्म कर दिए जाने के बाद पाकिस्तान को भारत से डर लगने लगा है। पाकिस्तान की सच्चाई दुनिया के और अपने ही अवाम के सामने आ चुकी है। मामला भले ही पाकिस्तान का हो लेकिन यह सबके लिए सबक है कि आधुनिक दुनिया में कट्टरपंथ को बढ़ावा देना न तो देश के हित में और न ही समाज के हित में है। कट्टरपंथ के कारण समाज को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, वह भी अपना खून बहा कर।

आदित्य नारायण चोपड़ा
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