सम्पादकीय

वैक्सीन की अहमियत

Triveni
26 Jun 2021 4:12 AM GMT
वैक्सीन की अहमियत
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जिस समय भारत के संदर्भ में हमें यह चिंताजनक खबर पढ़ने को मिल रही है कि यहां 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में वैक्सीन लेने की रफ्तार धीमी पड़ गई है

जिस समय भारत के संदर्भ में हमें यह चिंताजनक खबर पढ़ने को मिल रही है कि यहां 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में वैक्सीन लेने की रफ्तार धीमी पड़ गई है और लगभग 52 फीसदी बुजुर्गों ने टीके की अभी पहली खुराक तक नहीं ली है, तब अमेरिका से टीकाकरण अभियान की कामयाबी का एक सुखद समाचार आया है। वहां एक अध्ययन में पाया गया है कि अब जितनी भी मौतें हो रही हैं, उनमें करीब 99 फीसदी वे लोग हैं, जिन्होंने कोविड-19 की वैक्सीन नहीं लगवाई थी। मई में 18,000 से अधिक अमेरिकियों ने इस वायरस के कारण अपनी जान गंवाई, मगर उनमें से करीब 150 लोग ही ऐसे थे, जिन्होंने टीके की दोनों खुराकें ले रखी थीं। गौर करने वाली एक अहम बात यह भी है कि जनवरी के मध्य में वहां रोजाना औसतन 3,400 लोगों की जान जा रही थी। तब वहां टीकाकरण अभियान शुरू हुए एक महीना ही हुआ था। मगर आज वहां कोविड-19 के कारण मरने वालों की दैनिक संख्या 300 से नीचे आ गई है। मान्य आयु वर्ग के 63 प्रतिशत अमेरिकी एक खुराक और करीब 53 फीसदी दोनों टीके लगवा चुके हैं। अमेरिका से आए ये ब्योरे टीकाकरण की अहमियत स्थापित करते हैं। हालांकि, ये यह भी बताते हैं कि अमेरिकी समाज में भी टीकों को लेकर संशय या दुराग्रह पालने वालों की कमी नहीं है। बहरहाल, वैक्सीन की प्रभावशीलता से जुड़ी इन जानकारियों का लाभ दुनिया भर की सरकारों को उठाना चाहिए और अपने टीकाकरण अभियान को गति देनी चाहिए। खासकर भारत के लिए यह काफी अहम है, क्योंकि न सिर्फ इसको तीसरी लहर की आशंकाओं को निर्मूल करना है, बल्कि असंख्य लोगों के भय, पूर्वाग्रह को दूर कर उन्हें टीकाकरण केंद्रों तक लाना भी है। देश की विशाल आबादी को देखते हुए यह काफी चुनौतीपूर्ण काम है, लेकिन यह अनिवार्य है और अनिवार्यता का कोई विकल्प नहीं होता। भारत का टीकाकरण अभियान पहले ही विसंगतियों का शिकार रहा है। एक तरफ, इसके हिस्से में सर्वाधिक टीके लगाने वाले चंद देशों में शुमार होने की उपलब्धि है, तो वहीं टीके की कमी के कारण लोगों का टीकाकरण केंद्रों से मायूस लौटना भी है। एक ओर, सौ फीसदी टीकाकरण वाले गांव हैं, तो दूसरी ओर टीकों की बर्बादी भी है। टीकों की दर, सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और केंद्र-राज्यों में समन्वय की कमी जैसी बातों को एक तरफ रख भी दें, तो अब भी इसमें निरंतरता की कमी है। किसी दिन कोई राज्य लाखों टीके लगाने के कीर्तिमान रच रहा है, तो अगले ही दिन वह संख्या हजारों में सिमट आ रही है। नहीं! यह इवेंट मैनेजमेंट का विषय नहीं है, लोगों की जिंदगी और देश के भविष्य का गंभीर मसला है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारें इस अभियान को गति देते समय टीकों की आपूर्ति, निरंतरता और क्षेत्रफल का समान रूप से ख्याल रखें। इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती कि जिस आयुवर्ग में अब तक करीब सौ फीसदी टीकाकरण हो जाना चाहिए था, उसके 52 प्रतिशत लोगों को एक खुराक भी नहीं लगी है। अमेरिकी अध्ययन के नतीजे बता रहे हैं कि न सिर्फ सरकारों, बल्कि समस्त सामाजिक समूहों और सजग नागरिकों को अब यह मकसद बनाना पडे़गा कि टीकाकरण अभियान जल्द से जल्द सफल हो, तभी भारत में भी कोविड-19 का दैत्य काबू में आ पाएगा।


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